श्रीनगर: उत्तराखंड की धरती को देवभूमि कहा जाता है। यहां की नदियां, यहां के मंदिर और यहां की संस्कृति एक-दूसरे से गहराई से जुड़ी हुई हैं। अलकनंदा, भागीरथी, मंदाकिनी और सरयू जैसी नदियां सिर्फ जलधारा नहीं बल्कि श्रद्धा की जीवनरेखा हैं। इन्हीं में से एक है अलकनंदा जो समय-समय पर अपने उफान से लोगों के जीवन पर गहरा प्रभाव छोड़ जाती है।
इसी पवित्र धरती पर स्थित हैं मां धारी देवी, जिन्हें पर्वतीय क्षेत्र की रक्षक देवी और उत्तराखंड की आध्यात्मिक धुरी माना जाता है। जब-जब यहां प्राकृतिक आपदाएं आई हैं, तब-तब धारी देवी की कथा, आस्था और उनकी शक्ति चर्चाओं में रही है।
आज जब सरयू नदी व अलकनंदा उफान पर है, तो लोगों के मन में एक ही प्रश्न बार-बार उठता है— क्या यह महज एक प्राकृतिक घटना है या इसके पीछे देवभूमि का आध्यात्मिक संदेश छिपा है?
मां धारी देवी कौन हैं?
उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में अलकनंदा नदी के किनारे स्थित एक चट्टान पर स्थापित मां धारी देवी का मंदिर विशेष प्रसिद्ध है। मान्यता है कि मां धारी देवी, काली माता का उग्र रूप हैं और प्रदेश की रक्षा करती हैं।
- यहां माता की केवल मध्यभाग की मूर्ति विराजमान है, जबकि माना जाता है कि उनका शेष भाग जम्मू-कश्मीर के श्रीनगर स्थित वैष्णो देवी के रूप में पूजित है।
- स्थानीय लोककथाओं और विश्वासों के अनुसार जब-जब धारी देवी की प्रतिमा से छेड़छाड़ हुई है, तब-तब उत्तराखंड में बड़ी आपदाएं आई हैं।
सरयू नदी: जीवनदायिनी और विनाशकारी दोनों
सरयू नदी मुख्यतः कुमाऊं क्षेत्र में बहती है और बागेश्वर, पिथौरागढ़ समेत कई जिलों के जीवन का आधार है। यह नदी जहां एक ओर कृषि, सिंचाई व पेयजल का प्रमुख स्रोत है, वहीं वर्षा ऋतु में इसका उफान लोगों के जीवन व संपत्ति पर भारी असर डालता है। इतिहास गवाह है कि सरयू नदी के उफान ने कई बार गांवों को नुकसान पहुंचाया है, पुल टूटे हैं, सड़कें बह गई हैं और लोग विस्थापित हुए हैं।
धारी देवी और नदियों के उफान से जुड़ी मान्यताएं
लोग मानते हैं कि मां धारी देवी प्रदेश की प्राकृतिक रक्षा करती हैं। जब-जब विकास के नाम पर नदियों के रास्तों से छेड़छाड़ हुई, पहाड़ों को काटा गया या धार्मिक स्थलों का अनादर हुआ, तब-तब नदियां अपने प्रचंड स्वरूप में आ गईं। इस तथ्य को सबसे ज्यादा 2013 की केदारनाथ आपदा के दौरान याद किया जाता है, जब अलकनंदा और मंदरगंगा जैसी नदियों के उफान ने तबाही मचाई और लाखों लोग प्रभावित हुए।
वर्तमान स्थिति: सरयू नदी उफान पर
जब सरयू नदी उफान पर होती है, तो इसके किनारे बसे गांवों और कस्बों में भय का माहौल बन जाता है।
- खेत जलमग्न हो जाते हैं।
- स्थानीय बाजारों और बस्तियों तक पानी पहुंच जाता है।
- पुल और सड़कें क्षतिग्रस्त हो जाती हैं, जिससे पर्वतीय क्षेत्र का संपर्क टूटने लगता है।
