द्वाराहाट: जनपद अल्मोड़ा के विकासखंड भिकियासेन के अंतर्गत स्थित ग्राम सभा नौबारा में, हिमालय की गोद में बसा आस्था और अध्यात्म का प्रतीक श्री नैथना देवी मंदिर अपनी दिव्यता और प्राकृतिक सौंदर्य के लिए प्रसिद्ध है। इस मंदिर की धार्मिक मान्यता पुराणों में वर्णित दक्षयज्ञ की कथा से जुड़ी हुई है। कथा के अनुसार, जब पिता दक्ष के अपमानजनक व्यवहार से आहत होकर माता सती ने आत्मदाह कर लिया, तो भगवान शिव अत्यंत क्रोधित हो गए और माता सती के मृत शरीर को लेकर ब्रह्मांड में विचरण करने लगे।
भगवान शिव के उग्र रूप को शांत करने के लिए, देवताओं और ऋषि-मुनियों ने भगवान विष्णु से प्रार्थना की। तब भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर के कई टुकड़े किए, जो पृथ्वी के विभिन्न स्थानों पर गिरे। जिन स्थानों पर ये अंग और आभूषण गिरे, वे शक्तिपीठ कहलाए। इन्हीं शक्तिपीठों में से एक श्री नैथना देवी मंदिर भी है, जहां माँ भगवती की शक्ति के रूप में पूजा की जाती है।
मंदिर के चारों ओर घने वन क्षेत्र फैले हुए हैं, जो चीड़, बांज, और काफल जैसे पेड़ों से सुशोभित हैं। इन वनों की प्राकृतिक सुंदरता मंदिर की पवित्रता को और भी बढ़ा देती है। मंदिर की तलहटी में अविरल बहती परमपावन रामगंगा नदी माँ के चरणों को पखारती हुई प्रतीत होती है। यह रमणीय दृश्य किसी भी श्रद्धालु को अध्यात्म की गहराइयों तक ले जाने की क्षमता रखता है। मंदिर से उत्तर-पूर्व दिशा की ओर देखने पर मनोहारी सीढ़ीनुमा खेतों से सजे हुए गांव दिखाई देते हैं। यहां का प्रमुख शैक्षणिक संस्थान, उत्तमसाणी राजकीय इंटर कॉलेज, पिछले कई दशकों से शिक्षा का केंद्र रहा है और इस क्षेत्र की सांस्कृतिक और शैक्षणिक प्रगति में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।
मंदिर के आसपास के जंगल मार्च और अप्रैल के महीनों में बुरांश के लाल फूलों से भर जाते हैं, जो इस क्षेत्र की प्राकृतिक सुंदरता को और अधिक अद्वितीय बना देते हैं। इस मंदिर का वर्तमान स्वरूप बीसवीं शताब्दी के तीसरे दशक, लगभग 1930 के आसपास, कुमाऊं के प्रख्यात संत श्री हरनारायण स्वामी जी के प्रयासों और ग्रामवासियों के सहयोग से निर्मित हुआ। यह मंदिर न केवल आसपास के क्षेत्रों के लोगों की गहरी श्रद्धा का केंद्र है, बल्कि दूर-दूर से आने वाले भक्तों के लिए भी आस्था का प्रमुख स्थान है।
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मंदिर तक पहुँचने के दौरान भक्तों को जो प्राकृतिक सौंदर्य, शांत वातावरण, और आध्यात्मिक अनुभव प्राप्त होता है, वह इस स्थान को एक विशिष्ट तीर्थस्थल के रूप में स्थापित करता है। यहाँ की दिव्यता और भव्यता हर श्रद्धालु को माँ भगवती के चरणों में शीश नवाने के लिए प्रेरित करती है।