अल्मोड़ा: उत्तराखंड का अल्मोड़ा क्षेत्र अपनी समृद्ध लोक संस्कृति, परंपराओं और रीति-रिवाजों के लिए जाना जाता है। यहां की पहाड़ियों में बुनी हुई सभ्यता और लोक जीवन की सादगी और गहराई लोगों का मन मोह लेती है। इसी सांस्कृतिक विरासत को संजोने और उसे आगे बढ़ाने में अल्मोड़ा की प्रियंका भंडारी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं। वह खास तौर से कुमाऊनी रीति-रिवाज और लोक कला ऐपण के माध्यम से समाज में अपनी पहचान बना रही हैं और करवाचौथ जैसे पर्व को एक खास सांस्कृतिक रंग दे रही हैं।
कुमाऊनी रीति-रिवाज की महत्ता
कुमाऊं क्षेत्र के लोक रीति-रिवाज उत्तराखंड की सांस्कृतिक विविधता की पहचान हैं। यहां की शादी से लेकर त्योहार तक, हर आयोजन में परंपराओं की गूढ़ता और सामाजिक रस्मों की झलक मिलती है। कुमाऊनी विवाहों में होने वाले अनुष्ठान, जिनमें पाणिग्रहण, कन्यादान, सप्तपदी जैसे रस्में प्रमुख हैं, स्थानीय संस्कारों और धार्मिक आचरण को दर्शाते हैं। परंपरागत गीत-संगीत, वस्त्र, और पूजा-पद्धतियां इस क्षेत्र की विशिष्टता को उजागर करती हैं। इस सांस्कृतिक फलक के संरक्षण और प्रसार में स्थानीय कलाकारों तथा युवाओं की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण होती जा रही है, जिनमें प्रियंका जैसी महिलाएं अग्रणी हैं।
करवाचौथ पर्व और उसकी सांस्कृतिक गरिमा
करवाचौथ उत्तर भारत के कई हिस्सों में मनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण व्रत और त्योहार है, जिसमें मुख्यतः विवाहित महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र और सुख-शांति के लिए उपवास रखती हैं और चंद्र दर्शन के बाद व्रत खोलती हैं। उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों में भी इस पर्व का अपना विशेष महत्व है, जहां इसे कुमाऊनी रीति से सजाए-धजे तौर-तरीकों और लोकगीतों से मनाया जाता है। इस पर्व के दौरान पूजा की सामग्रियां जैसे थाली, दीया, छलनी, और लोटा विशेष पूजा विधि के साथ सजाए जाते हैं, जो सांस्कृतिक समृद्धि को दर्शाती हैं।
ऐपण कला: सांस्कृतिक पहचान और सजावट का माध्यम
ऐपण उत्तराखंड की एक पारंपरिक लोक चित्रकला है, जो ज्यादातर शादी-विवाह, त्योहार और सामाजिक आयोजनों में पूजा की थालियों, दीयों तथा दीवारों पर बनाई जाती है। ऐपण में ज्यामितीय आकृतियों, पुष्पों, पशुओं, देवताओं, और प्राकृतिक प्रतीकों का सुंदर चित्रण होता है जो शुभता और सकारात्मक उर्जा का प्रतिनिधित्व करता है। अल्मोड़ा में ऐपण की पारंपरिक कला को अब आधुनिक रंगत और डिजाइनों के साथ सजाया जा रहा है ताकि युवा पीढ़ी में इसका आकर्षण बना रहे और यह कला जीवित रहे।
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प्रियंका की पहल: ऐपण के माध्यम से करवाचौथ थाल तैयार करना
अल्मोड़ा की प्रियंका भंडारी ने कुमाऊनी रीति-रिवाज के संरक्षण के लिए ऐपण कला को एक सशक्त माध्यम चुना है। उन्होंने करवाचौथ के लिए खास ऐपण से सजाई गई पूजा थाल तैयार कर इसे सांस्कृतिक उत्सव का केंद्र बिंदु बनाया है। यह थाली पारंपरिक रंगों और डिजाइनों से सजी होती है, जिसमें स्थानीय कलात्मक आकृतियां और शुभ प्रतीकों को तरजीह दी जाती है।
प्रियंका की इस पहल से न केवल करवा चौथ के आयोजन की सुंदरता बढ़ी है बल्कि पहाड़ी लोक कला को भी एक नए मुकाम पर पहुंचाने का प्रयास हुआ है। आल्मोड़ा में उन्होंने एक ऐपण स्टूडियो भी स्थापित किया है, जहां लोक कलाकार ऐपण की विभिन्न कृतियां बनाकर इसे स्थानीय और बाह्य बाजारों तक पहुंचा रहे हैं।
सांस्कृतिक संरक्षण में युवाओं की भूमिका
प्रियंका जैसे युवा कलाकार आधुनिकता के दौर में अपनी सांस्कृतिक विरासत को बचाने और बढ़ावा देने के लिए निरंतर प्रयासरत हैं। उनकी यह कोशिश न केवल अल्मोड़ा और कुमाऊं के रीति-रिवाजों को जीवित रख रही है बल्कि पूरे उत्तराखंड की सांस्कृतिक धरोहर को मान-प्रतिष्ठा दिलाने में सहायक है। ऐपण कला के प्रति युवाओं में जागरूकता बढ़ाने के लिए प्रियंका कार्यशालाएं भी आयोजित करती हैं जहां वे लोक कला और इसकी महत्वता लोगों को समझाती हैं। इससे पारंपरिक कला घर-घर तक पहुंच रही है और त्योहारों का सौंदर्य और भी अधिक निखर रहा है।
अल्मोड़ा की प्रियंका का यह प्रयास कि वे कुमाऊनी रीति-रिवाज को ऐपण कला के माध्यम से संवारे और कारवा चौथ जैसे पर्वों को सांस्कृतिक रंगों से सजाए, वहां की सांस्कृतिक पहचान को मजबूत करता है। यह न केवल हमारी जड़ों से जुड़ाव दर्शाता है बल्कि लोक कला की नई पीढ़ी में पुनरुत्थान की भी कहानी कहता है। ऐसे कलाकार हमारे सांस्कृतिक परिदृश्य के संरक्षक हैं और उनकी मेहनत से हमारी उपेक्षित परंपराएं पुनः जीवंत हो रही हैं। करवा चौथ के ऐपन कला थाल के जरिए प्रियंका ने इस प्रथा को आधुनिक युग में भी लोक संस्कृति की धारा से जोड़ दिया है, जो आने वाले समय में और भी प्रगतिशील होगी।
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यह लेख कुमाऊनी रीति-रिवाज, करवा चौथ के महत्व, ऐपण कला, और अल्मोड़ा की प्रियंका के सांस्कृतिक योगदान पर प्रकाश डालता है, जिससे उत्तराखंड की सांस्कृतिक धरोहर की गहराई समझ सकें।