देहरादून: उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले के चौखुटिया से शुरू हुआ जनआंदोलन ‘ऑपरेशन स्वास्थ्य’ अब पूरे राज्य में स्वास्थ्य सेवाओं की बदहाली का प्रतीक बन चुका है। ग्रामीणों द्वारा 2 अक्टूबर को गांधी जयंती के अवसर पर प्रारंभ की गई यह पदयात्रा चौखुटिया से देहरादून तक पहुंचने से पहले जनता के बीच व्यापक समर्थन हासिल कर चुकी थी। लोगों का कहना है कि बीते 25 वर्षों में क्षेत्रीय स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति इतनी दयनीय हो चुकी है कि आम जनता को मामूली इलाज के लिए भी कई किलोमीटर का सफर तय करना पड़ता है।
इस आंदोलन की शुरुआत चौखुटिया के युवाओं, सामाजिक कार्यकर्ताओं और स्थानीय गांवों के नागरिकों ने मिलकर की। उन्होंने स्वास्थ्य केंद्रों में डॉक्टरों की कमी, दवाओं की अनुपलब्धता और प्राथमिक चिकित्सा सेवाओं की जर्जर स्थिति को लेकर सरकार से जवाब मांगा। उनका कहना है कि आज भी चौखुटिया ब्लॉक के कई प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में डॉक्टरों की नियुक्ति नहीं हो पाई है। जहां अस्पताल हैं भी, वहां मशीनें नहीं चल रहीं और एंबुलेंस सेवाएं अक्सर ठप रहती हैं।
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24 अक्टूबर को चौखुटिया से पदयात्रा प्रारंभ हुई। करीब 10 दिनों तक यात्रा में शामिल लोग गांव-गांव से गुजरते हुए लोगों को स्वास्थ्य जागरूकता और अधिकारों के प्रति जागरूक करते रहे। उनके समर्थन में कई सामाजिक संगठन और स्थानीय प्रतिनिधि भी जुड़े। यह यात्रा जनता के धैर्य, एकजुटता और संघर्ष का प्रतीक बन गई। सोमवार शाम यानि आज जब यह यात्रा देहरादून पहुंची, तो जोगीवाला चौक के पास प्रशासन और पुलिस ने इस जत्थे को रोक दिया। प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, पुलिस ने यात्रियों को आगे बढ़ने से रोकते हुए बसों में बैठाकर जबरन ले जाने की कोशिश की। इससे यात्रियों और पुलिस के बीच काफी देर तक झड़प हुई। कई लोगों ने इस कार्रवाई को शांतिपूर्ण आंदोलन पर अंकुश लगाने की कोशिश बताया। यात्रियों का कहना था कि वे केवल अपनी जायज मांगों के साथ मुख्यमंत्री से मिलने जा रहे थे।
आंदोलन से जुड़े लोगों का कहना है कि ‘ऑपरेशन स्वास्थ्य’ सिर्फ एक क्षेत्रीय आंदोलन नहीं है, बल्कि यह पूरे उत्तराखंड के ग्रामीण इलाकों की आवाज है। पहाड़ी क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाओं की कमी से हर साल अनेक जानें असमय चली जाती हैं। प्रसूता महिलाओं और गंभीर रोगियों को प्राथमिक सुविधा तक न मिलना, राज्य की विकास नीतियों पर बड़ा सवाल उठाता है। सामाजिक कार्यकर्ता बताते हैं कि अगर सरकार ने इस दिशा में ठोस कदम नहीं उठाए, तो यह आंदोलन और व्यापक रूप ले सकता है। उनका कहना है कि पदयात्रा का उद्देश्य टकराव नहीं, बल्कि जनहित में संवाद स्थापित करना था। लेकिन जिस तरह से पुलिस ने यात्रा को रोका, उसने सवाल खड़े किए हैं कि क्या अब जनता को अपनी समस्याओं पर आवाज उठाने का भी अधिकार नहीं है?
जनता का स्पष्ट संदेश है कि स्वास्थ्य सेवा कोई सुविधा नहीं, बल्कि मौलिक अधिकार है। पहाड़ों की कठिन भौगोलिक परिस्थितियों में रहने वाले लोगों के लिए यह अधिकार और अधिक जरूरी बन जाता है। इसलिए चौखुटिया से उठी यह आवाज सिर्फ एक आंदोलन नहीं, बल्कि व्यवस्था में सुधार की पुकार है। उम्मीद है कि सरकार जनता की इस मांग को गंभीरता से लेते हुए स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार की दिशा में ठोस कदम उठाएगी।
