उत्तरकाशी: उत्तरकाशी जनपद के धराली क्षेत्र में 5 अगस्त को आई भीषण आपदा ने स्थानीय निवासियों और वैज्ञानिकों को गहन चिंता में डाल दिया। खेरा गाड (खीरगंगा) में अचानक आए 2,50,885 टन मलबे ने न केवल गांवों को भयभीत कर दिया बल्कि उत्तराखंड में पहाड़ों के बदलते भूगर्भीय हालात की भी नई तस्वीर सामने रख दी। इस प्राकृतिक आपदा के बाद हर्षिल घाटी भी अब खतरे के घेरे में मानी जा रही है। हाल ही में आईटी सचिव नितेश झा के निर्देश पर गठित वैज्ञानिक समिति ने अपनी पहली रिपोर्ट सरकार को सौंप दी है, जिससे कई चौंकाने वाले खुलासे हुए हैं।
आपदा का कारण: बारिश और भूस्खलन बांध का टूटना
वैज्ञानिकों की संयुक्त रिपोर्ट के मुताबिक, यह आपदा अचानक हुई बारिश और भूस्खलन के कारण बनी एक अस्थायी झील के टूटने का नतीजा थी। खड़ा पहाड़ी इलाका और लगातार बारिश ने ऊपर ढलान पर बड़े पैमाने पर भूस्खलन कराया, जिस वजह से ‘भूस्खलन बांध’ (लैंडस्लाइड डैम) बन गया। जब यह बांध दबाव झेल नहीं पाया तो भारी मात्रा में पानी और मलबा नीचे की ओर बह गया। यही मलबा धराली और आसपास के क्षेत्रों में तबाही का कारण बना। विशेषज्ञों ने बताया कि पहाड़ी इलाकों में यह प्रक्रिया नई नहीं है। जब तेज बारिश होती है तो भूस्खलन की वजह से नदी-नालों पर अस्थायी अवरोध बनते हैं। ये प्राकृतिक बांध कभी भी टूट सकते हैं और नीचे बसे गांवों के लिए काल बन जाते हैं।
धराली की त्रासदी और हर्षिल पर खतरे की घंटी
धराली में आई तबाही के बाद हर्षिल घाटी पर भी संकट गहराने की आशंका जताई जा रही है। हर्षिल न केवल एक पर्यटन स्थल है बल्कि सामरिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण स्थान है। वैज्ञानिक टीम ने चेतावनी दी है कि जिस तरह से पहाड़ों पर लगातार भूस्खलन हो रहा है, वैसा ही संकट हर्षिल में भी देखने को मिल सकता है। हर्षिल तक जाने वाला मार्ग पहले से ही संवेदनशील है और पिछली बरसातों में कई हिस्सों को नुकसान हो चुका है। अगर भविष्य में फिर से इस तरह का भूस्खलन बांध बनता है और वह टूटता है, तो परिणाम बेहद भयावह हो सकते हैं।
संयुक्त अध्ययन की सिफारिशें
इस आपदा का अध्ययन करने में वाडिया हिमालय भू-विज्ञान संस्थान, नेशनल जियोलॉजिकल रिसर्च सेंटर और आपदा न्यूनीकरण एवं प्रबंधन संस्थान जैसे प्रमुख संस्थान शामिल थे। सभी वैज्ञानिक संस्थानों ने एकमत से माना कि यह आपदा इंसानी हस्तक्षेप से नहीं बल्कि प्राकृतिक कारणों से हुई। हालांकि, रिपोर्ट में यह भी सुझाव दिए गए हैं कि भविष्य में इस तरह की तबाही से बचाव किया जा सकता है यदि अग्रिम चेतावनी प्रणाली और वैज्ञानिक निगरानी सही ढंग से अपनाई जाए।
स्थानीय निवासियों की चिंता
धराली आपदा ने यहां के ग्रामीणों के दिलों में गहरी दहशत बैठा दी है। लोग अपनी फसलों, मकानों और भविष्य को लेकर असमंजस में हैं। कई ग्रामीणों का कहना है कि जब भी तेज बारिश होती है, वे नींद हराम कर चौकन्ने रहते हैं। अब हर्षिल और आसपास के बचे-खुचे इलाकों को लेकर भी भय बढ़ चुका है।
सरकार और वैज्ञानिक समुदाय की जिम्मेदारी
धराली की त्रासदी ने यह स्पष्ट कर दिया है कि उत्तराखंड के संवेदनशील पर्वतीय क्षेत्रों में आपदा प्रबंधन को और अधिक प्रभावी बनाने की सख्त जरूरत है। जहां पहाड़ दिन-प्रतिदिन कमजोर हो रहे हैं, वहीं जलवायु परिवर्तन और तेज बारिश इन खतरों को और बढ़ा रही है।
सरकार को चाहिए कि वैज्ञानिक सिफारिशों को गंभीरता से लागू करे और स्थानीय लोगों को आपदा से बचने के लिए प्रशिक्षित करे। साथ ही, हर्षिल जैसे पर्यटक स्थलों की सुरक्षा सुनिश्चित करना भी जरूरी है, क्योंकि यहां तबाही का असर न केवल स्थानीय जीवन पर बल्कि पर्यटन और सामरिक दृष्टिकोण पर भी पड़ेगा।