उत्तराखंड राज्य स्थापना दिवस की आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएं.
इस बार उत्तराखंड राज्य स्थापना दिवस के सभी कार्यक्रम अल्मोड़ा जनपद के मार्चुला में हुई बस दुर्घटना के शोक से बड़ी सादगी शांतिपूर्ण ढंग से मनाए जाएंगे।
उत्तराखंड जिसे देवभूमि कहा जाता है इस राज्य की स्थापना 9 नवंबर 2000 को उत्तरांचल नाम से हुई थी। उत्तरांचल को उत्तर प्रदेश के उत्तर पश्चिमी हिस्से और पर्वतीय क्षेत्रों को मिलाकर बनाया गया था।यह उत्तर प्रदेश से अलग होकर भारत का 27वां राज्य बना। 2007 में औपचारिक रूप से उत्तरांचल का नाम बदलकर उत्तराखंड कर दिया गया।
उत्तराखंड (Uttrakhand) एक नजर
उत्तराखंड में 13 जिले हैं जिनमें से 11 जिले पहाड़ी क्षेत्र में और दो जिले मैदानी क्षेत्र में हैं। उत्तराखंड राज्य की सीमाएं तिब्बत,चीन और नेपाल की अंतर्राष्ट्रीय सीमाओं को छूती हैं। उत्तराखंड राज्य दो मंडलों गढ़वाल और कुमाऊं में विभक्त है। जिसमें गढ़वाल क्षेत्र का प्राचीन नाम केदार खंड व बद्रिकाश्रम है और कुमाऊं क्षेत्र का प्राचीन नाम मानस खंड व कुर्मांचल है।
उत्तराखंड का राज्य पशु कस्तूरी मृग,राज्य पुष्प ब्रह्म कमल, राज्य वृक्ष बुरांश,राज्य पक्षी मोनाल है। उत्तराखंड राज्य में सुमित्रानंदन पंत, शैलेश मटियानी, मनोहर श्याम जोशी, शेखर जोशी,मंगलेश डबराल, लीलाधर जगूड़ी जैसे अनेक प्रतिष्ठित और ख्याति प्राप्त साहित्यकार हुए हैं। उत्तराखंड राज्य के चार धाम में बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री,और यमुनोत्री हैं और पंच केदार में केदारनाथ तुंगनाथ मदमहेश्वर नाथ रुद्रनाथ व कल्पेश्वर नाथ हैं।
उत्तराखंड राज्य के लिए हुए आंदोलन
उत्तराखंड राज्य ऐसे ही हमें नहीं मिला इस राज्य को बनाने के लिए अनेक लोगों ने अपने प्राणों की आहुति दी है। उत्तराखंड राज्य बनाने की मांग सर्वप्रथम सन 1897 में उठी और उसके बाद यह मांग समय-समय पर उठती रही। सन 1994 में इस अलग राज्य उत्तराखंड बनाने की मांग ने जन आंदोलन का रूप ले लिया। 1994 में मुलायम सिंह यादव के उत्तराखंड विरोधी वक्तव्य से उत्तराखंड राज्य आंदोलन और भी तेज हो गया। जिसमें छात्रों ने सामूहिक रूप से आंदोलन और उत्तराखंड क्रांति दल के नेताओं ने अनशन किया कुछ समय चक्का जाम पुलिस फायरिंग हड़ताल जैसी अनेकों घटनाएं हुई। उस समय उत्तराखंड राज्य आंदोलन अपने चरम पर पहुंच गया था।
खटीमा गोलीकाण्ड
1 सितंबर 1994 जिसे उत्तराखण्ड राज्य आन्दोलन का काला दिन माना जाता है, क्योंकि पुलिस द्वारा इस दिन के जैसी बर्बरता की कार्रवाई इससे पहले कहीं और देखने को नहीं मिली थी। पुलिस द्वारा बिना कोई चेतावनी दिये ही उन महान आन्दोलनकारियों के ऊपर अंधाधुंध फायरिंग की गई, जिसके परिणामस्वरूप सात आन्दोलनकारियों की मृत्यु हो गई।
