चौखुटिया: देवभूमि उत्तराखंड के जनपद अल्मोड़ा के अंतर्गत विकासखंड चौखुटिया से लगभग 0.5 कि.मी.दूर जौरासी रोड के रामगंगा नदी के तट पर धुदलिया गांव के पास स्थित अग्नेरी देवी का प्राचीन मन्दिर कत्यूरी कालीन इतिहास की एक अमूल्य धरोहर है। देवभूमि उत्तराखंड की पावन भूमि में बसी रंगीली गेवाड़ घाटी की कुमाऊंनी लोकसाहित्य और संस्कृति के निर्माण में अहम भूमिका रही है. यहां के प्रसिद्ध दर्शनीय स्थलों में कत्यूर की राजधानी लखनपुर,गेवाड़ की कुलदेवी मां अगनेरी का मंदिर, रामपादुका मन्दिर,मासी का भूमिया मंदिर विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं.‘राजुला मालूशाही’ की प्रेमगाथा के कारण भी बैराठ चौखुटिया की यह घाटी ‘रंगीली गेवाड़’ के नाम से प्रसिद्ध है।
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आपको बता दे कि गेवाड़ घाटी की ऐतिहासिक रंगीली धरती में बसा प्रसिद्ध अगनेरी मैया मंदिर प्राचीन काल से ही अटूट आस्था का केंद्र रहा है। रामगंगा नदी के पावन तट पर स्थित होने के कारण यहां पूजा-अर्चना के लिए दूर-दूर से श्रद्घालु आते हैं। अपने पौराणिक स्वरूप को लिए यह मंदिर अब आकर्षक व भव्य रूप में नजर आएगा। यहां अग्नेरी देवी के मन्दिर में लगने वाला चैत्राष्टमी का मेला कुमाऊं का एक प्रसिद्ध मेला माना जाता है. यहां अपनी मनोकामनाओं को पूर्ण करने हेतु देश विदेश से श्रद्धालुजन माँ अग्नेरी के दरबार में पहुंचते हैं।
अग्नेरी देवी के प्राचीन इतिहास
जहां तक इस अग्नेरी देवी के प्राचीन इतिहास का सम्बन्ध है,लोकश्रुति के अनुसार दुनागिरि पर्वत के सामने ‘पाण्डुखोली’ नामक स्थान में पाण्डवों ने अपने अज्ञातवास के दिनों को बिताया था. कौरवों को जब उनके अज्ञातवास का पता चल गया तो वे ‘कौरवछिना’, जिसे आजकल ‘कुकुछिना’ कहते हैं, वहां तक उनका पीछा करते हुए पहुंच गए. परन्तु देवी दुनागिरि की कृपा से सुरक्षित रह कर ‘पाण्डुखोली’ में पाण्डवों ने कुछ समय तक वास किया। उसके बाद कौरवों की सेना से बचते हुए पाण्डवों ने ‘मत्स्यदेश’ (मासी) की राजधानी विराट नगरी की ओर प्रस्थान किया. वर्त्तमान में महाभारत के मत्स्यदेश की पहचान मासी से और विराट नगरी की पहचान गेवाड़ घाटी स्थित बैराठ नगरी से की जा सकती है. इसी ‘बैराठ’ क्षेत्र में आज चौखुटिया नगर बसा है. देवभूमि उत्तराखण्ड के प्राचीन इतिहास के जानकार महात्मा हरनारायण स्वामी जी ने महाभारतकालीन विराट नगर की देवी को चौखुटिया स्थित ‘अगनेरी देवी’ माना है. दुनागिरि के निकट रामगंगा के किनारे आज भी इस विराट नगरी के प्राचीन पुरातात्त्विक अवशेष देखे जा सकते हैं. यहीं पर नदी के किनारे कीचक घाट भी है जहां भीम ने कीचक का वध किया था. कत्यूरी राजा आसन्ति वासन्ति देव का यहीं राज-सिंहासन भी था। बताते हैं कि सन् 1900 में गेवाड़ घाटी के सम्मानित लोगों ने पुराने मंदिर का जीर्णोद्घार कर उसे नया स्वरूप दिया। तब मंदिर में अष्टभुजा खड़कधारी महिशासुर मर्दनी मां भगवती माता की मूर्ति विराजमान थी, वर्ष 1970 में चोरों ने मूर्ति को चुरा लिया। इसके बाद मां काली माता की नई मूर्ति की स्थापना की गई। करीब वर्ष 1902 से यहां पर प्रतिवर्ष चैत्राष्ठमी का मेला लगता है।
