हिमाचल: इस वर्ष हिमाचल प्रदेश में मानसून ने 76 साल का रिकॉर्ड तोड़ा और अगस्त 2025 में 1948 के बाद सबसे अधिक वर्षा दर्ज की गई। बारिश के कारण पहाड़ियाें में लगातार भूस्खलन, बादल फटना और भूस्खलन जैसी घटनाएं होती रहीं, जिससे हजारों मकान पूरी तरह या आंशिक रूप से क्षतिग्रस्त हो गए। मनाली, लाहौल-स्पीति, चंबा और हमीरपुर जैसे जिले सबसे ज्यादा प्रभावित रहे, जहां अनेक सड़कें और पुल बह गए एवं कई गांव पूरी तरह से कट गए।
सरकारी घोषणा और नुकसान के आंकड़े
मुख्यमंत्री सुखविंद्र सिंह सुक्खू ने हिमाचल प्रदेश को आपदा प्रभावित राज्य घोषित किया है। इस बार के मानसून में 45 बार बादल फटने, 91 बार बाढ़ आने और 105 बड़े भूस्खलन की घटनाएं दर्ज की गईं। अब तक करीब 3,056 करोड़ रुपये की संपत्ति का नुकसान हो चुका है और नुकसान का आकलन अभी भी जारी है। 161 लोगों की मौत, 40 लोग लापता और सड़क दुर्घटनाओं में 154 लोगों ने जान गंवाई। 845 मकान पूरी तरह नष्ट हो गए जबकि 3,254 घर आंशिक रूप से क्षतिग्रस्त हुए हैं।
इसका जनजीवन पर असर
बारिश और भूस्खलन के चलते 666 सड़कें, 985 ट्रांसफार्मर, और 495 पेयजल योजनाएं बंद हो गईं। स्कूल, कालेज और तमाम शैक्षणिक संस्थान कई जिलों में बंद कर दिए गए। मनाली-लेह हाईवे, चंडीगढ़-मनाली नेशनल हाईवे, कालका-शिमला रेलवे लाइन समेत दर्जनों सड़कों पर यातायात बाधित है। ब्यास और मनालसू जैसी नदियां खतरे के निशान से ऊपर बह रही हैं, जिससे आसपास के गांवों में बाढ़ जैसी स्थिति बनी रही।
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प्रशासनिक प्रयास और राहत कार्य
सरकार ने जिला, शहरी निकाय और पंचायत स्तर पर आपातकालीन व्यवस्था लागू की है। पीडब्ल्यूडी, जलशक्ति विभाग और विद्युत बोर्ड जैसी एजेंसियों ने युद्धस्तर पर सुविधाएं बहाल करने के आदेश दिए हैं। एनडीआरएफ, एसडीआरएफ और सेना द्वारा बचाव कार्य जारी हैं तथा हजारों लोगों को सुरक्षित निकाला गया है।
ग्रामीण इलाकों में लोगों को खाद्य सामग्री, पीने का पानी और दवाओं की भारी किल्लत है। मणिमहेश यात्रा के रास्ते फंसे यात्रियों को बचाया जा रहा है, वहीं कई यात्री और श्रद्धालु अब भी फंसे हुए हैं। फसलें और पशुशालाएं नष्ट होने से लोगों की आजीविका पर भी गहरा असर पड़ा है।
प्रकृति का कहर का एक उच्चतम रिकॉर्ड
अगस्त 2025 में औसत से 72% अधिक वर्षा रिकॉर्ड की गई। 76 वर्षों में इस स्तर की बारिश पहली बार देखने को मिली। पहाड़ियों का दरकना, गांवों का कट जाना और हजारों लोगों का विस्थापित होना हिमाचल के लिए कुदरत के बड़े संकट का संकेत है।