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Sunday, October 20, 2024

महात्मा गांधी का जीवन दर्शन: एक ऐसा व्यक्तित्व जिसने दुनिया बदल दी।

महात्मा गांधी का जन्म 2 अक्टूबर 1869 को गुजरात के पोरबंदर नामक स्थान पर हुआ था। उनका पूरा नाम मोहनदास करमचंद गांधी था। उनके पिता, करमचंद गांधी, पोरबंदर राज्य के दीवान (प्रधान मंत्री) थे, और उनकी माता, पुतलीबाई, धार्मिक और साधारण स्वभाव की महिला थीं, जो वैष्णव धर्म में विश्वास रखती थीं। पुतलीबाई का गांधी जी के जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ा, विशेषकर उनके धार्मिक और नैतिक आदर्शों पर।

गांधी जी का बचपन साधारण था और वह अपने माता-पिता से बहुत प्रेरित हुए। उनकी मां के धार्मिक प्रवृत्ति और उनके पिता की राजनीतिक गतिविधियों ने उनके प्रारंभिक जीवन को आकार दिया। गांधी जी एक साधारण और शर्मीले बालक थे। वे स्कूल में औसत छात्र थे, लेकिन उनके जीवन में सत्य और अहिंसा के सिद्धांतों की नींव बचपन से ही पड़ गई थी।

जब गांधी जी सात साल के थे, तब उनका परिवार पोरबंदर से राजकोट स्थानांतरित हो गया, जहां उन्होंने प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त की। वे बचपन से ही अपने परिवार की धार्मिक और नैतिक परंपराओं से प्रभावित थे, जो उनके जीवन में सत्य और नैतिकता के प्रति उनकी प्रतिबद्धता का आधार बनीं।

महात्मा गांधी की प्रारंभिक शिक्षा गुजरात के पोरबंदर और राजकोट में हुई थी। गांधी जी ने अपनी प्राथमिक शिक्षा पोरबंदर में शुरू की, लेकिन उनके परिवार के राजकोट जाने के बाद उनकी शिक्षा वहीं जारी रही। राजकोट में उन्होंने अल्फ्रेड हाई स्कूल से पढ़ाई की, जहाँ वे एक औसत छात्र माने जाते थे। हालाँकि, वे अपने अनुशासन, ईमानदारी और सत्य के प्रति प्रतिबद्धता के लिए जाने जाते थे।

स्कूल शिक्षा:
गांधी जी ने अपनी मैट्रिक की परीक्षा 1887 में अहमदाबाद से पास की। इसके बाद उन्होंने भावनगर के सामलदास कॉलेज में दाखिला लिया, लेकिन वहाँ पढ़ाई में उनकी रुचि कम थी और वे अपनी पढ़ाई को लेकर सहज महसूस नहीं करते थे। इसी दौरान उनके परिवार ने निर्णय लिया कि वे इंग्लैंड जाकर कानून की पढ़ाई करें।

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इंग्लैंड में शिक्षा:
1888 में, 19 वर्ष की आयु में गांधी जी कानून की पढ़ाई के लिए इंग्लैंड चले गए। वहाँ उन्होंने लंदन के ‘इनर टेम्पल’ में दाखिला लिया, जो एक प्रतिष्ठित लॉ कॉलेज था। वहाँ रहते हुए उन्होंने न केवल कानून की पढ़ाई की, बल्कि पश्चिमी सभ्यता और संस्कृति को भी गहराई से समझा। इस दौरान गांधी जी ने सत्य और नैतिकता के अपने सिद्धांतों को और भी मजबूत किया। उन्होंने मांसाहार, शराब और अन्य बुरी आदतों से दूर रहने का संकल्प लिया और एक सादा जीवन जीने की कोशिश की।

