क्या कहा आज जन्मदिन है मेरा
जौन तो यार मर गया कब का
जीवनी: जॉन एलिया का सफर
उर्दू के एक महान शायर जॉन एलिया, जिनका जन्म 14 दिसंबर 1931 को अरोहा उत्तरप्रदेश में हुआ था। उनके पिता का नाम अल्लामा शफ़ीक़ हसन एलियाह था जो एक शायर और कवि तो थे ही उसके आलावा उनका कला और साहित्य से भी गहरा जुड़ाव था। बचपन से साहित्यिक माहौल में पलना जॉन एलिया के लिए ये एक उपहार से कम नहीं था इसी माहौल की बदौलत उन्होंने अपनी पहली उर्दू कविता 8 वर्ष की उम्र मे लिखी।
नौजवानी में उनका झुकाव कम्यूनिज़्म की तरफ़ हो गया । 1947 मे विभाजन के बाद उनके बड़े भाई पाकिस्तान चले गए थे। माँ और बाप की मृत्यु के बाद जॉन एलिया को भी न चाहते हुए 1956 में पाकिस्तान जाना पड़ा और वो आजीवन अमरोहा और हिन्दुस्तान को याद करते रहे। उनका कहना था, “पाकिस्तान आकर में हिन्दुस्तानी हो गया।”
जॉन एलिया साहब जो इंशा पत्रिका का संपादन करते थे उसी दौरान उनकी मुलाक़ात एक बार उर्दू लेखिका ज़ाहिद हिना से हुई, जिनसे उन्होंने बाद में शादी कर ली। शादी के बाद उनकी 2 बेटी और 1 बेटा हुआ, परन्तु 1980 के दशक के में उनका तलाक हो गया । जिसके बाद जॉन एलिया ने शराब को अपना साथी बना लिया। वो अलगाव से इतने टूट चुके थे की उनकी स्थिति बहुत ख़राब हो गई थी और लंबी बीमारी के बाद 8 नवंबर, 2002 को जॉन एलिया साहब का कराची में निधन हो गया।
आशिक़ाना मिज़ाज: आशिक जॉन एलिया और उनका इश्क़
कहा जाता है कि जॉन एलिया आशिक़ाना मिजाज के थे, वो अक्सर ख़्यालों में अपनी महबूबा से बातें करते रहते नौजवानी में उन्हें एक लड़की से इश्क़ हुआ, लेकिन उन्होंने कभी उसका इज़हार उससे नहीं किया क्योंकि वो इश्क़ के इज़हार को एक ज़लील हरकत समझते थे। वो कहते थे-
“हुस्न से अर्ज़-ए-शौक़ न करना हुस्न को ज़क पहुंचाना है/ हमने अर्ज़-ए-शौक़ न कर के हुस्न को ज़क पहुंचाई है।”
इन लाइनों से उन्होंने हर आशिक और टूटे दिलवाले के हर जख्म का बदला लिया।
जॉन एलिया साहब की ग़ज़लें और शेर
उर्दू के मकबूल शायरों में से एक जॉन एलिया साहब का आज जन्मदिन है पेश हैं उनकी कुछ बेहतरीन गजलें और शेर जो सीधा दिल मे उतरती हैं।
1-सजा
हर बार मेरे सामने आती रही हो तुम
हर बार तुम से मिल के बिछड़ता रहा हूँ मैं
तुम कौन हो ये ख़ुद भी नहीं जानती हो तुम
मैं कौन हूँ ये ख़ुद भी नहीं जानता हूँ मैं
तुम मुझ को जान कर ही पड़ी हो अज़ाब में
और इस तरह ख़ुद अपनी सज़ा बन गया हूँ मैं
तुम जिस ज़मीन पर हो मैं उस का ख़ुदा नहीं
पस सर-ब-सर अज़िय्यत ओ आज़ार ही रहो
बेज़ार हो गई हो बहुत ज़िंदगी से तुम
जब बस में कुछ नहीं है तो बेज़ार ही रहो
तुम को यहाँ के साया ओ परतव से क्या ग़रज़
तुम अपने हक़ में बीच की दीवार ही रहो