अग्नेरी मंदिर की खास बात
यह भी मान्यता है कि कत्यूरी राजा सोमदेव ने 1276 में इस मंदिर से कुछ ही दूर गांव धुधलिया के पास नदी किनारे विशाल पत्थर की गणेश जी की मूर्ति स्थापित की थी। जो बाद में नदी के बाढ़ से गिरकर तिरछी हो गई। जो आज भी वहीं पर स्थित है। कहते हैं कि गणेश की मूर्ति के चलते ही गेवाड़ घाटी नाम सामने आया। अगनेरी मैया सबकी मनोकामना पूर्ण करती है। दूर-दूर से पहुंचकर श्रद्घालु मां के दरबार में शीश नवाकर मन्नतें मांगते हैं। मन्नतें पूर्ण होने पर फिर मंदिर में पूजा देते हैं। यह क्रम पूरे सालभर चलता रहता है।
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महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक साक्ष्य
महाभारत के विराट पर्व में वर्णित ‘दुर्गास्तोत्र’ दुनागिरि क्षेत्र में शक्ति पूजा के उत्तराखण्डीय स्वरूप पर प्रकाश डालने वाला एक महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक साक्ष्य है. इस स्तोत्र की फलश्रुति से ज्ञात होता है कि देवी के आशीर्वाद से ही पाण्डवों ने महाभारत के घनघोर युद्ध में कौरवों को पराजित करके अपने खोए हुए राज्य को पुनः प्राप्त किया था।‘बैराठ’ देवी का स्वयं कथन है कि जो भी इस स्तोत्र का पाठ करेगा वह धन-धान्य, सुख-सम्पत्ति से युक्त होगा और सब प्रकार की बाधाओं से मुक्त होकर उसके सभी मनोवांछित कार्य सिद्ध होंगे. देवी ने पांडवों को भी आशीर्वाद देते हुए कहा कि मेरी कृपा प्रसाद से तुम सब पाण्डवों को विराट नगर में रहते हुए कौरव जन अथवा वहां के निवासी पहचान नहीं पाएंगे।
मंदिर का निर्माण
मंदिर का निर्माण पौराणिक शैली में किया गया है। मंदिर पर लगे कई पत्थरों पर विभिन्न सुंदर आकृतियां बनाई गई हैं। मंदिर को भव्य रूप तो दे दिया गया है, लेकिन मंदिर पर लगे पत्थर यथावत हैं। अगनेरी मंदिर में स्थापित मां काली के प्रति श्रद्धालुओं की अटूट श्रद्धा है। परिसर में अन्य कई देवी- देवताओं के मंदिर भी हैं। प्रतिवर्ष चैत्र नवरात्र के दौरान चैत्राष्ठमी का विशाल मेला लगता है नवरात्र में तो मैया के दर्शन को लंबी लाइन लग जाती है। साथ ही समय-समय पर कथाएं व अन्य धार्मिक आयोजन भी होते रहते हैं। मां-अगनेरी मैया सबकी मनोकामना पूर्ण करती है। दूर-दूर से पहुंचकर श्रद्धालु मां के दरबार में शीश नवाकर मन्नतें मांगते हैं। मन्नतें पूर्ण होने पर फिर मंदिर में पूजा देते हैं। यह क्रम पूरे सालभर चलता रहता है।
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