बैरिस्टर की डिग्री:
1891 में, गांधी जी ने अपनी कानून की पढ़ाई पूरी की और बैरिस्टर (वकील) की डिग्री प्राप्त की। इसके बाद वे भारत लौट आए और वकालत का अभ्यास शुरू किया। हालाँकि, शुरू में उनकी वकालत में कोई विशेष सफलता नहीं मिली। इस दौरान उन्हें दक्षिण अफ्रीका में एक केस का निमंत्रण मिला, जिसने उनके जीवन को पूरी तरह से बदल दिया और वे वहाँ जाकर सामाजिक और राजनीतिक संघर्षों में शामिल हो गए।

इंग्लैंड में उनकी शिक्षा ने उनके जीवन में एक नया मोड़ दिया और उन्हें भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में एक महत्वपूर्ण नेता के रूप में उभरने में मदद की।

महात्मा गांधी की स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने की मंशा उनके जीवन की विभिन्न घटनाओं और अनुभवों से विकसित हुई, विशेषकर दक्षिण अफ्रीका में बिताए समय के दौरान। गांधी जी ने अपने जीवन के प्रारंभिक वर्षों में जो अन्याय और भेदभाव देखा, उसने उनके भीतर भारतीयों के अधिकारों के लिए लड़ने का संकल्प पैदा किया। इस प्रक्रिया को समझने के लिए उनके जीवन की प्रमुख घटनाओं पर नज़र डालते हैं:

दक्षिण अफ्रीका का अनुभव:
गांधी जी 1893 में एक कानूनी मामले के सिलसिले में दक्षिण अफ्रीका गए थे। वहाँ उन्होंने भारतीय समुदाय के खिलाफ होने वाले नस्लीय भेदभाव और अन्याय का सामना किया। एक प्रमुख घटना तब घटी, जब गांधी जी को प्रिटोरिया जाते समय प्रथम श्रेणी के टिकट होने के बावजूद, केवल भारतीय होने के कारण, ट्रेन से नीचे उतार दिया गया। इस घटना ने गांधी जी के भीतर गहरा आक्रोश पैदा किया और उन्होंने नस्लीय भेदभाव और अन्याय के खिलाफ संघर्ष करने का फैसला किया।

दक्षिण अफ्रीका में रहते हुए उन्होंने भारतीयों के अधिकारों की रक्षा के लिए अहिंसात्मक प्रतिरोध का मार्ग अपनाया, जिसे बाद में उन्होंने “सत्याग्रह” का नाम दिया। दक्षिण अफ्रीका में उनके सत्याग्रह आंदोलनों ने उन्हें एक जननेता और अहिंसक प्रतिरोध के प्रतीक के रूप में उभारा। वहाँ के भारतीयों के अधिकारों की रक्षा के लिए उन्होंने संघर्ष किया, और उनके सफल आंदोलनों ने उन्हें भारत में भी एक प्रतिष्ठित नेता बना दिया।

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भारत लौटने के बाद:

1915 में जब गांधी जी भारत लौटे, तो उनकी ख्याति पहले से ही फैल चुकी थी। उन्होंने भारत के विभिन्न हिस्सों का दौरा किया और ब्रिटिश शासन के तहत हो रहे अत्याचारों को गहराई से देखा। उन्होंने महसूस किया कि भारत के किसानों, मजदूरों और सामान्य जनों को ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के खिलाफ संगठित करना जरूरी है।

उनकी मंशा स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय रूप से भाग लेने की तब और प्रबल हुई जब उन्होंने बिहार के चंपारण में किसानों की दुर्दशा देखी। वहाँ के किसानों पर नील की खेती करने के लिए ज़बरदस्ती की जा रही थी और उनका भारी शोषण हो रहा था। गांधी जी ने चंपारण में अहिंसक सत्याग्रह का सफल नेतृत्व किया, जिससे किसानों को न्याय मिला। इस आंदोलन ने भारत में उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई और यह भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में उनकी सक्रिय भूमिका की शुरुआत थी।

