पाकिस्तान में एक बार फिर आतंक का साया गहराता दिख रहा है। अफगानिस्तान की सीमा से सटे इलाकों में तालिबान समर्थित आतंकियों ने पाकिस्तानी सुरक्षा बलों पर ताबड़तोड़ हमले किए हैं, जिनमें अब तक 58 सैनिकों की मौत हो चुकी है। यह हमला पाकिस्तान के लिए किसी चेतावनी से कम नहीं, क्योंकि अफगानिस्तान में सत्ता संभालने के बाद से तालिबान लगातार अपनी गतिविधियां पाकिस्तान के भीतर तक फैला चुका है। इस हमले के बाद प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ की सरकार सकते में है और पूरे देश में हाई अलर्ट जारी कर दिया गया है।
बढ़ते आतंकवादी हमले और असुरक्षा का माहौल
घटना पाकिस्तान के बलूचिस्तान और खैबर पख्तूनख्वा प्रांतों के बीच घटित हुई, जहां आतंकियों ने सेना के काफिलों और सुरक्षा चौकियों को निशाना बनाया। तालिबान के संगठन तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (TTP) ने इस हमले की जिम्मेदारी ली है। हमला इतनी सटीक योजना के साथ किया गया कि सैनिकों को संभलने का मौका तक नहीं मिला। सूत्रों के अनुसार, आतंकियों ने भारी हथियारों और रॉकेट लॉन्चरों का इस्तेमाल किया, जिससे कई सैन्य वाहन पूरी तरह नष्ट हो गए। स्थानीय मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, मरने वालों में कई उच्च अधिकारी भी शामिल हैं। सेना ने जवाबी कार्रवाई में 20 से अधिक आतंकियों को मार गिराने का दावा किया है, परंतु नुकसान इतना बड़ा है कि पाकिस्तान के सुरक्षा तंत्र पर सवाल उठ खड़े हो गए हैं।
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सरकार की नींद उड़ी, शहबाज पर दबाव बढ़ा
प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने घटनाओं पर गहरी चिंता जताई है और राष्ट्रीय सुरक्षा समिति की आपात बैठक बुलाई है। पाकिस्तान में विपक्ष ने भी सरकार की नीति पर तीखा हमला बोला है। इमरान खान की पार्टी पीटीआई ने आरोप लगाया है कि सरकार की ‘लचर नीति’ और तालिबान से की गई पुरानी बातचीतों ने ही इस स्थिति को जन्म दिया है। इस हमले ने शहबाज सरकार पर दोहरा दबाव बढ़ा दिया है—एक ओर जनता की सुरक्षा सुनिश्चित करना, और दूसरी ओर अंतरराष्ट्रीय समुदाय के सामने अपनी स्थिति मजबूत रखना। अमेरिकी खुफिया एजेंसियों ने पहले ही चेतावनी दी थी कि अफगानिस्तान में तालिबान का बढ़ता प्रभाव पाकिस्तान के लिए खतरा बन सकता है, परंतु इस दिशा में ठोस कार्रवाई नहीं की गई।
सीमाओं पर अशांति और भू-राजनीतिक प्रभाव
अफगान सीमा पर हो रही इन घटनाओं ने दक्षिण एशिया की क्षेत्रीय सुरक्षा को भी खतरे में डाल दिया है। भारत पहले ही पाकिस्तान के आतंकियों को लेकर सतर्क है, और अब तालिबान का यह असर पाकिस्तान के भीतर नया संकट बन गया है। विशेषज्ञों का मानना है कि अगर पाकिस्तान सरकार ने जल्द ही निर्णायक कदम नहीं उठाए, तो यह हिंसा उसके कई आंतरिक प्रांतों में फैल सकती है। तालिबान का पाकिस्तान पर यह हमला केवल एक आतंकी कार्रवाई नहीं, बल्कि एक गहरी चेतावनी है—कि जिस आग को पाकिस्तान ने दशकों तक दूसरों के खिलाफ इस्तेमाल किया, वही अब उसके अपने घर को जला रही है। 58 सैनिकों की शहादत ने पाकिस्तान को झकझोर दिया है, और अब देखना यह है कि शहबाज शरीफ की सरकार इस ‘आंतरिक ज्वाला’ से कैसे निपटती है—कूटनीति से या बंदूक की ताकत से।