क्या आप जानते हैं कि कौवो को सामूहिक रूप से रहना पसंद है। ये बेहद बुद्धिमान और तेज़ स्मरणशक्ति वाले पक्षी होते हैं। कौवे हर प्रकार का भोजन खाते हैं, यानी वे सर्वाहारी होते हैं। हम उनकी आवाज़ को कर्कश मानते आए हैं, लेकिन ये आवाज़ उनके संवाद का हिस्सा है। वे संवाद के लिए विभिन्न ध्वनियों का प्रयोग करते हैं। कौवे जटिल समस्याओं को हल करने में माहिर होते हैं अपने आसपास के खतरों को जल्दी भांप लेते हैं।
मकर संक्रांति 2025: मकर संक्रांति और उत्तरायणी पर्व पर कौवों का नदारद रहना बेहद चिंता का विषय है। दो-चार साल पहले तक गांव-गांव और घर-घर में कौवों का झुंड काफी संख्या में मंडराता था। लेकिन अब अचानक कौवों की प्रजाति विलुप्त सी हो गई है।
मकर संक्रांति पर्व पर अक्सर आसमान में काफी कौवे मंडराते हुए दिखाई देते थे। लेकिन कुछ वर्षों से यह गायब हो गए है। कई गावों में घुघुते खाने के लिए भी कौवे नजर तक नहीं आए। इससे सा़फ प्रतीत होता है कि अब कौवों की प्रजाति विलुप्त होने के कगार पर है। यह पक्षी विज्ञानियों के लिए एक शोध का विषय भी है साथ की बेहद चिंता की बात भी है।
वही मकर संक्रांति के अगले दिन कुमाऊं में‘काले कौवा काले, घुघुती की माला खा ले’ गाकर बच्चे कौवों को बुलाते हैं लेकिन अब आह्वान के बावजूद यह पक्षी कम ही आता है। ऐसे में पक्षी विशेषज्ञों को चिंता है कि कहीं इनका जीवन खतरे में तो नहीं है। एक दौर था जब इस दिन कौवे पकवान खाने अवश्य आते थे, लेकिन पिछले कुछ सालों से कौवे दिखाई नहीं दे रहे हैं। जंगल कटान, शहरीकरण, कीटनाशकों का उपयोग, बदलती जलवायु और फैलता प्रदूषण इनके कम होने की वजह मानी जा रही है।
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पर्वतीय अंचल मे मकर संक्रांति का घुघुतिया त्योहार व कौवे एक दूसरे के पूरक माने जाते रहे हैं, हाल के वर्षों मे कौए इस त्यौहार से नदारद होते जा रहे हैं। हालांकि माना जा रहा था कि बंदरों के आधिख्य से कौए दूर भाग रहे हैं लेकिन कौओं की संख्या मे अनपेक्षित कमी बड़ी चिंता का विषय है, पक्षी विज्ञानियों के लिए यह एक चुनौती है कि एकाएक कौवे क्यों कम होते जा रहे हैं, पर्यावरणीय असंतुलन, जगह जगह कूड़े के ढेरों मे पड़ा खाद्य आदि ऐसे कारण हो सकते हैं जिनके कारण कौए कम होते जा रहे हैं। हिन्दू धर्म के कर्मकाण्डों मे काक एक आवश्यक पक्षी है जिसे बचाया जाना अति आवश्यक है।
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कौवो के कम दिखने के कारण
- जंगलों की कटाई और शहरीकरण से कौओं के प्राकृतिक आवासों का खत्म होना।
- प्रदूषण और रसायनिक खादों के बढ़ते उपयोग से पक्षियों के स्वास्थ्य पर बुरा असर।
- मोबाइल टावरों से निकलने वाली तरंगें और जलवायु परिवर्तन भी एक कारण।
संरक्षण के उपाय
- लोगों को जैव विविधता के महत्व के बारे में शिक्षित करना।
- कौवों के लिए सुरक्षित आवास उपलब्ध कराना।
- पर्यावरण अनुकूल खेती को बढ़ावा देना।
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