देहरादून: 16 जून, 2013 की वह भयावह रात, जिसने उत्तराखंड के केदारनाथ धाम को तबाह कर दिया था, आज भी हजारों दिलों में एक सिहरन पैदा करती है। इस प्राकृतिक आपदा को बीते 12 साल हो चुके हैं, लेकिन त्रासदी के घाव आज भी ताजे हैं। सैकड़ों मृतकों की पहचान आज भी अधूरी है, कई शव लावारिस घोषित हैं, और न जाने कितने परिवार आज भी अपने प्रियजनों की वापसी का इंतजार कर रहे हैं – भले ही वे सिर्फ अस्थियों के रूप में ही क्यों न हों।
उत्तराखंड सरकार के आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, केदारनाथ आपदा में लगभग 750 शव बरामद किए गए थे, और उन सभी का डीएनए सैंपल लिया गया था। इन शवों की पहचान के लिए देशभर से लगभग 6,000 लोगों ने डीएनए सैंपल जमा किए, लेकिन दुखद रूप से, अब तक केवल 33 मामलों में ही डीएनए मैच हो सका है। यह एक क्रूर सत्य है जो यह दर्शाता है कि केदारनाथ त्रासदी सिर्फ एक प्राकृतिक आपदा नहीं थी, बल्कि यह सैकड़ों अनकही कहानियों, अधूरी जिंदगियों और टूटे परिवारों का ऐसा संग्रह है, जो कभी भी पूरा नहीं हो सकता।
भयानक त्रासदी एक नजर में:
- 15 और 16 जून, 2013 की रात में केदारनाथ आपदा आई थी।
- सरकारी आंकड़ों के अनुसार, 4400 लोग इस आपदा में मारे गए या लापता हो गए।
- 991 स्थानीय लोग अलग-अलग स्थानों पर मारे गए।
- सर्च ऑपरेशन में 55 नरकंकाल मिले थे।
- 11 हजार से अधिक मवेशी मारे गए।
- पुलिस ने 30 हजार से अधिक लोगों को बचाया।
- सेना व अर्द्धसैनिक बलों ने 90 हजार से अधिक लोगों को बचाया।
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आज भी डीएनए सैंपल के जरिए तलाश: विज्ञान और भावनाओं की इस लंबी कड़ी में, केदार घाटी में मिले 700 से अधिक शवों के डीएनए आज भी गुमनाम हैं और अपनों के इंतजार में हैं। उस समय जो शव मिलते थे, उनके बॉडी पार्ट जैसे उंगली या दांत को संरक्षित कर हैदराबाद और बेंगलुरु की लैब में भेजा जाता था। लगभग 750 सैंपल उठाए गए थे, और परिजनों ने अपने प्रियजनों की तलाश में डीएनए सैंपल दिए थे, जिनमें से 30 से 32 के बीच ही मैचिंग हो पाई।
यह आंकड़ा केदारनाथ त्रासदी की भयावहता और उसके स्थायी प्रभावों को दर्शाता है, जहाँ आज भी कई परिवार अपने प्रियजनों के अंतिम संस्कार के लिए एक पहचान की तलाश में हैं।