  • जालियांवाला बाग हत्याकांड (1919):
    1919 में हुए जालियांवाला बाग हत्याकांड ने गांधी जी को ब्रिटिश शासन के असली स्वरूप का एक और क्रूर चेहरा दिखाया। इस घटना ने उनकी मंशा को और भी मजबूत किया कि भारतीयों को ब्रिटिश शासन के खिलाफ संगठित होकर संघर्ष करना चाहिए।
  • असहयोग आंदोलन (1920-1922):
    इस घटना के बाद गांधी जी ने असहयोग आंदोलन की शुरुआत की, जिसमें उन्होंने भारतीयों से ब्रिटिश शासन के सहयोग से इनकार करने और स्वदेशी वस्त्रों तथा उत्पादों को अपनाने का आह्वान किया। उनका विश्वास था कि अहिंसा और सत्याग्रह के माध्यम से ही ब्रिटिश शासन को चुनौती दी जा सकती है। गांधी जी के नेतृत्व में असहयोग आंदोलन ने स्वतंत्रता संग्राम को एक राष्ट्रीय आंदोलन बना दिया।
  •   गांधी जी के नेतृत्व में सत्य और अहिंसा:
    गांधी जी का मुख्य सिद्धांत “सत्याग्रह” (सत्य के प्रति आग्रह) और अहिंसा था। उन्होंने भारत के लोगों से हिंसा का मार्ग छोड़कर सत्य और अहिंसा के आधार पर ब्रिटिश शासन के खिलाफ लड़ने का आह्वान किया। उनका मानना था कि नैतिक शक्ति से ही अन्याय का विरोध किया जा सकता है।

इन घटनाओं और अनुभवों ने गांधी जी के भीतर भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने की मंशा को मजबूती से स्थापित किया। उनका उद्देश्य न केवल भारत को स्वतंत्र कराना था, बल्कि भारतीय समाज को सामाजिक और आर्थिक रूप से भी सशक्त बनाना था।

महात्मा गांधी एक ऐसे राष्ट्र की कल्पना करते थे जो सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक रूप से स्वतंत्र, समृद्ध, और नैतिक मूल्यों पर आधारित हो। उनके राष्ट्रवाद की नींव अहिंसा, सत्य, आत्मनिर्भरता, समानता, और मानवता के सिद्धांतों पर आधारित थी। गांधी जी का दृष्टिकोण सिर्फ राजनीतिक स्वतंत्रता तक सीमित नहीं था, बल्कि उनका उद्देश्य एक ऐसा राष्ट्र बनाना था जो नैतिक, सांस्कृतिक, और सामाजिक रूप से भी स्वतंत्र हो। आइए देखें कि वे किस तरह के राष्ट्र की कल्पना करते थे:

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Mahatma Gandhi Bust in Park in Brazil

1. अहिंसा और सत्य का राष्ट्र 
गांधी जी चाहते थे कि भारत एक ऐसा राष्ट्र बने जो सत्य और अहिंसा के सिद्धांतों पर खड़ा हो। उनका मानना था कि हिंसा से समाज में लंबे समय तक शांति और स्थिरता नहीं लाई जा सकती। अहिंसा उनके लिए सिर्फ एक राजनीतिक रणनीति नहीं थी, बल्कि जीवन जीने का एक नैतिक और आध्यात्मिक तरीका था। वे चाहते थे कि भारतीय समाज व्यक्तिगत और सामूहिक दोनों स्तरों पर सत्य और अहिंसा को अपनाए।

2.  आत्मनिर्भरता (स्वदेशी) 
गांधी जी के स्वराज (स्व-शासन) की अवधारणा सिर्फ राजनीतिक आजादी तक सीमित नहीं थी, बल्कि वे आर्थिक आत्मनिर्भरता पर भी जोर देते थे। वे चाहते थे कि भारत स्वदेशी वस्तुओं का निर्माण और उपभोग करे, ताकि विदेशी वस्त्रों और अन्य उत्पादों पर निर्भरता खत्म हो। चरखा (काता हुआ सूत) गांधी जी के स्वदेशी आंदोलन का प्रतीक था, जो आत्मनिर्भरता का प्रतीक था। उनका मानना था कि अगर हर गांव आत्मनिर्भर होगा, तो पूरा राष्ट्र समृद्ध हो सकता है।

