जागर ( देवनागरी : जागर) शमनवाद का एक हिंदू रूप है जो उत्तराखंड की पहाड़ियों में गढ़वाल और कुमाऊं दोनों में प्रचलित है। एक अनुष्ठान के रूप में, जागर एक ऐसा तरीका है जिसमें देवताओं और स्थानीय देवताओं को उनकी निष्क्रिय अवस्था से जगाया जाता है और उनसे अनुग्रह या उपाय मांगे जाते हैं। यह अनुष्ठान ईश्वरीय न्याय के विचार से जुड़ा हुआ है और किसी अपराध के लिए प्रायश्चित करने या किसी अन्याय के लिए देवताओं से न्याय मांगने के लिए किया जाता है। जागर शब्द संस्कृत मूल, जगा से आया है , जिसका अर्थ है “जागना”।
संगीत वह माध्यम है जिसके ज़रिए देवताओं का आह्वान किया जाता है। गायक या जगरिया, महाभारत या रामायण जैसे महान महाकाव्यों के संदर्भ में देवताओं की गाथा गाते हैं, जिसमें आह्वान किए जा रहे देवता के कारनामों और कारनामों का वर्णन किया जाता है। समय के साथ विकसित होने के बाद, जागर गायन एक कला रूप में बदल गया है जिसे बहुत सराहा जाता है, जिसके प्रतिपादकों को अक्सर जीवित विरासत के रूप में सम्मानित किया जाता है।
ये परंपराएँ लोक हिंदू धर्म का हिस्सा हैं , जो मुख्यधारा के हिंदू धर्म के साथ-साथ अस्तित्व में है और पूरे हिमालय में प्रचलित है । हिमालय के भीतर कठिन जीवन और प्रकृति की अनिश्चितताओं के निरंतर संपर्क ने अलौकिक घटनाओं और कई लोक देवताओं में एक मजबूत विश्वास को प्रेरित किया, जिन्हें बहुत सम्मान और आदर दिया गया था। हर गाँव का अपना देवता होता था, जिसे भूम्याल या क्षेत्रपाल कहा जाता था , जो उसकी सीमाओं की रक्षा करता था। प्रत्येक परिवार का अपना कुलदेव या कुलदेवी होता है। इसके अलावा, कई अन्य परोपकारी देवी-देवता थे जो लोगों को पुरस्कृत कर सकते थे, साथ ही दुर्भावनापूर्ण आत्माएं भी थीं जो लोगों को पीड़ा दे सकती थीं। ये प्रथाएं दुनिया भर के प्राचीन संस्कारों में प्रचलित शैमनिस्टिक परंपराओं के समान हैं। जबकि इनमें से अधिकांश देवता खो गए हैं या एकेश्वरवादी प्रथाओं में शामिल हो गए हैं , हिंदू धर्म में मजबूत कुलदेवता परंपराएं हैं,जागर समारोहों में आम तौर पर तीन प्राथमिक प्रकार होते हैं। पहला देव जागर है , या किसी देवता का आह्वान, जिसमें आमतौर पर माध्यम के शरीर में रहने वाले स्थानीय देवता शामिल होते हैं। दूसरा भूत जागर है , या माध्यम के शरीर में किसी मृत व्यक्ति की आत्मा या आत्मा का आह्वान। अन्य कम प्रचलित रूपों में मसान पूजा शामिल है ।
जागर का इतिहास
जागर की परंपरा उत्तराखंड में प्राचीन काल से चली आ रही है। यह देवभूमि के लोकसंस्कृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। उत्तराखंड के जागर देवताओं में प्रमुख रूप से गोलू देवता, भोलानाथ, नरसिंह, देवी भगवती, नागराज आदि की पूजा की जाती है। यह परंपरा पीढ़ियों से चली आ रही है, और लोकगायकों द्वारा इसे जीवित रखा गया है।