मैं इब्तिदा-ए-इश्क़ से बे-मेहर ही रहा
तुम इंतिहा-ए-इश्क़ का मेआ’र ही रहो
तुम ख़ून थूकती हो ये सुन कर ख़ुशी हुई
इस रंग इस अदा में भी पुरकार ही रहो
मैं ने ये कब कहा था मोहब्बत में है नजात
मैं ने ये कब कहा था वफ़ादार ही रहो
अपनी मता-ए-नाज़ लुटा कर मिरे लिए
बाज़ार-ए-इल्तिफ़ात में नादार ही रहो
जब मैं तुम्हें नशात-ए-मोहब्बत न दे सका
ग़म में कभी सुकून-ए-रिफ़ाक़त न दे सका
जब मेरे सब चराग़-ए-तमन्ना हवा के हैं
जब मेरे सारे ख़्वाब किसी बेवफ़ा के हैं
फिर मुझ को चाहने का तुम्हें कोई हक़ नहीं
तन्हा कराहने का तुम्हें कोई हक़ नहीं
2: उम्र गुज़रेगी इम्तिहान में क्या-
उम्र गुज़रेगी इम्तिहान में क्या
दाग़ ही देंगे मुझ को दान में क्या
मेरी हर बात बे-असर ही रही
नुक़्स है कुछ मिरे बयान में क्या
मुझ को तो कोई टोकता भी नहीं
यही होता है ख़ानदान में क्या
अपनी महरूमियाँ छुपाते हैं
हम ग़रीबों की आन-बान में क्या
ख़ुद को जाना जुदा ज़माने से
आ गया था मिरे गुमान में क्या
शाम ही से दुकान-ए-दीद है बंद
नहीं नुक़सान तक दुकान में क्या
ऐ मिरे सुब्ह-ओ-शाम-ए-दिल की शफ़क़
तू नहाती है अब भी बान में क्या
बोलते क्यूँ नहीं मिरे हक़ में
आबले पड़ गए ज़बान में क्या
ख़ामुशी कह रही है कान में क्या
आ रहा है मिरे गुमान में क्या
दिल कि आते हैं जिस को ध्यान बहुत
ख़ुद भी आता है अपने ध्यान में क्या
वो मिले तो ये पूछना है मुझे
अब भी हूँ मैं तिरी अमान में क्या
यूँ जो तकता है आसमान को तू
कोई रहता है आसमान में क्या
है नसीम-ए-बहार गर्द-आलूद
ख़ाक उड़ती है उस मकान में क्या
ये मुझे चैन क्यूँ नहीं पड़ता
एक ही शख़्स था जहान में क्या
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जॉन एलिया साहब के कुछ बेहतरीन शेर-
•“उस गली ने ये सुन के सब्र किया
जाने वाले यहाँ के थे ही नहीं
•एक ही तो हवस रही है हमें
अपनी हालत तबाह की जाए”
•“काम की बात मैंने की ही नहीं
ये मेरा तौर-ए-ज़िंदगी ही नहीं
•कितने ऐश से रहते होंगे कितने इतराते होंगे
जाने कैसे लोग वो होंगे जो उस को भाते होंगे”
•मैं भी बहुत अजीब हूँ इतना अजीब हूँ कि बस
ख़ुद को तबाह कर लिया और मलाल भी नहीं
•बहुत नज़दीक आती जा रही हो
बिछड़ने का इरादा कर लिया क्या
•कैसे कहें कि तुझ को भी हम से है वास्ता कोई
तू ने तो हम से आज तक कोई गिला नहीं किया
•ये वार कर गया है पहलू से कौन मुझ पर
था मैं ही दाएँ बाएँ और मैं ही दरमियाँ था
•इलाज ये है कि मजबूर कर दिया जाऊँ
वगरना यूँ तो किसी की नहीं सुनी मैं ने
आज, जॉन एलिया के जन्मदिन पर, उनकी बेहतरीन शायरी और ग़ज़लें जो आज भी हर दिल को छू जाती हैं। आपकी पसंदीदा गजल कौन सी है हमको कमेंट में जुरूर बतायें |