3.  ग्राम स्वराज 
गांधी जी का सपना था कि भारत में विकेंद्रीकृत शासन प्रणाली हो, जहाँ हर गांव अपने आप में एक स्वतंत्र इकाई हो। यह उनकी “ग्राम स्वराज” की अवधारणा थी, जिसमें गाँवों को अपनी समस्याओं का समाधान खुद करने की क्षमता हो। वे चाहते थे कि गांवों में पंचायतें मजबूत हों और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को सशक्त किया जाए। उनके अनुसार, भारत की असली ताकत उसके गांवों में है, और अगर गांव सशक्त होंगे तो पूरा राष्ट्र समृद्ध और स्वतंत्र होगा।

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4.  समानता और जाति व्यवस्था का उन्मूलन 
गांधी जी जाति व्यवस्था और छुआछूत के खिलाफ थे। वे चाहते थे कि भारतीय समाज में सभी को समान अधिकार और सम्मान मिले। उन्होंने हरिजनों (दलितों) के उत्थान के लिए कई प्रयास किए और “अस्पृश्यता” के खिलाफ जोरदार आंदोलन चलाया। उनका मानना था कि स्वतंत्र भारत में किसी भी व्यक्ति के साथ जाति, धर्म, लिंग या अन्य किसी आधार पर भेदभाव नहीं होना चाहिए। उनके लिए स्वतंत्रता का अर्थ सिर्फ राजनीतिक स्वतंत्रता नहीं था, बल्कि सामाजिक समानता और न्याय भी था।

5.  धार्मिक सद्भाव 
गांधी जी एक ऐसे भारत की कल्पना करते थे, जहाँ सभी धर्मों का समान आदर हो और धार्मिक विविधता को सहर्ष स्वीकार किया जाए। वे मानते थे कि धर्म व्यक्तिगत आस्था का विषय है, लेकिन यह समाज में विभाजन का कारण नहीं बनना चाहिए। गांधी जी चाहते थे कि भारत में हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, और अन्य सभी धर्मों के लोग मिलजुल कर रहें और एक-दूसरे के धर्म का सम्मान करें।

6.  शिक्षा और नैतिकता 
गांधी जी की शिक्षा की अवधारणा न केवल बौद्धिक विकास तक सीमित थी, बल्कि वे शिक्षा को नैतिक और व्यावहारिक जीवन का आधार मानते थे। वे चाहते थे कि शिक्षा व्यक्ति के चरित्र और नैतिकता को मजबूत करे। उनका मानना था कि शिक्षा का उद्देश्य व्यक्ति को समाज का जिम्मेदार नागरिक बनाना है, न कि सिर्फ नौकरी पाने का साधन। उन्होंने “बुनियादी शिक्षा” (नैतिक और व्यावहारिक शिक्षा) की वकालत की, जिससे लोगों में आत्मनिर्भरता और जिम्मेदारी का भाव जागृत हो।

7.  महिला सशक्तिकरण 
गांधी जी महिलाओं के अधिकारों और सशक्तिकरण के प्रबल समर्थक थे। वे चाहते थे कि स्वतंत्र भारत में महिलाओं को समान अधिकार और अवसर मिलें। उनका मानना था कि महिलाओं की भागीदारी के बिना किसी भी समाज की प्रगति संभव नहीं है। वे महिलाओं को शिक्षा, सामाजिक, और राजनीतिक जीवन में सक्रिय रूप से शामिल करने के पक्षधर थे।

8.  पर्यावरण संतुलन 
गांधी जी आधुनिक विकास के अंधाधुंध शोषण के खिलाफ थे। वे प्रकृति और मानव जीवन के बीच संतुलन को बनाए रखने के पक्षधर थे। उन्होंने हमेशा साधारण और सादा जीवन जीने की वकालत की और भोगवाद और भौतिकवाद का विरोध किया। उनका मानना था कि प्राकृतिक संसाधनों का संयमित और टिकाऊ उपयोग ही समाज और पर्यावरण के हित में है।