मसूरी गोलीकाण्ड
खटीमा गोलीकाण्ड के अगले ही दिन 2 सितंबर 1994 को खटीमा गोलीकाण्ड के विरोध में मौन जुलूस निकाल रहे लोगों पर एक बार फिर पुलिस वालों का बेरहम कहर बरपा । उस दिन प्रशासन से बात करने गई दो सगी बहनों को पुलिस ने
आन्दोलनकारियों के कार्यालय में गोली मार दी। इसका विरोध करने पर पुलिस द्वारा फिर से अंधाधुंध फायरिंग कर दी गई, जिसमें कई लोगों को गोली लगी और जिसके बाद तीन आन्दोलनकारियों की अस्पताल में मृत्यु हो गई।
मुजफ्फरनगर /रामपुर तिराहा गोलीकाण्ड
लगातार हुए दो गोलीकाण्ड के एक महीने बाद 2 अक्टूबर 1994 की रात को दिल्ली की रैली में जा रहे आन्दोलनकारियों के साथ रामपुर तिराहा (मुजफ्फरनगर) में पुलिस प्रशासन ने जैसा घिनौना कृत्य किया उसको लिखने मे हर किसी की लेखनी लहू से उनका बखान करेगी।किसी भी देश मे तो क्या किसी भी तानाशाह आक्रांताओ ने भी आज तक दुनिया में ऐसा नहीं किया कि निहत्थे आन्दोलनकारियों के ऊपर रात के अन्धेरे में चारों ओर से घेरकर गोलियां बरसाई और हमारे पहाड़ की अबोध महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार किया । इस गोलीकाण्ड में 7 राज्य आन्दोलनकारी शहीद हो गये।
देहरादून गोलीकाण्ड
मुजफ्फरनगर /रामपुर तिराहा गोलीकाण्ड के अगले दिन 3 अक्टूबर 1994 को इस काण्ड की सूचना देहरादून में पहुंचते ही लोगों का उग्र होना स्वाभाविक था। मुजफ्फरनगर /रामपुर तिराहा गोलीकाण्ड में शहीद स्व० रविन्द्र सिंह रावत की शवयात्रा पर पुलिस ने लाठीचार्ज कर दिया, जिसके बाद वहाँ स्थिति और भी उग्र हो गई और पूरे देहरादून के लोगों ने इसके विरोध में सब जगह प्रदर्शन किया। पहले से ही जनाक्रोश को कुचलने के लिए तैयार बैठे पुलिस प्रशासन ने उन प्रदर्शनकारियों पर फायरिंग कर दी, जिसमे तीन और आन्दोलनकारी शहीद हो गए।
इसके बाद लगातार अनेक ऐसी गोली कांड हुए जिसमें उत्तराखंड के वीर सपूतों ने अपने प्राणों की आहूति दे दी जिसमें, कोटद्वार कांड,नैनीताल कांड आदि हैं।
इस आंदोलन में कुछ लोग ऐसे भी थे जिनके द्वारा लिखी गई कविताओं और लोकगीतों ने इस आंदोलन के लिए एक संजीवनी का काम किया। जिसमें गिरीश तिवारी गिर्दा,नरेंद्र नेगी इत्यादि प्रमुख थे।
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गिर्दा का यह गीत उत्तराखंड आंदोलन में बच्चों से लेकर पूरे व्यक्ति की जबान में था। उनके इस गीत ने हर किसी आंदोलनकारी को एक शक्ति प्रदान की।
ततुक नी लगा उदेख
घुनन मुनइ नि टेक
जैंता एक दिन तो आलो उ दिन यो दुनी में।
जै दिन कठुलि रात ब्यालि
पौ फाटला, कौ कड़ालौ
जैंता एक दिन तो आलो उ दिन यो दुनी में।
जै दिन चोर नी फलाल
कै कै जोर नी चलौल
जैंता एक दिन तो आलो उ दिन यो दुनी में।
