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शिक्षक दिवस विशेष- गुरु का महत्व और डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन का योगदान

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शिक्षक दिवस विशेष- गुरु का महत्व और डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन का योगदान

शिक्षक दिवस विशेष: शिक्षक वह है जो अपने शिष्यों को अज्ञान रूपी अंधकार से ज्ञान रूपी प्रकाश की ओर ले जाता है। एक शिष्य की जिंदगी में शिक्षक कितना महतवपूर्ण होता है इस बात का अंदाजा आप इससे लगा सकते हैं कि सम्राट अशोक तभी चक्रवर्ती बन सके जब उनके पास सही मार्ग दिखाने वाले महान गुरु थे, चंद्रगुप्त मौर्य तभी इस अखंड भारत के महान राजा बने ज़ब उनके पास आचार्य चाणक्य जैसे महान गुरु थे। गाण्डीवधारी अर्जुन संसार के श्रेष्ठ धनुर्धर तभी कहलाए जब उन्हें सिखाने वाले गुरु द्रोण जैसे तेजस्वी गुरु उनके पास थे।

शिक्षक दिवस क्यों मनाया जाता है?

हमारे देश में हर वर्ष 5 सितंबर को शिक्षकों के प्रति सम्मान प्रकट करने के लिए उस दिन को शिक्षक दिवस के रूप में उत्साह के साथ मनाया जाता है, क्योंकि इस दिन महान शिक्षाविद् एवं भारत के प्रथम उपराष्ट्रपति एवं भारत के द्वितीय राष्ट्रपति पंडित डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्म हुआ था। उन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में अनेकों कार्य किए एवं शिक्षा में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया। जिस कारण उनके जन्मदिन को शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है।

सर्वपल्ली राधाकृष्णन

डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन एक महान दार्शनिक महान शिक्षक थे, उन्हें अध्यापन से बहुत गहरा लगाव था। एक आदर्श शिक्षक में जितने गुण होने चाहिए वह सभी गुण डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन में विद्यमान थे।डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी का जन्म 5 सितम्बर 1888 को तमिलनाडु के तिरुवल्लूर मे हुआ था। उनके पिता का नाम ‘सर्वपल्ली वीरासमियाह’ और माता का नाम ‘सीताम्मा’ था। उनके पूर्वज ‘सर्वेपल्ली’ नामक ग्राम में रहते थे जिस कारण उनके नाम के आगे गांव का नाम आता है।डॉ॰सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने अपने लेखों और भाषणों के माध्यम से विश्व को भारतीय दर्शन शास्त्र से परिचित कराया। डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन के ऊपर भारतीय हिंदू संस्कृति का बहुत ही गहरा प्रभाव पड़ा, उन्होंने जाना कि हिंदू संस्कृति में सभी धर्मों का आदर करना एवं सम्भाव से रहना सिखाया गया है। उनके जन्मदिन को शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है एवं संपूर्ण देश में भारत सरकार द्वारा श्रेष्ठ शिक्षकों को पुरस्कार भी प्रदान किए जाते हैं।
भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ॰ राजेंद्र प्रसाद जी ने उन्हें उनकी महान दार्शनिक एवं शैक्षिक उपलब्धियों के लिये देश का सर्वोच्च सम्मान ‘भारत रत्न’ 1954 मे प्रदान किया।

भारतीय संस्कृति मे गुरु-शिष्य का महत्व

भारतवर्ष वह है जिसने पूरी दुनिया को ज्ञान दिया है मार्ग दिखाया है इसीलिए भारत विश्वगुरु कहलाता था। इस पावन भूमि मे ऐसे अनेक गुरु-शिष्य हुए हैं जो हमें प्रेरणा देते है। गुरु शिष्य परम्परा तो सृष्टि के आदि से चली रही एक पवित्र परम्परा है, जिससे ज्ञान का संचार होता रहा। माता-पिता के बाद सबसे बड़ा स्थान गुरु को ही दिया है, क्योंकि गुरु ही हमारे जीवन मे ज्ञानरूपी प्रकाश भरता है। इस भारत भूमि मे एकलव्य जैसे भी शिष्य हुए जिसने सिर्फ गुरु की प्रतिमा को गुरु मानकर धनुर्विद्या सीख ली, और गुरु के द्वारा गुरुदक्षिणा मांगने पर अपना अंगूठा काट कर दे दिया। गुरु तो हमेशा पूजनीय रहे है, संत कबीरदास जी ने भी कहा है-
गुरु गोविन्द दोऊ खड़े, काके लागूं पांय।
बलिहारी गुरु अपने गोविन्द दियो बताय।।

यहाँ कबीरदास जी ने गुरु को गोविन्द से पहले पूजनीय बताया है वह कहते है – जब आपके समक्ष गुरु और ईश्वर दोनों विद्यमान हो तो पहले गुरु के चरणों में अपना शीश झुकाना चाहिए, क्योंकि गुरु ने ही हमें भगवान के पास पहुँचने का ज्ञान प्रदान किया है।

डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी के विचार

  1. गुरु के भीतर वह चुंबकीय शक्ति होती है,
    जो अपने शिष्य को आकर्षित करती है और इन्हीं शक्तियों के कारण शिष्य सांसारिक चुनौतियों पर विजय प्राप्त करता है।
  2. अच्छा टीचर वो होता है, जो ताउम्र सीखता रहता है और अपने छात्रों से सीखने में भी कोई परहेज नहीं दिखाता।

आने वाले शिक्षक दिवस पर आप सभी अपने शिक्षको को शिक्षक दिवस की बधाई दें,एवं हो सके तो उनका आशीर्वाद अवश्य प्राप्त करें।

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