जागर की शुरुआत कब और कैसे हुई इसका कोई सटीक प्रमाण नहीं है, लेकिन माना जाता है कि इसका संबंध हिमालयी क्षेत्र के प्रकृति पूजन और लोकदेवता पूजा की प्राचीन परंपराओं से है।
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जागर के 3 प्रकार के महत्व
अध्यात्मिक महत्व
जागर का मुख्य उद्देश्य लोक देवताओं और पूर्वजों का आह्वान कर उनसे आशीर्वाद प्राप्त करना होता है। जिस में हुड़का, ढोल, थाली, डोंर, दमऊ बजाया जाता हैं। इसे आत्माओं और लोक देवताओं से जुड़ने का साधन माना जाता है। इसमें विशेष ध्यान, भक्ति, और श्रद्धा का भाव होता है, जिससे मानव और दिव्य शक्तियों के बीच का संबंध स्थापित होता है लोकगायकों के माध्यम से आत्माओं को जागृत कर उनसे भविष्यवाणियाँ और समस्याओं का समाधान प्राप्त करने का प्रयास किया जाता है।
धार्मिक महत्व
जागर को पारंपरिक रूप से उत्तराखंड की ‘शक्ति उपासना’ से जोड़ा जाता है, जहां देवी-देवताओं और स्थानीय लोक देवताओं की पूजा की जाती है। उच्च हिमालाई क्षेत्र में जागर के दौरान स्थानीय कथाएं और पौराणिक आख्यानों का गायन किया जाता है, जिसमें विशेष रूप से शक्ति देवी, नाग देवता, और महाभारत के चरित्रों से संबंधित कथाएँ होती हैं। यह एक सामाजिक अनुष्ठान है, जिसमें पूरे गांव के लोग एकत्रित होते हैं और मिलकर पूजा करते हैं। इससे सामूहिकता की भावना बढ़ती है और समुदाय में एकजुटता आती है।
वैज्ञानिक महत्व
वैज्ञानिक दृष्टिकोण से जागर की ध्वनि तरंगों और संगीत के माध्यम से उपचारात्मक प्रभाव की संभावना है। जागर में इस्तेमाल किए जाने वाले ढोल-दमाऊं जैसे वाद्य यंत्रों की ध्वनि, मनुष्य के मस्तिष्क और शरीर पर सकारात्मक प्रभाव डालती है। कुछ शोधकर्ताओं का मानना है कि इन अनुष्ठानों में प्रयुक्त ध्वनियाँ शरीर की ऊर्जा को प्रभावित कर उसे संतुलित करने में सहायता कर सकती हैं। इसके अलावा, यह मान्यता है कि जागर में प्रयोग होने वाली ध्वनियाँ लोगों के मानसिक स्वास्थ्य पर भी सकारात्मक प्रभाव डालती हैं। सामूहिक जागर में सम्मिलित होना सामुदायिक एकता को मजबूत करता है, जिससे सामाजिक ताने-बाने में सुधार होता है। जागर में बजने वाली कांसी की थाली से ध्वनि उत्पन्न होती है, जिसे शास्त्रीय रूप से ध्वनि तरंगें कहा जाता है। ध्वनि तरंगों का रंग उनके कंपन की दर पर निर्भर करता है। ध्वनि आवृत्ति कांसी की थाली से उत्पन्न ध्वनि मुख्यतः मध्यम और उच्च आवृत्तियों की होती है। जब इसे बजाया जाता है, तो विभिन्न आवृत्तियों की ध्वनि तरंगें उत्पन्न होती हैं, जिन्हें मानव कान अलग-अलग तीव्रता में सुनता है। ध्वनि का मानव मस्तिष्क पर प्रभाव कुछ इस तरह होता हैं कि ध्यान व एकाग्रता कांसी की थाली की मध्यम आवृत्ति की ध्वनि मस्तिष्क को ध्यान और एकाग्रता में मदद कर सकती है। यह ध्वनि “ओम” की तरह कंपन उत्पन्न करती है, जो शांतिपूर्ण मानसिक स्थिति को प्रेरित कर सकती है।
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