नई दिल्ली: कोलकाता के आरजी कर मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में महिला डॉक्टर से हुई दरिंदगी की घटना पर सुप्रीम कोर्ट फिलहाल एक्शन मोड में है. सोशल मीडिया पर रेप पीड़िता की तस्वीर खासी वायरल हो रही है, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने गलत बताया है। साथ ही साथ लोगों को फटकार लगाई कि वे पीड़िता का नाम सोशल मीडिया पर सर्कुलेट कर रहे हैं। साल 2012 में दिल्ली गैंगरेप पीड़िता को भी असल नाम की बजाए निर्भया कहा गया था. जानिए, क्या होता है अगर कोई रेप पीड़िता की पहचान जाहिर कर दे।
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जजों की बेंच ने एक ऑर्डर पास करते हुए कहा कि सोशल और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया मृतका की पहचान उजागर कर रहे हैं, जो कि गलत है. वे तुरंत सारी तस्वीरें, नाम, वीडियो समेत वे सारी चीजें प्लेटफॉर्म से हटा लें, जिससे पीड़िता की पहचान पता लगने का डर हो।
किस सेक्शन के तहत पहचान पर बात
भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) का सेक्शन 72 इस बारे में बात करता है. कोई भी शख्स या समूह अगर किसी ऐसे व्यक्ति की पहचान जाहिर करता, उसकी तस्वीरें छापता, सोशल मीडिया या टीवी पर दिखाता है, जिसके साथ यौन शोषण हुआ हो, या जिसने ये आरोप लगाया हो, ऐसे मामले में आइडेंटिटी जाहिर करने वाले व्यक्ति को कुछ महीनों से लेकर दो साल की कैद हो सकती है. बता दें कि बीएनएस के 64 से लेकर 71 तक के सेक्शन्स में महिलाओं और बच्चों के साथ रेप और यौन दुर्व्यवहार पर बात होती है।
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सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?
सुप्रीम कोर्ट ने याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि मीडिया संस्थान जिस तरह से कोलकाता के आरजी कर मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में दरिंदगी की शिकार हुई पीड़िता का नाम और उसकी पहचान उजागर कर रहे हैं, वो पूरी तरह गलत है. इसके साथ ही कहा कि ये सुप्रीम कोर्ट के फैसले में दी गई व्यवस्था के भी खिलाफ है क्योंकि रेप पीड़िता की पहचान उजागर नहीं की जा सकती।
पहचान जाहिर न करने का निर्देश क्यों
सुप्रीम कोर्ट ने ऐसे कई मामलों का हवाला दिया, जहां पीड़िता के नाम का खुलासा होने के बाद उसे और उसके परिवार को परेशानियां झेलनी पड़ीं. पहचान का खुलासा हो जाने के बाद बहुत से लोग असंवेदनशीलता में उनके जख्मों को कुरेदते हैं. यहां तक कि पीड़िता चाहकर भी सामान्य जिंदगी में लौट नहीं पाती. रेप के बाद इस अतिरिक्त तकलीफ से बचाने के लिए अदालतें पीड़िता की पहचान गुप्त रखने की बात करती रहीं. ये बात दुनिया के लगभग सारे देशों में है।
पुलिस के लिए भी निर्देश
कोर्ट ने समय-समय पर पुलिस अधिकारियों को भी निर्देश दिए कि वे केस से जुड़े दस्तावजों को सावधानी से हैंडल करें. जिन रिपोर्ट्स में पीड़िता की पहचान हो, उन्हें सीलबंद करके ही जांच एजेंसियों या कोर्ट तक पहुंचाया जाए ताकि गोपनीयता बनी रहे.सुप्रीम कोर्ट ने बार-बार दोहराया कि ट्रायल कोर्ट और हाई कोर्ट को पीड़ितों की गोपनीयता बनाए रखने की जरूरत है. किशोरों और रेप पीड़िताओं से जुड़े मामलों में पहचान छिपाने के लिए X या इसी तरह के नामों का इस्तेमाल किया जाता है. बीएनएस का सेक्शन 72 पहले आईपीसी का सेक्शन 228 ए था. इसमें रेप पीड़िता की पहचान या ऐसा कोई भी हिंट, जो उसकी पहचान तक ले जाता हो, उसे पब्लिश नहीं किया जा सकता.
क्या अदालतों को पहचान खोलने की छूट है
अदालतों पर कोई पाबंदी नहीं लगाई गई लेकिन तब भी सर्वोच्च अदालत इस पर लगातार बात करती रही. उसने कर्नाटक और राजस्थान समेत कई ऐसे केस पर टोका, जहां अदालतों ने प्रोसिडिंग्स के दौरान पीड़िता की पहचान जाहिर कर दी. जुलाई 2021 के एक आदेश में, सुप्रीम कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के जजों से कहा था कि वे अपने आदेशों में यौन अपराध मामलों के पीड़ितों की पहचान का खुलासा करने से बचें।
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