उत्तराखंड में पांच पवित्र संगम स्थल हैं, जिन्हें पंच प्रयाग Panch Prayag कहा जाता है। प्रयाग का अर्थ होता है संगम जहाँ दो नदियों का संगम होता है उसे प्रयाग कहा जाता है| उत्तराखंड के पांच प्रयागों में भी अलग अलग नदियों का संगम होता है इसलिए इसे पंच प्रयाग Panch Prayag कहते है| इन पांच प्रयागों के नाम इस प्रकार है विष्णुप्रयाग, नंदप्रयाग, कर्णप्रयाग, रुद्रप्रयाग और देवप्रयाग|
विष्णुप्रयाग Vishnuprayag:-
विष्णु प्रयाग यह सागर तल से 1372 मी० की ऊंचाई पर स्थित है। यह जोशीमठ-बद्रीनाथ मोटर मार्ग पर स्थित और जोशीमठ से 12 किमी दूर और पैदल मार्ग से 3 किमी की दूरी पर स्थित है। यहां पर अलकनंदा और विष्णुगंगा (धौली गंगा) नदियों का संगम होता हैं। विष्णु प्रयाग को भगवान विष्णु की तपस्या स्थली माना जाता है और यहाँ भगवान विष्णु जी का प्राचीन मंदिर और विष्णु कुण्ड भी हैं। स्कंदपुराण में इस तीर्थ का वर्णन किया गया है जिसमे कुंडों का वर्णन किया गया है और बताया गया है की विष्णु गंगा में 5 तथा अलकनंदा में 5 कुंड है। यहीं से सूक्ष्म बदरिकाश्रम प्रारंभ होता है। इसी स्थल के दायें-बायें दो पर्वत हैं, जिन्हें भगवान के द्वारपालों के रूप में जाना जाता है। दायें को जय और बायें को विजय कहा जाता हैं। विष्णु प्रयाग से 8 किमी दूर गोबिंद घाट है जहाँ पर गुरुद्वारा बना हुआ है|
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नन्दप्रयाग Nandprayag:-
नन्दाकिनी तथा अलकनंदा नदियों के संगम पर नन्दप्रयाग स्थित है। यह समुद्रतल से 2805 फ़ीट की ऊंचाई पर तथा ऋषिकेश से 190 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। कर्णप्रयाग से बदरीनाथ मार्ग पर 21 किमी आगे नंदाकिनी एवं अलकनंदा का पावन संगम है और संगम में ही भगवान शंकर का मंदिर है और यहाँ पर चंडिका मंदिर, लक्ष्मीनारायण और गोपाल जी का सुन्दर मंदिर स्थल है| नंदप्रयाग को कण्व आश्रम कहा गया है जहाँ कालिदास द्वारा दुष्यंत एवं शकुंतला की कहानी लिखी गयी थी। पौराणिक कथा के अनुसार यहां पर नंद महाराज ने भगवान नारायण को प्रस्न्न करने और उन्हें पुत्र रूप में प्राप्त करने के लिए तपस्या की थी। और यहाँ पर नंदादेवी का भी एक सुंदर मन्दिर है। नंदाकिनी का संगम, नन्दा देवी का मंदिर, नंद की तपस्थली इन सभी कारणो से इस स्थान का नाम नंदप्रयाग पड़ा|
कर्णप्रयाग Karnaprayag:-
दानवीर कर्ण की नगरी कर्णप्रयाग ऋषिकेश से 170 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। पिंडारी गलेशियर से आती पिंडर नदी और अलकनंदा नदी के संगम पर कर्णप्रयाग स्थित है। पिण्डर नदी को कर्ण गंगा भी कहते है, जिसके कारण ही इस संगम का नाम कर्ण प्रयाग पडा। यहां पर भगवती उमा देवी का प्राचीन मंदिर दर्शनीय है और संगम से पश्चिम की ओर शिलाखंड के रूप में दानवीर कर्ण की तपस्थली और मन्दिर हैं। यहीं पर महादानी कर्ण द्वारा भगवान सूर्य की आराधना और अभेद्य कवच कुंडलों को प्राप्त किया कर्ण की तपस्थली होने के कारण ही इस स्थान का नाम कर्णप्रयाग पड़ा।
