अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस 2025: विश्व में भारत की ऋषि परंपरा की गूंज
21 जून को अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के अवसर पर, संपूर्ण विश्व भारत की ऋषि परंपरा का अनुसरण कर, योग की शक्ति को महसूस करेगा। योग हमारे ऋषि मुनियों की सम्पूर्ण विश्व को एक ऐसी देन है, जिसने वैश्विक पटल पर भारत को हमेशा से ही शीर्ष पर विराजमान किया है।
योगश्चित्तवृत्तिनिरोधः
योग का अर्थ है “चित्त की अशांत वृत्तियों को शांत करना। जब चित्त शांत होता है, तो हम आत्मा का अनुभव कर सकते हैं।”
योग दिवस कब और क्यों मनाया जाता है?
योग के अनगिनत लाभ हैं और इन्हीं लाभों से विश्व को अवगत कराने एवं जागरूक करने के लिए हर साल 21 जून को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस मनाया जाता है।
क्यों मनाया जाता है
21 जून को वर्ष का सबसे लंबा दिन होता है। इस दिन सूर्य की किरणें सीधे कर्क रेखा पर पड़ती हैं। इस दिन को ग्रीष्म संक्रांति भी कहते हैं। ग्रीष्म संक्रांति का आध्यात्मिक महत्व भी है। यह दिन आत्म-ज्ञान और आत्म-विकास के लिए उपयुक्त माना जाता है। योग दिवस मनाने के लिए इस दिन का चयन करने से लोगों को अपने आध्यात्मिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर ध्यान केंद्रित करने का अवसर मिलता है।
योग दिवस की शुरुआत: एक वैश्विक पहल
भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 27 सितंबर 2014 को संयुक्त राष्ट्र महासभा में योग दिवस का प्रस्ताव रखा था और संयुक्त राष्ट्र ने इस प्रस्ताव को स्वीकार कर 21 जून को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस मनाने की घोषणा की। जिसके बाद पहला योग दिवस 21 जून 2015 को मनाया गया, जिसमें दुनिया भर से लाखों लोगों ने भाग लिया।
योग की उत्पत्ति: सृष्टि के प्रारंभ से
जब ब्रह्मांड का निर्माण हुआ, तब परम तत्व परमात्मा ने सृष्टि के संतुलन हेतु जिन नियमों और विधियों की रचना की, उनमें से एक प्रमुख विधि योग थी। योग का अर्थ है “जुड़ना ” — आत्मा का परमात्मा से, शरीर का मन से, और मन का चेतना से जुड़ना। सृष्टि के आरंभ से ही योग का अस्तित्व है। योग केवल एक व्यायाम पद्धति नहीं, बल्कि यह जीवन की एक प्राचीन और सार्वभौमिक प्रणाली है, जिसकी जड़ें सृष्टि की उत्पत्ति से जुड़ी हुई हैं।
योग की उत्पत्ति भारत में आत्मबोध की खोज से हुई। योग केवल शारीरिक व्यायाम नहीं है अपितु जीवन जीने की एक समग्र विधा है शरीर, मन और आत्मा को संतुलित करने का माध्यम है।
योग भारत की प्राचीनतम परंपराओं में से एक है। इसकी शुरुआत वैदिक काल से मानी जाती है, जब ऋषि-मुनियों ने आत्म-साक्षात्कार और ब्रह्मज्ञान के लिए ध्यान और तप की साधनाएँ की।
योग की जड़ें ऋग्वेद और अन्य वेदों में मिलती हैं। इनमें यज्ञ, तपस्या, मंत्रोच्चारण, और ध्यान के माध्यम से आत्मा और ब्रह्म के मिलन का वर्णन है। ऋषियों ने जीवन के गूढ़ रहस्यों को जानने के लिए ध्यान और समाधि का प्रयोग किया।
उपनिषदों में आत्मा-चिंतन और ध्यानयोग
“ध्यानम्यं ब्रह्म” ध्यान से ब्रह्म की प्राप्ति संभव है। कठोपनिषद, श्वेताश्वेतर उपनिषद जैसे ग्रंथों में ध्यान, प्राण, आत्मा और मोक्ष की चर्चा की गई है।
महाभारत में योग: श्रीकृष्ण का योगदर्शन
भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को जीवन की विषम परिस्थितियों से उबारने के लिए तीन मार्ग बताए थे-
- कर्मयोग – कर्म करते हुए त्याग की भावना रखना
- ज्ञानयोग – आत्मा और ब्रह्म का विवेक
- भक्तियोग – पूर्ण समर्पण और श्रद्धा
महर्षि पतंजलि का योगदान : योग का वैज्ञानिक स्वरूप
महर्षि पतंजलि ने योग को एक व्यवस्थित ढंग से सूत्रबद्ध करके वैज्ञानिक रूप में प्रस्तुत किया। महर्षि पतंजलि का ग्रंथ “योगसूत्र”
योगसूत्र, योग दर्शन एवं योगशास्त्र का मूल ग्रंथ है, इसमें चित्त को एकाग्र करके ईश्वर में लीन करने का विधान बताया गया है।
पतंजलि के अनुसार, योग चित्त की वृत्तियों को चंचल होने से रोकता है।उनका प्रसिद्ध मार्ग है,
अष्टांगयोग -इसके अनुसार योग के आठ अंग बताए गए हैं –यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान, समाधि।
1. यम – नैतिक नियम जैसे अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह।
2. नियम – व्यक्तिगत अनुशासन जैसे शौच, संतोष, तप, स्वाध्याय और ईश्वरप्रणिधान।
3. आसन – शरीर को स्थिर और सुखद स्थिति में रखने की क्रिया।
4. प्राणायाम – श्वास पर नियंत्रण यानी प्राण ऊर्जा का नियमन।
5. प्रत्याहार – इंद्रियों को बाह्य विषयों से हटाकर अंदर की ओर मोड़ना।
6. धारणा – मन को एक बिंदु पर स्थिर करना।
7. ध्यान – एकाग्रता की निरंतर धारा, ध्यान अवस्था।
8. समाधि – आत्मा और परमात्मा का एक हो जाना, परम चेतना में लीन हो जाना।
पतंजलि का योग केवल शारीरिक अभ्यास नहीं, बल्कि मानसिक और आध्यात्मिक विकास का भी मार्ग है।
शरीर एवं मस्तिष्क को स्वस्थ रखने के लिए योग एवं आसन
योग भारतीय संस्कृति की एक प्राचीन परंपरा है, जो आज पूरे विश्व में स्वास्थ्य का आधार बन चुकी है। यह न केवल शरीर को लचीला और शक्तिशाली बनाता है, बल्कि मस्तिष्क को भी शांत और स्थिर रखता है। विभिन्न योगासन जैसे- सूर्य नमस्कार, सर्वांगासन, वज्रासन, पद्मासन और शवासन शरीर को सक्रिय बनाते हैं। वहीं अनुलोम-विलोम, कपालभाती, भ्रामरी, भ्रस्तिका जैसी प्राणायाम विधियाँ मन को शांत करती हैं और तनाव दूर करती हैं।
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आधुनिक समय की दौड़भाग भरी ज़िंदगी में योग हमें शांति और संतुलन प्रदान करता है। नियमित योग करने से रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है, एकाग्रता बेहतर होती है और नींद भी अच्छी आती है। इसलिए, शरीर और मस्तिष्क दोनों को स्वस्थ रखने के लिए हमें प्रतिदिन थोड़ा समय योग और आसनों को देना चाहिए। यह न केवल स्वस्थ जीवन की कुंजी है, बल्कि आंतरिक सुख का मार्ग भी है।