नेपाल: नेपाल में एक बार फिर युवा आंदोलनों की लहर देखी जा रही है। हाल ही में जन-ज़ेड (Gen Z) युवाओं ने देश के कई हिस्सों में सरकार के प्रति असंतोष जताते हुए सड़कों पर उतर कर प्रदर्शन शुरू कर दिए हैं। बढ़ते विरोध और सुरक्षा चिंताओं के बीच प्रशासन ने कई संवेदनशील इलाकों में कर्फ्यू लगाने का फैसला किया है। हालात इस कदर तनावपूर्ण हो गए हैं कि सड़कों पर सुरक्षाबलों की तैनाती बढ़ा दी गई है और प्रमुख बाजार क्षेत्रों में गतिविधियां लगभग ठप पड़ गई हैं। सिमारा, बीरगंज और काठमांडू घाटी के कुछ इलाकों में विरोध प्रदर्शन सबसे ज्यादा प्रभावशाली रहे। गुरुवार सुबह बड़ी संख्या में प्रदर्शनकारी सिमारा चौक पर एकत्र हुए, जहां उन्होंने बुधवार को हुई झड़पों के लिए जिम्मेदार लोगों की गिरफ्तारी की मांग दोहराई।
पुलिस ने पहले भीड़ को हटाने की अपील की, लेकिन जब भीड़ बेकाबू हुई तो सुरक्षा बलों ने बल प्रयोग किया। आंसू गैस के गोले छोड़े गए और कई जगह हल्की झड़पें भी हुईं।प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, सिमारा हवाई अड्डे के पास पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच टकराव बढ़ा, जिससे कुछ समय के लिए हवाई परिचालन रोकना पड़ा। इसके बाद जिला प्रशासन ने दोपहर करीब 12.45 बजे सिमारा क्षेत्र में कर्फ्यू की घोषणा की, जो शाम 8 बजे तक जारी रहा। बारा जिले के अधिकारी ने बताया कि कर्फ्यू का फैसला जनता की सुरक्षा को ध्यान में रखकर किया गया है ताकि किसी बड़ी हिंसा की संभावना को टाला जा सके।
यह भी पढ़ें:देहरादून में सहकारिता का नया समीकरण, 39 समितियों के नतीजे तय, गुरुवार को सभापति की परीक्षा
जन-ज़ेड समूह ने कहा है कि उनका विरोध किसी राजनीतिक दल से प्रेरित नहीं है, बल्कि यह युवाओं की आवाज है जो बेरोजगारी, भ्रष्टाचार और जवाबदेही की कमी के खिलाफ उठ रही है। प्रदर्शनकारियों ने बुधवार को हुए टकराव में घायल हुए छह साथियों के लिए न्याय की मांग की और प्रशासन पर कार्रवाई में ढिलाई बरतने का आरोप लगाया।सुरक्षा बलों और प्रशासन के बीच निरंतर संवाद की कोशिशें जारी हैं, लेकिन फिलहाल शांतिपूर्ण समाधान की कोई ठोस संभावना नजर नहीं आ रही है। नेपाल सरकार की चुनौती यह है कि वह आंदोलन को दबाने की बजाय उसकी वजहों पर ध्यान दे। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि यह केवल एक स्थानीय अशांति नहीं बल्कि युवाओं में गहराता असंतोष है, जिसे नज़रअंदाज़ करना भविष्य में और गंभीर परिणाम ला सकता है।काठमांडू विश्वविद्यालय के समाजशास्त्री डॉ. सुनिल अधिकारी के अनुसार, नेपाल की युवा पीढ़ी अब सिर्फ सोशल मीडिया पर असहमति नहीं जताती, बल्कि सड़कों पर उतर कर बदलाव की मांग करती है। सरकार के लिए यह एक संकेत है कि उसे संवाद की नीतियों को मजबूत करना होगा। आंदोलन का असर स्थानीय अर्थव्यवस्था पर भी दिखाई दे रहा है। सिमारा और बीरगंज जैसे इलाकों में दुकानें बंद हैं।
परिवहन सेवाओं पर रोक लगी है, जबकि नागरिकों ने आवश्यक वस्तुओं की कमी की शिकायत की है। प्रशासन ने लोगों से घरों में रहने और अफवाहों से दूर रहने की अपील की है। सरकारी प्रवक्ता ने यह भी कहा कि अगर स्थिति जल्द नहीं सुधरी तो सुरक्षा कदम और कड़े किए जाएंगे।जन-ज़ेड आंदोलन नेपाल की बदलती सामाजिक-राजनीतिक मानसिकता की झलक देता है। यह वही पीढ़ी है जो डिजिटल माध्यमों से जुड़ी है, जिसके पास सूचना और अभिव्यक्ति के तमाम साधन हैं। वे सरकार से तत्काल कार्रवाई, पारदर्शिता और जवाबदेही चाहते हैं। यही वजह है कि इन प्रदर्शनों को सिर्फ एक अस्थायी विरोध की तरह नहीं देखा जा सकता, बल्कि देश की लोकतांत्रिक दिशा पर असर डालने वाले चेतावनी संकेत के रूप में समझा जा रहा है।अब यह देखना दिलचस्प होगा कि नेपाल सरकार इस बार युवाओं की इन मांगों और नाराजगी से निपटने के लिए क्या रुख अपनाती है—दमन का या संवाद का। क्योंकि वर्तमान हालात यही बता रहे हैं कि जन-ज़ेड की यह लहर अब केवल सिमारा या काठमांडू तक सीमित नहीं रहेगी, बल्कि यह संदेश दे रही है कि नेपाल का युवा अब चुप नहीं बैठेगा।
