अल्मोड़ा। उत्तराखंड के बिनसर क्षेत्र के बुरुषखोटिया जंगल में लगी भीषण आग अब तक पांच लोगों की जान ले चुकी है। इस त्रासदी ने वन विभाग की सुरक्षा व्यवस्थाओं और जंगल में आग से निपटने की तैयारियों पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। ताज़ा घटना में, 21 वर्षीय फायर वॉचर कृष्ण कुमार, जो दिल्ली के एम्स में सात दिनों तक जीवन और मृत्यु के बीच संघर्ष कर रहे थे, ने अपनी अंतिम सांस ली। उनके निधन के साथ ही इस हादसे में मृतकों की संख्या पांच हो गई है।
हादसे का विवरण
यह भयावह घटना 13 जून, गुरुवार को तब हुई जब दोपहर करीब 4 बजे बुरुषखोटिया जंगल में आग भड़क उठी। वन विभाग के आठ कर्मचारी आग बुझाने के लिए मौके पर पहुंचे, लेकिन वे स्वयं इस आग की चपेट में आ गए। हादसे में चार कर्मचारियों की मौके पर ही मौत हो गई, जबकि बाकी चार गंभीर रूप से घायल हो गए। घायलों को तुरंत अल्मोड़ा के बेस अस्पताल में प्राथमिक उपचार के बाद हल्द्वानी और फिर एयरलिफ्ट कर दिल्ली के एम्स में भर्ती कराया गया।
एम्स में भर्ती घायलों में से एक, कृष्ण कुमार, ग्राम भेटुली के निवासी, ने सात दिनों तक संघर्ष करने के बाद दम तोड़ दिया। उनकी मौत ने पूरे क्षेत्र को शोक और आक्रोश में डाल दिया है। 21 वर्षीय कृष्ण कुमार का यह बलिदान वन विभाग के कर्मचारियों की निस्वार्थ सेवा और उनके कर्तव्यपरायणता को दर्शाता है।
राज्य सरकार की प्रतिक्रिया
राज्य सरकार ने इस घटना पर गहरा दुख और संवेदना व्यक्त की है। मुख्यमंत्री ने मृतकों के परिवारों को हर संभव सहायता प्रदान करने का आश्वासन दिया है। साथ ही, जंगल की आग की बढ़ती घटनाओं को रोकने और वन कर्मचारियों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए विशेष उपायों की घोषणा की गई है।
सरकार ने यह भी कहा है कि जंगलों में लगी आग को रोकने के लिए संसाधनों की कमी नहीं होने दी जाएगी। आधुनिक उपकरण, विशेष सुरक्षा गियर और फायर मैनेजमेंट ट्रेनिंग की आवश्यकता पर भी जोर दिया गया है। हालांकि, स्थानीय लोगों और विशेषज्ञों का मानना है कि केवल घोषणाओं से समस्या का समाधान नहीं होगा, बल्कि ठोस कदम उठाने होंगे।
स्थानीय जनता और वन विभाग का शोक
कृष्ण कुमार के निधन ने उनके गांव भेटुली और वन विभाग के कर्मचारियों को गहरे शोक में डाल दिया है। गांव के लोगों ने इस घटना पर अपनी गहरी संवेदना व्यक्त करते हुए जंगल की आग से निपटने के लिए बेहतर संसाधनों और प्रशिक्षण की मांग की है।
वन विभाग के कर्मचारियों का कहना है कि आग बुझाने के दौरान उन्हें बुनियादी सुरक्षा उपकरण भी उपलब्ध नहीं थे। कर्मचारियों ने इस बात पर भी नाराजगी जताई कि जंगल की आग की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं, लेकिन उनके लिए पर्याप्त तैयारी नहीं की जा रही है।
जंगल की आग: गंभीर चुनौती
यह घटना एक बार फिर जंगल की आग से होने वाले खतरों को उजागर करती है। हर साल गर्मियों के मौसम में उत्तराखंड के जंगलों में आग की घटनाएं बढ़ जाती हैं, जो न केवल पर्यावरण को नुकसान पहुंचाती हैं बल्कि वन्यजीवों और मानव जीवन को भी खतरे में डालती हैं।
विशेषज्ञों का कहना है कि जंगलों में आग लगने के पीछे कई कारण हो सकते हैं, जिनमें गर्म मौसम, सूखी घास, और मानव गतिविधियां प्रमुख हैं। आग बुझाने के लिए आधुनिक उपकरणों और बेहतर रणनीतियों की आवश्यकता है। साथ ही, स्थानीय समुदायों को भी इस दिशा में जागरूक और प्रशिक्षित करना होगा।
आगे की राह
इस हादसे ने वन विभाग और राज्य सरकार को एक सख्त चेतावनी दी है कि जंगलों की सुरक्षा और आग से निपटने की तैयारियों को प्राथमिकता दी जाए। इसके लिए ठोस कदम उठाने होंगे, जैसे:
- आधुनिक फायरफाइटिंग उपकरणों की खरीद और वितरण।
- कर्मचारियों के लिए सुरक्षा गियर की उपलब्धता।
- जंगल की आग रोकने के लिए स्थानीय समुदायों की भागीदारी।
- समय-समय पर कर्मचारियों को आग से निपटने का प्रशिक्षण।
- आग की घटनाओं की निगरानी के लिए सैटेलाइट और ड्रोन तकनीक का उपयोग।
बुरुषखोटिया जंगल में लगी आग की इस दुखद घटना ने पूरे राज्य को झकझोर कर रख दिया है। कृष्ण कुमार और अन्य मृतकों का बलिदान व्यर्थ नहीं जाना चाहिए। यह समय है कि सरकार और वन विभाग जंगल की आग से निपटने के लिए अपनी रणनीतियों को दुरुस्त करें और यह सुनिश्चित करें कि भविष्य में ऐसी घटनाएं न हों। यह केवल मृतकों को सच्ची श्रद्धांजलि होगी।

