हरिवंश राय बच्चन: हिंदी साहित्य के एक अनमोल सितारे
हिन्दी साहित्य मे शब्द रूपी हाला को काव्य रूपी प्याले मे डालकर साहित्य के रसिकों को काव्य रस चखाने वाले हिंदी के महानतम कवि डॉ. हरिवंश राय बच्चन ने अपनी कविताओं से जो नशा उस समय अपने पाठकों के ऊपर बिखेरा था वो आज भी साहित्य मे रूचि रखने वाले हर पाठक के ऊपर चढ़ा है।
आज हम उसी साहित्य के नशे को बरकरार रखते हुए हिंदी काव्य में “हालावाद” के प्रवर्तक हरिवंश राय बच्चन जी की जयंती पर उन्हें शत शत नमन करते हैं। आज हम उनकी कुछ प्रमुख कविताओं और उनके जीवन के बारे में जानेंगे।
जिन्होंने खुद ही लिखा था –
मिट्टी का तन, मस्ती का मन,
क्षण भर जीवन-मेरा परिचय !
हरिवंश राय बच्चन जी की एक बहुत ही प्रसिद्ध कविता के साथ आज हम उन्हें उनकी जयंती पर याद करते हैं –
वृक्ष हों भले खड़े,
हों घने हों बड़े,
एक पत्र छांह भी,
मांग मत, मांग मत, मांग मत,
अग्निपथ अग्निपथ अग्निपथ।
तू न थकेगा कभी,
तू न रुकेगा कभी,
तू न मुड़ेगा कभी,
कर शपथ, कर शपथ, कर शपथ,
अग्निपथ अग्निपथ अग्निपथ।
यह महान दृश्य है,
चल रहा मनुष्य है,
अश्रु श्वेत रक्त से,
लथपथ लथपथ लथपथ,
अग्निपथ अग्निपथ अग्निपथ।
हरिवंश राय बच्चन का जीवन परिचय : प्रेरणा और उपलब्धियां
हरिवंश राय बच्चन जी का जन्म 27 नवम्बर 1907 को इलाहबाद में एक कायस्थ परिवार में हुआ था। इनके पिता का नाम प्रताप नारायण श्रीवास्तव तथा माता का नाम सरस्वती देवी था। इनके बाल्यकाल में इन्हें ‘बच्चन’ कहा जाता था जिसका अर्थ ‘बच्चा’ होता है। और बाद में ये इसी ‘बच्चन’ नाम से प्रसिद्ध हुए। बच्चन जी हिन्दी के उत्तर छायावाद काल के हालवादी काव्यधारा के एक प्रसिद्ध कवि और लेखक थे।
बच्चन जी इलाहाबाद विश्वविद्यालय में अंग्रेजी के अध्यापक रहे और बाद में भारत सरकार के विदेश मंत्रालय में हिन्दी विशेषज्ञ भी रहे। उसके बाद राज्य सभा सदस्य मनोनीत हुए । 18 जनवरी 2003 में सांस की बीमारी के वजह से मुंबई में उनका देहांत हो गया। प्रसिद्ध भारतीय फिल्म अभिनेता अमिताभ बच्चन उनके सुपुत्र हैं।
बच्चन जी के कुछ प्रमुख काव्य संग्रह इस प्रकार हैं –
मधुशाला , मधुबाला , मधुकलश , आत्म-परिचय , निशा निमंत्रण, एकांत संगीत , आकुल अंतर, सतरंगिनी, हलाहल,बंगाल का अकाल, खादी के फूल, मिलन यामिनी, प्रणय पत्रिका (1955), धार के इधर-उधर, आरती और अंगारे,बुद्ध और नाचघर, त्रिभंगिमा, दो चट्टानें आदि।
इसमें से हरिवंश राय बच्चन जी की प्रसिद्धि का आधार रही उनकी एक प्रमुख रचना “मधुशाला” है। उन्होंने स्वयं स्वीकार किया है कि कभी भी उन्होंने शराब नहीं पी फिर भी ऐसा एक काव्य लिख दिया जिसे पढ़ कर एक अलग आनंद उत्पन्न हो जाता है।
हरिवंश राय बच्चन की प्रेरक कविताएँ और काव्य संग्रह
मधुशाला काव्य के कुछ महत्वपूर्ण पद –
मृदु भावों के अंगूरों की आज बना लाया हाला,
प्रियतम, अपने ही हाथों से आज पिलाऊँगा प्याला,
पहले भोग लगा लूँ तेरा फिर प्रसाद जग पाएगा,
सबसे पहले तेरा स्वागत करती मेरी मधुशाला।।
प्रियतम, तू मेरी हाला है, मैं तेरा प्यासा प्याला,
अपने को मुझमें भरकर तू बनता है पीनेवाला,
मैं तुझको छक छलका करता, मस्त मुझे पी तू होता,
एक दूसरे की हम दोनों आज परस्पर मधुशाला।।
भावुकता अंगूर लता से खींच कल्पना की हाला,
कवि साकी बनकर आया है भरकर कविता का प्याला,
कभी न कण-भर खाली होगा लाख पिएँ, दो लाख पिएँ!
