द्वाराहाट: ऐतिहासिक स्याल्दे बिखौती मेले का विभांडेश्वर से कल श्रीगणेश हो गया है। रणा गांव के नगाड़ों के साथ शिवपूजन के बाद मेले का विधिवत उद्घाटन हुआ। झोड़ों और सांस्कृतिक कार्यक्रमों की धूम रही। मध्यरात्रि बाद व नगाड़े निशाणों के साथ आल, गरख और नौच्यूला धड़ों से जुड़े लोग झोड़ा चांचरी गाते हुए विभांडेश्वर पहुंचे। शनिवार की तड़के त्रिवेणी पर महास्नान के बाद आज द्वाराहाट में बाटपुजै (छोटी स्याल्दे) के मौके पर नौच्यूला धड़ा ओड़ा भेंटने की रश्म अदा करेगा। आपको बता दे कि पहले दिन यानी आज नौज्यूला समूह के लोगों ने ओढ़ा भेंटने की रस्म अदायगी की. इस दल में हाट, बमनपुरी, कौला, ध्याड़ी, सलालखोला, छतीना, इड़ा, विद्यापुर और तल्ली बिठोली के कुल 11 जोड़ा नगाडे़ व निषाण लेकर सजधज कर पहुंचे और ओढ़ा भेंटने की रस्म पूरी की। आगामी लोकसभा चुनाव को लेकर लगी आदर्श आचार संहिता के चलते मेले में उतनी रौनक देखने को नही मिली, जिसमे बाहरी व्यापारी भी इस मेले में प्रतिभाग नही कर सके।
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मेले में मग्न हुए मेलार्थी झोड़ा व चांचरी की उमंग से सराबोर थे। मुख्य स्याल्दे मेले को देखते हुए सुबह से ही महिलाओं की टोलियां मुख्य चौराहे पर जुटनी शुरू हो गई थी। द्वाराहाट का यह प्रसिद्ध स्याल्दे बिखौती मेला वैशाख माह में लगता है. द्वाराहाट से 8 किमी की दूरी पर स्थित प्रसिद्ध शिव मंदिर विभाण्डेश्वर में लगने वाला मेला दो भागों में लगता है. पहला विभाण्डेश्वर मंदिर में, दूसरा द्वाराहाट बाजार में. विषुवत् संक्रान्ति को ही क्षेत्रीय भाषा में बिखौती नाम से जाना जाता है. कहा जाता है कि प्राचीन समय में शीतला देवी मंदिर में ग्रामीण देवी की पूजा करने को आते थे और ऐसे शुरु हुई ओढ़ा भेंटने की रस्म एक बार किसी कारण दो दलों में खूनी संघर्ष हो गया, हारे हुए दल के सरदार का सिर खड्ग से काट कर जिस स्थान पर दफनाया गया वहां एक पत्थर को रखकर स्मृति चिन्ह बना दिया. इसी पत्थर को ओढ़ा कहा जाता है. यह पत्थर द्वारहाट चौक में है. तब से इस ओढ़ा पर चोट मार कर ही आगे बढ़ने की परम्परा है जिसे ‘ओढ़ा भेंटना’ कहा जाता है. इस मेले में ओढ़ा भेजने के लिए विभिन्न दल ढोल-नगाड़े और निषाण से सज्जित होकर आते है. हर्षोल्लास से टोलियां ओढ़ा भेंटने की रस्म अदा करती है।
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