9.  स्वस्थ और समृद्ध समाज 
गांधी जी चाहते थे कि भारत का हर व्यक्ति शारीरिक, मानसिक, और आध्यात्मिक रूप से स्वस्थ हो। उनके अनुसार, स्वस्थ शरीर और मन से ही समाज में खुशहाली लाई जा सकती है। वे चाहते थे कि लोग प्राकृतिक जीवनशैली अपनाएं और स्वास्थ्य सेवाओं तक सबकी पहुँच हो।

10. विज्ञान और आध्यात्म का समन्वय
गांधी जी तकनीकी विकास और वैज्ञानिक प्रगति के खिलाफ नहीं थे, लेकिन वे इसे आध्यात्मिकता के साथ संतुलित देखना चाहते थे। उनके अनुसार, विज्ञान और प्रौद्योगिकी का उपयोग समाज की भलाई के लिए होना चाहिए, न कि सिर्फ लाभ कमाने के लिए। वे आध्यात्मिक और नैतिक मूल्यों के आधार पर समाज की दिशा तय करने की वकालत करते थे।

गांधी जी का सपना एक ऐसे भारत का था, जो सिर्फ औपनिवेशिक ताकतों से मुक्त न हो, बल्कि सामाजिक और नैतिक रूप से भी आत्मनिर्भर, स्वाभिमानी और समृद्ध हो। 

pexels robertkso 17502543 scaled महात्मा गांधी का जीवन दर्शन: एक ऐसा व्यक्तित्व जिसने दुनिया बदल दी।

महात्मा गांधी ने अपने जीवन में कई महत्वपूर्ण पुस्तकें और लेख लिखे, जिनके माध्यम से उन्होंने अपने विचारों, सिद्धांतों और जीवन के अनुभवों को साझा किया। उनकी लेखनी का उद्देश्य न केवल उनके समय के संघर्षों को व्यक्त करना था, बल्कि उनके सिद्धांतों और आदर्शों का प्रचार-प्रसार भी करना था। यहाँ उनकी प्रमुख पुस्तकों की सूची दी जा रही है:

 

1. सत्य के प्रयोग (An Autobiography: The Story of My Experiments with Truth)
– यह महात्मा गांधी की आत्मकथा है, जिसमें उन्होंने अपने जीवन के शुरुआती अनुभवों, नैतिक संघर्षों और अहिंसा और सत्य के प्रति अपनी आस्था को विस्तार से लिखा है। इस पुस्तक में गांधी जी ने अपने व्यक्तिगत और सार्वजनिक जीवन के विभिन्न पहलुओं को साझा किया है और बताया है कि किस प्रकार सत्य और अहिंसा के प्रयोगों ने उनके जीवन को आकार दिया। यह उनकी सबसे प्रसिद्ध और महत्वपूर्ण कृतियों में से एक है।
–  प्रकाशन वर्ष: 1927

2.  हिंद स्वराज (Hind Swaraj or Indian Home Rule) 
– यह पुस्तक गांधी जी ने 1909 में लिखी थी, जब वे लंदन से दक्षिण अफ्रीका जा रहे थे। इसमें उन्होंने भारतीय स्वराज (स्व-शासन) की अपनी अवधारणा को व्यक्त किया है और आधुनिक सभ्यता की आलोचना की है। गांधी जी ने इस पुस्तक में भारतीयों से आत्मनिर्भरता और स्वदेशी अपनाने का आह्वान किया है। उन्होंने विदेशी शासन से मुक्ति के साथ-साथ भारतीय समाज के नैतिक और सांस्कृतिक पुनर्जागरण की आवश्यकता पर बल दिया।
–  प्रकाशन वर्ष:  1909

3.  भारत छोड़ो आंदोलन और उसके सिद्धांत (Quit India Movement and Its Principles)
– यह पुस्तक भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान गांधी जी के विचारों और सिद्धांतों को व्यक्त करती है। इसमें उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान अहिंसक आंदोलन और सत्याग्रह की महत्ता पर बल दिया है।