पाठकगण हैं पीनेवाले, पुस्तक मेरी मधुशाला।।
मदिरालय जाने को घर से चलता है पीनेवला,
‘किस पथ से जाऊँ? असमंजस में है वह भोलाभाला,
अलग-अलग पथ बतलाते सब पर मैं यह बतलाता हूँ-
‘राह पकड़ तू एक चला चल, पा जाएगा मधुशाला।।
सुन, कलकल़ , छलछल़ मधुघट से गिरती प्यालों में हाला,
सुन, रूनझुन रूनझुन चल वितरण करती मधु साकीबाला,
बस आ पहुंचे, दुर नहीं कुछ, चार कदम अब चलना है,
चहक रहे, सुन, पीनेवाले, महक रही, ले, मधुशाला।।
लाल सुरा की धार लपट सी कह न इसे देना ज्वाला,
फेनिल मदिरा है, मत इसको कह देना उर का छाला,
दर्द नशा है इस मदिरा का विगत स्मृतियाँ साकी हैं,
पीड़ा में आनंद जिसे हो, आए मेरी मधुशाला।।
धर्मग्रन्थ सब जला चुकी है, जिसके अंतर की ज्वाला,
मंदिर, मसजिद, गिरिजे, सब को तोड़ चुका जो मतवाला,
पंडित, मोमिन, पादिरयों के फंदों को जो काट चुका,
कर सकती है आज उसी का स्वागत मेरी मधुशाला।।
बने पुजारी प्रेमी साकी, गंगाजल पावन हाला,
रहे फेरता अविरत गति से मधु के प्यालों की माला’
‘और लिये जा, और पीये जा’, इसी मंत्र का जाप करे’
मैं शिव की प्रतिमा बन बैठूं, मंदिर हो यह मधुशाला।।
बड़े बड़े परिवार मिटें यों, एक न हो रोनेवाला,
हो जाएँ सुनसान महल वे, जहाँ थिरकतीं सुरबाला,
राज्य उलट जाएँ, भूपों की भाग्य सुलक्ष्मी सो जाए,
जमे रहेंगे पीनेवाले, जगा करेगी मधुशाला।।
बिना पिये जो मधुशाला को बुरा कहे, वह मतवाला,
पी लेने पर तो उसके मुह पर पड़ जाएगा ताला,
दास द्रोहियों दोनों में है जीत सुरा की, प्याले की,
विश्वविजयिनी बनकर जग में आई मेरी मधुशाला।।
एक बरस में, एक बार ही जगती होली की ज्वाला,
एक बार ही लगती बाज़ी, जलती दीपों की माला,
दुनियावालों, किन्तु, किसी दिन आ मदिरालय में देखो,
दिन को होली, रात दिवाली, रोज़ मनाती मधुशाला।।
अधरों पर हो कोई भी रस जिहवा पर लगती हाला,
भाजन हो कोई हाथों में लगता रक्खा है प्याला,
हर सूरत साकी की सूरत में परिवर्तित हो जाती,
आँखों के आगे हो कुछ भी, आँखों में है मधुशाला।।
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दुतकारा मस्जिद ने मुझको कहकर है पीनेवाला,
ठुकराया ठाकुरद्वारे ने देख हथेली पर प्याला,
कहाँ ठिकाना मिलता जग में भला अभागे काफिर को?