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रुद्रप्रयाग Rudraprayag:-
मन्दाकिनी तथा अलकनंदा नदियों के संगम पर रुद्रप्रयाग स्थित है। यह उतराखंड के पांच प्रयागों Panch Prayag में से एक है| समुद्र तल से 610 मीटर की ऊंचाई पर बसा रुद्रप्रयाग केदारनाथ और बद्रीनाथ मोटर मार्ग का मुख्य पड़ाव है| रुद्रप्रयाग ऋषिकेश से लगभग 139 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। संगम स्थल के समीप भगवान रुद्रनाथ का पुराना मंदिर और चामुंडा देवी का मंदिर दर्शनीय है। रुद्रप्रयाग से 4 किलोमीटर दूर अलकनंदा नदी के किनारे पर कोटेश्वर मंदिर भी दर्शनीय है और संगम से कुछ ऊपर भगवान शंकर का `रुद्रेश्वर’ नामक लिंग हैं| ऐसा माना जाता है कि नारद मुनि ने इस स्थान पर संगीत के रहस्यों को जानने के लिये “रुद्रनाथ महादेव” की अराधना की थी। पुराणों में इस तीर्थ के बारे में बहुत सी जानकारी दी गयी है जैसे:- यहीं पर ब्रह्माजी की आज्ञा से देवर्षि नारद ने हज़ारों वर्षों की तपस्या की और भगवान शंकर से गांधर्व शास्त्र प्राप्त किया था, यहीं पर भगवान रुद्र ने श्री नारदजी को `महती’ नाम की वीणा भी प्रदान की थी। रुद्रप्रयाग से ही केदारनाथ के लिए मोटर मार्ग है|
देवप्रयाग Devprayag:-
ऋषिकेश से 71 किलोमीटर दूर बद्रीनाथ मार्ग पर उतराखंड के पांच प्रयागों Panch Prayag में से एक है देवप्रयाग| यहाँ पर ही भागीरथी और अलकनंदा का संगम होता है इसी संगम स्थल के बाद इस नदी को गंगा के नाम से जाना जाता है। गढवाल क्षेत्र में भगीरथी नदी को सास तथा अलकनंदा नदी को बहू कहा जाता है। यह समुद्र सतह से 1500 फ़ीट की ऊंचाई पर स्थित है। यह जगह प्राचीन काल से ही तपस्थली के रूप में जनी जाती रही है| स्कंद पुराण केदारखंड में इस तीर्थ का विस्तार से वर्णन मिलता है जिसमे बताया गया है कि देव शर्मा नामक ब्राह्मण ने सतयुग में निराहार सूखे पत्ते चबाकर तथा एक पैर पर खड़े रहकर एक हज़ार वर्षों तक इस स्थान पर तप किया तथा भगवान विष्णु के दर्शन किये और वर प्राप्त किया। जिसके नाम पर ही इस जगह का नाम देवप्रयाग हो गया| देवप्रयाग में भगवान राम ने भी तपस्या की थी| आदिगुरु शंकराचार्य भी नौंवी सदी में देवप्रयाग आए थे और उनके काफी शिष्य देवप्रयाग में ही बस गए थे| देवप्रयाग में अलकनंदा पर वशिष्ठ कुंड बना हुआ है और भागीरथी पर ब्रह्मकुंड बना हुआ है| देवप्रयाग के संगम में स्नान करने के लिए पूरा वर्ष यात्री आते रहते हैं| देवप्रयाग में शिव मंदिर तथा रघुनाथ मंदिर है, जो की यहां के मुख्य आकर्षण हैं। रघुनाथ मंदिर द्रविड शैली से निर्मित है। ऐसा कहा जाता है रावण का वध करने से भगवान राम पर ब्रहम हत्या का दोष लग गया था| इसको दूर करने के लिए भगवान राम ने यहाँ पर तपस्या की थी| देवप्रयाग को सुदर्शन क्षेत्र भी कहा जाता है। बद्रीनाथ और केदारनाथ जाने वाले यात्री इस जगह पर रुक कर इस संगम का आंनद लेके ही आगे की यात्रा करते है|