4.  अहिंसा धर्म (Non-Violence in Peace and War) 
– यह पुस्तक गांधी जी के अहिंसा के सिद्धांतों पर आधारित है। इसमें उन्होंने शांति और युद्ध के दौरान अहिंसा के महत्व को समझाया है और बताया है कि किस प्रकार यह नैतिक और राजनीतिक रूप से प्रभावी हो सकता है। यह पुस्तक उनके लेखों और भाषणों का संग्रह है, जिसमें उन्होंने विभिन्न स्थितियों में अहिंसा की प्रासंगिकता पर विचार किया है।
–  प्रकाशन वर्ष:  1942

5.  यंग इंडिया (Young India) 
– यह एक साप्ताहिक पत्रिका थी जिसे गांधी जी ने 1919 से 1932 के बीच प्रकाशित किया। इसमें उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम, स्वराज, सत्याग्रह और सामाजिक सुधारों से संबंधित अपने विचार प्रस्तुत किए। “यंग इंडिया” के लेखों को बाद में संकलित करके पुस्तक रूप में प्रकाशित किया गया। इस पत्रिका ने स्वतंत्रता संग्राम के दौरान लाखों लोगों को प्रेरित किया।

6.  नवजीवन (Navajivan) 
– “नवजीवन” एक गुजराती पत्रिका थी, जिसे गांधी जी ने 1919 में प्रकाशित किया। इसमें उन्होंने भारतीय समाज की समस्याओं और उनके समाधानों पर चर्चा की। “नवजीवन” के लेखों का भी संकलन पुस्तक रूप में किया गया है।

7.  सत्याग्रह इन साउथ अफ्रीका (Satyagraha in South Africa)
– इस पुस्तक में गांधी जी ने दक्षिण अफ्रीका में अपने सत्याग्रह आंदोलनों और उनके अनुभवों का वर्णन किया है। दक्षिण अफ्रीका में भारतीय समुदाय के साथ होने वाले अन्याय और उनके खिलाफ चलाए गए अहिंसक प्रतिरोध का यह एक विस्तृत विवरण है।
–  प्रकाशन वर्ष:  1928

8.  Key to Health (स्वास्थ्य का रहस्य) 
– यह पुस्तक गांधी जी के स्वास्थ्य संबंधी विचारों और उनके अनुशासन पर आधारित है। इसमें उन्होंने सादा जीवन जीने, प्राकृतिक आहार और स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता पर जोर दिया है। गांधी जी का मानना था कि शारीरिक स्वास्थ्य मानसिक और नैतिक स्वास्थ्य के साथ गहरे से जुड़ा हुआ है।
–  प्रकाशन वर्ष: 1948

9.  Constructive Programme: Its Meaning and Place 
– इस पुस्तक में गांधी जी ने भारतीय समाज के पुनर्निर्माण और स्वराज प्राप्ति के लिए एक रचनात्मक कार्यक्रम का खाका पेश किया। इसमें उन्होंने शिक्षा, स्वदेशी, खादी, अस्पृश्यता निवारण, और अन्य सामाजिक सुधारों पर जोर दिया।
–  प्रकाशन वर्ष:  1941

10.  From Yeravda Mandir (येरवदा मंदिर से पत्र)
– यह पुस्तक उन पत्रों का संकलन है, जो गांधी जी ने येरवदा जेल में रहते हुए लिखे थे। इसमें उनके व्यक्तिगत अनुभवों, ध्यान और आध्यात्मिक चिंतन का वर्णन किया गया है।
–  प्रकाशन वर्ष:  1932

महात्मा गांधी की ये पुस्तकें उनके दर्शन, विचार और जीवन के महत्वपूर्ण पहलुओं को प्रस्तुत करती हैं। उन्होंने अपने लेखों और पुस्तकों के माध्यम से भारतीय समाज और स्वतंत्रता संग्राम को गहरे से प्रभावित किया।

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Mamta Negi
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