शरणस्थल बनकर न मुझे यदि अपना लेती मधुशाला।।
मुसलमान औ’ हिन्दू है दो, एक, मगर, उनका प्याला,
एक, मगर, उनका मदिरालय, एक, मगर, उनकी हाला,
दोनों रहते एक न जब तक मस्जिद मन्दिर में जाते,
बैर बढ़ाते मस्जिद मन्दिर मेल कराती मधुशाला।।
यज्ञ अग्नि सी धधक रही है मधु की भटठी की ज्वाला,
ऋषि सा ध्यान लगा बैठा है हर मदिरा पीने वाला,
मुनि कन्याओं सी मधुघट ले फिरतीं साकीबालाएँ,
किसी तपोवन से क्या कम है मेरी पावन मधुशाला।।
सोम सुरा पुरखे पीते थे, हम कहते उसको हाला,
द्रोणकलश जिसको कहते थे, आज वही मधुघट आला,
वेदिवहित यह रस्म न छोड़ो वेदों के ठेकेदारों,
युग युग से है पुजती आई नई नहीं है मधुशाला।।
गिरती जाती है दिन प्रतिदन प्रणयनी प्राणों की हाला
भग्न हुआ जाता दिन प्रतिदन सुभगे मेरा तन प्याला,
रूठ रहा है मुझसे रूपसी, दिन दिन यौवन का साकी
सूख रही है दिन दिन सुन्दरी, मेरी जीवन मधुशाला।।
जीवन भर मधु के प्याले से प्रेम के बाद अंतिम समय का जो दृश्य बच्चन जी ने मधुशाला में दिखाया वह और भी अद्भुत और रोमांचित करने वाला है
यम आयेगा साकी बनकर साथ लिए काली हाला,
पी न होश में फिर आएगा सुरा-विसुध यह मतवाला,
यह अंतिम बेहोशी, अंतिम साकी, अंतिम प्याला है,
पथिक, प्यार से पीना इसको फिर न मिलेगी मधुशाला।
ढलक रही है तन के घट से, संगिनी जब जीवन हाला
पत्र गरल का ले जब अंतिम साकी है आनेवाला,
हाथ स्पर्श भूले प्याले का, स्वाद सुरा जीव्हा भूले
कानो में तुम कहती रहना, मधु का प्याला मधुशाला।।
मेरे अधरों पर हो अंतिम वस्तु न तुलसीदल प्याला
मेरी जीव्हा पर हो अंतिम वस्तु न गंगाजल हाला,
मेरे शव के पीछे चलने वालों याद इसे रखना
राम नाम है सत्य न कहना, कहना सच्ची मधुशाला।।
मेरे शव पर वह रोये, हो जिसके आंसू में हाला
आह भरे वो, जो हो सुरिभत मदिरा पी कर मतवाला,
दे मुझको वो कान्धा जिनके पग मद डगमग होते हों
और जलूं उस ठौर जहां पर कभी रही हो मधुशाला।।
और चिता पर जाये उंढेला पात्र न घ्रित का, पर प्याला
कंठ बंधे अंगूर लता में मध्य न जल हो, पर हाला,
प्राण प्रिये यदि श्राध करो तुम मेरा तो ऐसे करना
पीने वालों को बुलवा कऱ खुलवा देना मधुशाला।।
नाम अगर कोई पूछे तो, कहना बस पीनेवाला
काम ढालना, और ढालना सबको मदिरा का प्याला,
जाति प्रिये, पूछे यदि कोई कह देना दीवानों की
धर्म बताना प्यालों की ले माला जपना मधुशाला।।
यम ले चलता है मुझको तो, चलने दे लेकर हाला,
चलने दे साकी को मेरे साथ लिए कर में प्याला,
स्वर्ग, नरक या जहाँ कहीं भी तेरा जी हो लेकर चल,
ठौर सभी हैं एक तरह के साथ रहे यदि मधुशाला।।
कहाँ गया वह स्वर्गिक साकी, कहाँ गयी सुरिभत हाला,
कहाँ गया स्वपिनल मदिरालय, कहाँ गया स्वर्णिम प्याला!
पीनेवालों ने मदिरा का मूल्य, हाय, कब पहचाना?
फूट चुका जब मधु का प्याला, टूट चुकी जब मधुशाला।।
पितृ पक्ष में पुत्र उठाना अर्ध्य न कर में, पर प्याला
बैठ कहीं पर जाना, गंगा सागर में भरकर हाला
किसी जगह की मिटटी भीगे, तृप्ति मुझे मिल जाएगी
तर्पण अर्पण करना मुझको, पढ़ पढ़ कर के मधुशाला।
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उनकी समस्त रचनाएं ‘बच्चन रचनावली’ नाम से प्रकाशित किया गया जिसमें नौ खंड हैं। बच्चन जी के काव्य-संग्रह ‘दो चट्टानें’ के लिए उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला। उनकी आत्मकथा के लिए उन्हें सरस्वती सम्मान से नवाज़ा गया।
हरिवंश राय बच्चन जी की चार खण्डों में प्रकाशित आत्मकथा हिन्दी साहित्य जगत की अमूल्य निधियों मे मानी जाती हैं।
1 क्या भूलूँ क्या याद करूं
2 नीड़ का निर्माण फिर
3 बसेरे से दूर
4 दशद्वार से सोपान तक
भारत सरकार ने साहित्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए उन्हें 1976 मे ‘पद्म भूषण’ से अलंकृत किया।
और इसी के साथ हिंदी काव्य में “हालावाद” के प्रवर्तक हरिवंश राय बच्चन जी की जयंती पर उन्हें पुनः शत शत नमन। हरिवंश राय बच्चन जी की सभी कविताओं में आपकी प्रिय कविता कौन सी है? हमें कमेंन्ट में बताएं।
Bohot sundar
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