द्वाराहाट/अल्मोड़ा: जनपद अल्मोड़ा के विकासखंड द्वाराहाट में स्थित पांडूखोली एक ऐसी जगह है जहां गुफाएं हैं और यह द्वाराहाट से 27 किलोमीटर की दूरी पर स्थित हैं, जहाँ उत्तराखंड के विभिन्न शहरों से सड़क परिवहन द्वारा पहुंचा जा सकता है। आपको बता दे कि उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले में द्वाराहाट से लगभग 14 किलोमीटर की दुरी पर दुनागिरि मंदिर स्थित है, मंदिर के लिए सड़क से लगभग 1 किलोमीटर का पैदल दूरी तय करके पंहुचा जा सकता है। सड़क के किनारे वाहनों की पार्किंग, कुछ रेस्टोरेंट, दैनिक आवश्यकताओं से जुड़े सामान से सम्बंधित दुकानो के साथ साथ प्रसाद इत्यादि के प्रतिष्ठान आप को सड़क से लगे हुए स्थित हैं।
अगर बात यहां पहुंचने की करे तो आप यहाँ रानीखेत से द्वाराहाट होते हुए पहुँचा जा सकता है। इस स्थान से आगे 5 किलोमीटर की दूरी पर कुकुछीना नामक स्थान है और कुकुछीना से लगभग 4 किलोमीटर का ट्रेक करके सुप्रसिद्धि पाण्डुखोली आश्रम पंहुचा जा सकता है, जहाँ स्वर्गीय बाबा बलवंतगिरि जी ने एक आश्रम की स्थापना की थी।पाण्डुखोली महावतार बाबा और लाहिड़ी महाशय जैसे उच्च आध्यात्मिक संतो की तपस्थली रही है।
दूनागिरी मंदिर
अब बात करते है दूनागिरी मंदिर की दुनागिरि मंदिर के दर्शन हेतु आने वाले श्रद्धालु सीढ़ियां चढ़ कर दुनागिरि मंदिर तक पहुंचते हैं। मंदिर तक ले जाने वाला मार्ग बहुत सुन्दर हैं, पक्की सीढिया, छोटे -२ स्टेप्स, जिसमे लगभग हर उम्र के लोग चल सकते है, मार्ग के दोनों ओर दीवार और दीवार के ऊपर लोहे की रैलिंग लगी हैं, जिससे वन्य प्राणी और मनुष्य एक दूसरे की सीमा को न लांघ सके इसलिए इसका निर्माण किया है। मंदिर तक पहुंचने के लिए करीब 400 सीढ़ियां चढ़नी होती है, पूरा रास्ता टीन की छत से ढका हुआ है, जिससे श्रद्धालुओं का धुप और बारिश से बचाव होता है।
कहा जाता है कि पांडवों ने अपने अज्ञातवास पांडवखोली के जंगलों में व्यतीत किये। यही नहीं पांडवों की तलाश में कौरव सेना भी पहुंची इस लिए इसे कौरवछीना भी कहा जाता था। लेकिन अब वर्तमान में कुकुछीना के नाम से जाना जाता है।
इसे पढ़े : Dunki OTT release: शाहरुख की फिल्म इस डेट को हो रही है रिलीज
माना जाता है, हमारे युग के सर्वकालिक महान गुरु महावतार बाबा बीते पांच हजार साल से भी अधिक समय से यहां साधनारत हैं, उन्होंने दुनागिरि मंदिर में भी ध्यान किया था, उनका ध्यान स्थल दुनागिरि मंदिर भी देखा जा सकता हैं। लाहिड़ी महाशय उच्च कोटि के साधक थे, पांडुखोली पहुंच गए, जहां महावतार बाबा ने उन्हें क्रिया योग की दीक्षा दी थी।