उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी जनकवि गिरीश तिवारी ‘गिर्दा’ जयंती विशेष :-10 सितंबर को उत्तराखंड के महान जनकवि, गीतकार और जन आंदोलन के पुरोधा गिरीश तिवारी गिर्दा की जयंती पर उन्हें शत् शत् नमन।‘गिर्दा’ उत्तराखंड के एक ऐसे जनकवि थे,जिन्होंने उत्तराखंड राज्य आंदोलन में अपने ओजस्वी गीतों और कविताओं से जान फूंक दी थी।
गिर्दा की संक्षिप्त जीवनी
गिरीश तिवारी ‘गिर्दा’ का जन्म 10 सितंबर 1945 को ग्राम ज्योली (तल्ला स्यूनरा) हवालबाग,अल्मोड़ा उत्तराखंड में हुआ। इनकी माता का नाम जीवंती तिवारी तथा पिता का नाम हंसादत्त तिवारी था। इन्होंने अपनी हाई स्कूल की परीक्षा अल्मोड़ा से तथा इंटर की परीक्षा नैनीताल से उत्तीर्ण की। गिर्दा ने लखनऊ में रिक्शा चलाने से लेकर लोक निर्माण विभाग में वर्कचार्ज और हाइडिल में क्लर्की जैसे कार्य किए।
‘गिर्दा’ ने अनेक नाटकों का लेखन एवं निर्देशन भी किया। गिर्दा ने हिंदी एवं कुमाऊनी में अनेक रचनाएं लिखी। उनके द्वारा रचित गीत उत्तराखंड में चले जन आंदोलन में निरंतर गाए जाते रहे हैं।उत्तराखंड के अनेक आंदोलनों में उन्होंने हिस्सेदारी की और कुछ आंदोलन में उनकी गिरफ्तारी भी हुई। जन आंदोलन में सांस्कृतिक अभिव्यक्तियों के रूप में उनका महत्वपूर्ण योगदान रहा है होली जुलूसों को भी उन्होंने विशिष्टता देने का अद्भुत काम किया।
उत्तराखंड आंदोलन और ‘गिर्दा’
‘गिर्दा’ के जीवन का अधिकांश समय उत्तराखंड राज्य आंदोलन से जुड़ा था। उत्तराखंड आंदोलन को और सशक्त बनाने के लिए गिर्दा ने बहुत से गीत एवं कविताएं लिखी और अपने ओजस्वी स्वर में गाकर जनता को उस संघर्ष की राह पर चलने के लिए प्रेरित किया।‘गिर्दा’के एक आदर्श राज्य बनाने की कल्पना उनकी रचनाओं एवं गीतों में देखने को मिलती है। उन्होंने शासन प्रशासन एवं भ्रष्ट नेताओं को अपनी कविता एवं गीतों के माध्यम से सीधी टक्कर दी।
उत्तराखंड आंदोलन के दौर का लोकप्रिय गीत
ततुक नी लगा उदेख
घुनन् मुनइ नी टेक
जैंता एक दिन तो आलो उ दिन यो दुनी में।।
जय दिन कठुली रात ब्याली
पौ फटला, कौड़ी कड़ालो
जैंता एक दिन तो आलो उ दिन यो दुनी में।।
जय दिन चोर नी फलाल
कै कै जोर नी चलौल
जैंता एक दिन तो आलो उ दिन यो दुनी में।।
जय दिन नान-ठुलो नि रालो
जय दिन त्योर-म्यरो नि होलो
जैंता एक दिन तो आलो उ दिन यो दुनी में।।
अगर हम नि ल्यै सकून
अगर तुम नि लै सकौ
मगर क्यू न कुए तो ल्यालो उदिन यो दुनी में।।
वि दिन हम नीं हुलो लेकिन
हम लै वि दिन हुलो
जैंता एक दिन तो अलो उ दिन यो दुनी में ।
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मायावती और मुलायम सिंह यादव के बयान के बाद की कविता की कुछ पंक्तियाँ
बलिहारी है’मायावती’ जी, आज आपने बड़ी कृपा की, जो अद्भुत दे दिया बयान।
परम् ‘मुलायम’ तो क्या कर सकतें हैं कहिए, ठहरे वो बेचारे कठपुतले समान।
इसीलिए ‘खटीमा’ से ‘मंसूरी’ उन्होंने, मरवाया जाने कितनों को, फुड़वाये कितने कपाल।
उस मंत्री-संतरी पद के मद में, कुटिल तंत्र के अहंकार में,
अभी न जाने आगे क्या-क्या करते हैं वे और बवाल।
वनों की नीलामी के विरोध में –
आज हिमाल तुमन कैं धत्यूँ छौ
जागौ, जागौ हो म्यारा लाल।
नी करण दियौ हमरी लिलामी नी करण दियौ हमरो हलाल ।।
हमन उज्याड़ि फिरि के करला पछिल तुमरो मन पछताल।
आपुणो भलो जो अघिलि कैं चाँछा पालो-सैंतो करौ समाल।
एक आदर्श विद्यालय के संबंध में ‘गिर्दा’ की कुछ पंक्तियां –
कैसा हो स्कूल हमारा?
जहाँ न बस्ता कंधा तोड़े,
जहाँ न पटरी माथा फोड़ें,
जहाँ न अक्षर कान उखाड़ें,
जहाँ न भाषा ज़ख्म उघाड़े,
ऐसा हो स्कूल हमारा।
उत्तराखंड का बखान गिर्दा के इस गीत में-
उत्तराखंड मेरी मातृभूमि, मातृभूमि यो मेरी पितृभूमि, ओ भूमि तेरी जय-जयकारा… म्यर हिमाला।
ख्वार मुकुटो तेरो ह्यु झलको, ख्वार मुकुटो तेरो ह्यु झलको, छलकी गाड़ गंगा की धारा… म्यर हिमाला।
तली-तली तराई कुनि, तली-तली तराई कुनि, ओ कुनि मली-मली भाभरा … म्यर हिमाला।
बद्री केदारा का द्वार छाना, बद्री केदारा का द्वार छाना, म्यरा कनखल हरिद्वारा… म्यर हिमाला।
काली धौली का बलि छाना जानी, काली धौली का बलि छाना जानी, वी बाटा नान ठुला कैलाशा… म्यर हिमाला।
पार्वती को मेरो मैत ये छा, पार्वती को मेरो मैत ये छा, ओ यां छौ शिवज्यू कौ सौरासा… म्यर हिमाला।
धन मयेड़ी मेरो यां जनमा, धन मयेड़ी मेरो यां जनमा ओ भयो तेरी कोखि महान… म्यर हिमाला।
जिस आदर्श राज्य का स्वप्न गिर्दा ने देखा था क्या वह साकार हो पाया? इस प्रश्न का उत्तर हमें स्वयं खोजना पड़ेगा।
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जिस राज्य का स्वप्न गिर्दा ने देखा था वैसा उत्तराखंड राज्य यहां की जनता के लिए जब तक नहीं बनेगा, तब तक इस जनकवि की लड़ाई उनकी कविताओं और गीतों के माध्यम से जारी रहेगी।
ऐसे विराट व्यक्ति का व्यक्तित्व कुछएक शब्दों में लिख पाना असंभव है। ऐसे जनकवि को शत् शत् नमन।