लोग इसे केवल बारिश और जलवायु परिवर्तन का असर मानते हैं, जबकि कुछ लोग इसे धारी देवी का संकेत भी बताते हैं—मानो वे हमें सावधान कर रही हों कि नदियों और पहाड़ों के संतुलन से खिलवाड़ न किया जाए।
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वैज्ञानिकों का क्या कहना है
वैज्ञानिक इसे एक हाइड्रोलॉजिकल और क्लाइमेट चेंज की समस्या मानते हैं। लगातार बढ़ते ग्लेशियर पिघलाव, असंतुलित बांध निर्माण और अंधाधुंध सड़क चौड़ीकरण ने पहाड़ों की नाजुक पारिस्थितिकी को हिला दिया है।
- नदी जब बारिश के मौसम में अतिरिक्त जल दबाव सहन नहीं कर पाती, तो वह उफान मारती है।
- अनियंत्रित निर्माण कार्य नदी के प्राकृतिक प्रवाह में बाधा डालते हैं और आपदा को और घातक बना देते हैं।
आस्था और विज्ञान में अंतर
उत्तराखंड के लोग इन घटनाओं को दो हिस्सों में देखते हैं—
- आस्था के दृष्टिकोण से, मां धारी देवी की नाराजगी और उनके संकेत को इन आपदाओं से जोड़ा जाता है।
- विज्ञान के दृष्टिकोण से, इसे जलवायु परिवर्तन, पारिस्थितिक असंतुलन और कुप्रबंधन का नतीजा माना जाता है।
सच्चाई यह है कि दोनों दृष्टिकोण कहीं-न-कहीं आपस में जुड़े हैं। आस्था हमें प्रकृति के प्रति श्रद्धा और भय सिखाती है, जबकि विज्ञान हमें कारणों और समाधानों की ओर ले जाता है।
क्या है समाधान और आगे की राह
- सतत विकास: पहाड़ों की पारिस्थितिकी को ध्यान में रखते हुए ही सड़क, भवन और बांधों का निर्माण होना चाहिए।
- नदी क्षेत्रों का वैज्ञानिक अध्ययन: सरयू जैसी नदियों के प्रवाह क्षेत्र की नियमित निगरानी और मैपिंग जरूरी है।
- स्थानीय ज्ञान का उपयोग: पहाड़ों के लोग बरसों से नदियों के स्वभाव को समझते आए हैं। उनकी लोक चेतावनियों को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए।
- आस्था का सम्मान: धार्मिक स्थलों और प्रतीकों को संरक्षित करना न सिर्फ हमारी संस्कृति, बल्कि पर्यावरण संतुलन का भी हिस्सा है।
- आपदा प्रबंधन: बाढ़ पूर्व चेतावनी तंत्र, सुरक्षित आश्रय स्थलों और राहत योजनाओं को मजबूत किया जाना चाहिए।
मां धारी देवी और सरयू नदी की कथा हमें यह सिखाती है कि आस्था और प्रकृति का रिश्ता अविभाज्य है। जब नदियां उफान पर आती हैं, तो यह केवल जलभराव या नुकसान भर नहीं होता है यह प्रकृति का एक गहरा संदेश भी होता है।
सरयू का उफान हमें आगाह करता है कि हमें विकास और प्रकृति के बीच संतुलन बनाना होगा। और मां धारी देवी की कथा यह याद दिलाती है कि यदि हम प्रकृति और आस्था का अपमान करेंगे, तो उसका सीधा असर हमारी जिंदगी पर पड़ेगा।
इसलिए जरूरी है कि हम दोनों दृष्टिकोणों—आस्था और विज्ञान—को साथ लेकर चलें और देवभूमि की पवित्रता के साथ-साथ उसके प्राकृतिक संतुलन को बनाए रखें।