जै दिन नान-ठुलो नि रौलो
जै दिन त्योर-म्योरो नि होलो
जैंता एक दिन तो आलो उ दिन यो दुनी में।
चाहे हम नि ल्यै सकूँ
चाहे तुम नि लै सकौ
मगर क्वे न क्वे तो ल्यालो उदिन यो दुनी में
वि दिन हम निं हुँलो लेकिन
हम लै वि दिनै हुँलो
जैंता एक दिन तो आलो उ दिन यो दुनी में ।
गिर्दा ने उसके बाद यह कविता लिख कर प्रशासन को बताया कि हम हार नहीं मानेंगे और अपने सपनों का उत्तराखंड राज्य ले कर रहेंगे –
बैणी फाँसी नी खाली ईजा, और रौ नी पड़ल भाई।
मेरी बाली उमर नि माजेलि , दीलि ऊना कढ़ाई।।
मेरी बाली उमर नि माजेलि, तलि ऊना कड़ाई।
रामरैफले लेफ्ट रेट कसी हुछो बतूलो।
हम लड़ते रयां बैणी , हम लड़ते रूलो।
हम लड़ते रया भुला, हम लड़ते रूलो।।
अर्जुनते कृष्ण कुछो, रण भूमि छो सारी दूनी तो।
रण बे का बचुलो , हम लड़ते रया बैणी हम लड़ते रूलो।
हम लड़ते रया भुला, हम लड़ते रूलो।।
धन माएड़ि छाती, उनेरी धन तेरा ऊ लाल।
बलिदानकी जोत जगे, खोल गे उज्याल।।
खटीमा, मसूरी मुजेफरें कें, हम के भूलि जूलो।
हम लड़ते रयां बैणी , हम लड़ते रूलो।
हम लड़ते रुला, चेली हम लड़ते रूलो।।
कस होलो उत्तराखंड, कस हमारा नेता।
कसी होली विकास नीति, कसी होली ब्यवस्था।।
जड़ी कंजड़ी उखेलि भलीके , पूरी बहस करूलो।
हम लड़ते रयां बैणी , हम लड़ते रूलो।
सांच नि मराल झुरी झुरी पा, झूठी नि डोरी पाला।
लिस,लकड़ा,बजरी चोर जा नि फौरी पाला।।
जाधिन ताले योस नि है जो, हम लड़ते रूलो।
हम लड़ते रयां बैणी , हम लड़ते रूलो।
मैसन हूँ, घर कुड़ी हो भैसन हु खाल।
गोर बछन हु चरुहू हो, चाड़ पौथन हूँ डाल।।
धुर जंगल फूल फूलों, यस मुलुक बनुलो ।
हम लड़ते रयां बैणी , हम लड़ते रूलो।
हम लड़ते रूलो भूलि, हम लड़ते रूलो।।
हम लड़ते रयां दीदी, हम लड़त रुलो।
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इस उत्तराखंड राज्य के लिए जिन लोगों ने शहादत दी उनका कर्ज कभी उतारा नहीं जा सकता है, परन्तु क्या उनका सपना ऐसे उत्तराखंड का था जहाँ आए दिन भ्रष्टाचार,बलात्कार जैसे कुकृत्य हो रहे है। उनका सपना था कि पहाड़ की सीदी-सादी जनता को एक ऐसा राज्य मिले जो पहाड़ की तरह ही खूबसूरत हो यहाँ के व्यक्ति को यहीं रोजगार मिले और पहाड़ आबाद हो। परन्तु उनका देखा गया वह स्वप्न उनकी शहादत के दिन स्वप्न की तरह ही याद किया जाता और उसके बाद हर उत्तराखंड वासी उसे भूल जाता है।
अगर हर उत्तराखंडी उनके स्वप्न को साकार करने मे अपना थोड़ा भी योगदान दें तो उन अमर शहीदों के सपनों का उत्तराखंड फिर से बर्फ से लदी पर्वत श्रेणियां की तरह सुन्दर हो सकता है।
पुनः मै उन शहीद उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारियों को शत शत नमन करता हूँ जिनकी शहादत ने हमें यह राज्य दिया।
जानकारी के लिए धन्यवाद
धन्यवाद दीदी 🙏