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केदारनाथ धाम में अबतक नहीं हुई दिसंबर में होने वाली बर्फबारी, जलवायु परिवर्तन देख तीर्थ पुरोहित चिंतित।

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रुद्रप्रयाग: उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों में आमतौर पर दिसंबर, जनवरी के महीने में जमकर बर्फबारी होती थी, इस समय उच्च हिमालयी क्षेत्रों में 10 से 12 फीट तक बर्फ जम जाती थी, मगर इस बार ऐसा कुछ नहीं हुआ है. केदारनाथ से इस समय जो तस्वीरें सामने आई हैं उन्हें देखकर अंदाजा लगाया जा सकती है कि इस बार उच्च हिमालयी क्षेत्रों और पहाड़ी इलाकों में बर्फबारी ना के बराबर हुई है. मौसम वैज्ञानिक भी केदारनाथ को बर्फविहीन देखकर बेहद चिंतित हैं. हर साल दिसंबर के अंत में या जनवरी के शुरुआत में केदारनाथ चांदी की तरह चमकने लगता था।

आपको बता दें कि जलवायु परिवर्तन के कारण बदरीनाथ धाम में दिसंबर तक बर्फबारी न होने पर विशेषज्ञों और तीर्थ पुरोहितों ने चिंता जताते हुए पर्यावरण संरक्षण के लिए वैज्ञानिक आधार पर विकास कार्य किए जाना जरूरी बताया है। बताया कि बदरीनाथ के कपाट बंद होने के तीन सप्ताह गुजरने के बाद बदरीपुरी में बर्फ नहीं है। तीर्थपुरोहित इस परिवर्तन को बदरीधाम में अंधाधुंध वाहनों की आवाजाही और ऑल वेदर रोड़ निर्माण का प्रभाव बताते है। जिसका वैज्ञानिक स्तर पर अध्ययन होना जरूरी है। कपाट खुलने से कपाट बंद होने तक छह माह प्रवास करने वाले देवप्रयाग के तीर्थ पुरोहित उत्तम भट्ट व अशोक टोडरिया ने बताया कि बदरीनाथ जैसे उच्च हिमालय क्षेत्र में कभी वर्ष 2024 जैसी स्थिति नहीं देखी है। इस बार छह माह के अंदर एक बार भी बर्फबारी नहीं हुई है। जबकि 2023 में अक्टूबर के महीने में ही तीन बार बर्फबारी हो चुकी थी।

अभी तक बर्फविहीन केदारनाथ से जानकार चिंतित

दिसंबर का पहला सप्ताह बीत गया है, पर केदारनाथ सहित अन्य ऊंचाई वाली पहाड़ियां बर्फविहीन बनी हुई हैं। हिमालय की चोटियों में भी नाममात्र की बर्फ है, जिसे जानकार भविष्य को लेकर चिंतित हैं। इस वर्ष सितंबर के बाद से केदारनाथ में न तो बारिश हुई और न बर्फबारी। केदारनाथ पुनर्निर्माण से जुड़े सेवानिवृत्त सूबेदार मनोज सेमवाल, सोवन सिंह बिष्ट का कहना है दस वर्षों से वह शीतकाल में भी धाम में रह रहे हैं। यह पहला मौका है, जब दिसंबर का पहला सप्ताह भी केदारनाथ में बिना बर्फबारी के रहा है। वहीं एचएनबी केंद्रीय विवि श्रीनगर के उच्च शिखरीय पादप शोध संस्थान के निदेशक डॉ. विजयकांत पुरोहित ने कहा कि मौसम चक्र में हो रहा बदलाव ठीक नहीं है। बर्फबारी नहीं होने से ग्लेशियरों को नई बर्फ नहीं मिल रही है, जिससे फरवरी से ही ग्लेशियर पिघलने लगेंगे, जो गंभीर समस्या बनेंगे।

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