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Thursday, May 22, 2025

वीर केसरी चंद: उत्तराखंड के अमर शहीद की जीवनगाथा और बलिदान की कहानी

उत्तराखंड सिर्फ देवभूमि ही नहीं बल्कि वीरों की भी भूमि रही है इस भूमि पर अनेक ऐसे वीर पैदा हुए हैं जिन्होंने इस धरा के लिए अपने प्राण न्योछावर कर दिए। आजादी के पहले से लेकर आज तक यह भूमि अनेक वीरों को जन्म देती आई है और उन वीरों  के शौर्य की गाथाएँ आज भी सम्पूर्ण देश मे बताई जाती है ऐसे ही एक देशभक्त और स्वतंत्रता सेनानी हुए हैं वीर केसरी चंद”।

वीर केसरी चंद्र उत्तराखंड के जौनसार-बावर क्षेत्र ‘वर्तमान समय के  देहरादून’ ज़िले के एक महान स्वतंत्रता सेनानी थे, जिन्होंने आज़ाद हिंद फौज में शामिल होकर देश की आज़ादी के लिए अपने प्राण न्योछावर कर दिए।

वीर केसरी चंद का प्रारंभिक जीवन और शिक्षा

वीर केसरी चंद्र जी का जन्म 1 नवंबर 1920 को क्यावा गाँव, जौनसार- भाबर  उत्तराखंड मे हुआ था।उनकी प्रारंभिक शिक्षा विकासनगर से हुई और उसके बाद उन्होंने दसवीं और बारवीं डीएवी कॉलेज, देहरादून से किया।केसरी चंद जी बचपन से ही वे निर्भीक थे। देशभक्ति और नेतृत्व क्षमता उनमें कूट-कूट कर भरी थी। बारवी कक्षा मे पढ़ते हुए ही वे 10 अप्रैल 1941 को रायल इंडियन आर्मी सर्विस कोर में नायब सूबेदार के पद पर भर्ती हो गए।

केसरी चंद जी का स्वतंत्रता संग्राम में योगदान

अप्रैल 1941 में केसरी चंद जी ब्रिटिश इंडियन आर्मी में भर्ती हुए। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान 29 अक्टूबर 1941 को उन्हें मलेशिया के युद्ध मे मोर्चे पर भेजा गया,  उस युद्ध के दौरान फरवरी 1942 को जापानी फौज ने वीर केसरी चंद जी को बंदी बना लिया। 

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उसके बाद नेताजी सुभाष चंद्र बोस  के आह्वान और उनके लहु उगलते नारे ‘तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा’ से प्रेरित होकर केसरी चंद जी आजाद हिंद फौज में शामिल हो गए थे.

उन्होंने मणिपुर के इंफाल में एक ब्रिटिश पुल को उड़ाने का साहसिक प्रयास किया, परंतु उन्हें ब्रिटिशों द्वारा  पकड़ लिया गया।

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फांसी से पहले वीर केसरी चंद का साहस और अंतिम शब्द

अंग्रेजी सरकार द्वारा देशद्रोह के आरोप में वीर केसरिचंद जी को मौत की सज़ा सुनाई गई। 3 मई 1945 को मात्र 24 वर्ष की आयु में फांसी दे दी गई। उसे निर्भीकमना स्वतंत्रता सेनानी ने हंसते-हंसते उस फांसी के फंदे को चूम लिया।

वीर केसरी चंद जी की अंतिम समय की अमर वाणी जो आज भी हर देशभक्त के दिल को छू जाती है :
मैं भारत माँ के लिए मर जाऊँगा, लेकिन कभी अंग्रेज़ सरकार से माफ़ी नहीं माँगूँगा।

वीर केसरी चंद शहीद दिवस कब मनाया जाता है?

वीर केसरी चंद शहीद दिवस हर साल 3 मई को बड़ी श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। उत्तराखंड के चकराता क्षेत्र में आयोजित मेलों और श्रद्धांजलि सभाओं के माध्यम से उन्हें याद किया जाता है। यह दिन उनके अद्वितीय बलिदान को सम्मान देने और युवाओं को प्रेरित करने का प्रतीक बन चुका है।

स्मृति स्थल और रामताल का वीर मेला

हर वर्ष 3 मई को उनके शहादत दिवस पर चकराता तहसील के नागर ग्राम सभा के रामताल में वीर एक मेले का आयोजन किया जाता है,जिसमें उन्हें श्रद्धांजलि दी जाती है। यह मेला महान स्वतंत्रता सेनानी वीर केसरी जी चंद्र को समर्पित है। 

प्रत्येक वर्ष नवरात्र के दौरान भी यहां पर एक बड़े मेले का आयोजन होता है जो महान देशभक्त के त्याग का गुणगान करने के लिए किया जाता है। इस स्थल पर केसरी चंद्र को समर्पित एक मंदिर और एक स्मारक है।

आज भी वीर केसरी चंद जी उत्तराखंड और भारत वर्ष के युवाओं के लिए एक प्रेरणा स्रोत है।

मात्र 24 वर्ष की अल्पायु मे देश के लिए प्राणों की आहुति देने वाले आजाद हिन्द फ़ौज के सेनानी अमर शहीद वीर केसरी चंद जी की पुण्यतिथि पर उन्हें शत शत नमन 🙏

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Hemant Upadhyay
Hemant Upadhyayhttps://chaiprcharcha.in/
Hemant Upadhyay एक शिक्षक हैं जिनके पास 7 से अधिक वर्षों का अनुभव है। साहित्य के प्रति उनका गहरा लगाव हमेशा से ही रहा है, वे कवियों की जीवनी और उनके लेखन का अध्ययन करने में रुचि रखते है।, "चाय पर चर्चा" नामक पोर्टल के माध्यम से वे समाज और साहित्य से जुड़े विभिन्न मुद्दों पर विचार-विमर्श करते हैं और इन मुद्दों के बारे में लिखते हैं ।

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