हरिद्वार: हरिद्वार जनपद के रुड़की क्षेत्र से एक अजीबो-गरीब मामला सामने आया है, जिसने परिवारों और समाज में चर्चा का विषय बना दिया है। यहां एक युवती ने अपने ही मामा से विवाह करने की जिद ठान ली है। परिजनों के लाख समझाने और कई रिश्ते सुझाए जाने के बावजूद युवती का रुख न बदलने से परिवार की परेशानी बढ़ती जा रही है। मामला अब थाने तक पहुंच चुका है, जहां परिवार ने पुलिस से इस जटिल और सामाजिक रूप से संवेदनशील स्थिति में सहायता की मांग की है। सूत्रों के अनुसार, युवती पिछले कुछ महीनों से अपने मामा के प्रति लगाव व्यक्त कर रही थी। परिवार ने इसे शुरू में भावनात्मक लगाव समझकर नजरअंदाज किया, लेकिन जब युवती ने विवाह की बात पर अड़ान रखी, तो स्थिति गंभीर हो गई।
परिजन बार-बार समझाने की कोशिश करते रहे कि ऐसा रिश्ता हिंदू समाज की परंपराओं और धार्मिक मर्यादाओं के विरुद्ध है, परंतु युवती अपने फैसले पर अड़ी रही। युवती के इस रुख ने पूरे परिवार को असमंजस की स्थिति में डाल दिया है। सामाजिक दृष्टि से “मामा” और “भांजी” का संबंध पूजनीय माना जाता है, जिसे विवाह संबंध में बदलना अधिकांश समुदायों में अस्वीकार्य है। इस कारण परिवार के लोग समाज में अपनी इज्जत और रिश्तों के ताने-बाने को लेकर भी चिंतित हैं।परिजनों ने आखिरकार इस संवेदनशील विषय को गंगनहर कोतवाली ले जाने का निर्णय लिया।
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पुलिस अधिकारियों ने परिवार के साथ बैठकर पूरे मामले की जानकारी ली। पुलिस के अनुसार, फिलहाल यह मामला पारिवारिक विवाद की श्रेणी में आता है, और वे दोनों पक्षों को आपसी समझ और संवाद से समाधान निकालने की सलाह दे रहे हैं। यदि आवश्यकता पड़ी तो समाजसेवी संगठनों और महिला परामर्श केंद्र की मदद भी ली जाएगी। मनोरोग विशेषज्ञों द्वारा इस तरह के मामलों को “भावनात्मक भ्रम” या “परिवार में सीमाओं के धुंधलाने” का उदाहरण बताया जाता है। उनके अनुसार, कुछ मामलों में भावनात्मक निकटता, लगाव या निर्भरता को व्यक्ति रोमांटिक भावनाओं के रूप में समझ बैठता है, जिससे परिवार में तनाव की स्थिति उत्पन्न होती है। विशेषज्ञों का मानना है कि ऐसे मामलों में तुरंत टकराव या सामाजिक अपमान से बेहतर है कि परिवार शांतिपूर्वक मनोवैज्ञानिक परामर्श ले।रुड़की का यह मामला यह भी दर्शाता है कि समाज में बदलती सोच, व्यक्तिगत स्वतंत्रता और पारिवारिक परंपराओं के बीच संघर्ष लगातार बढ़ रहा है। जहां एक ओर युवाओं को अपने निर्णय लेने की आजादी चाहिए, वहीं दूसरी ओर समाज और परिवार मर्यादाओं की सीमाओं को सहेजने के लिए संघर्षरत हैं।
गांव और कस्बों में ऐसे मामले अपवाद स्वरूप सामने आते हैं, लेकिन सोशल मीडिया और आधुनिक जीवनशैली ने रिश्तों की परिभाषा पर भी असर डाला है। इस घटना के बाद आसपास के क्षेत्र में इस मुद्दे को लेकर तरह-तरह की चर्चाएं चल रही हैं, और लोग इसे पारिवारिक मूल्यों के ह्रास के रूप में भी देख रहे हैं।फिलहाल पुलिस मामले की निगरानी कर रही है और परिवार को शांति एवं समझदारी से आगे कदम उठाने की सलाह दी गई है। देखने वाली बात होगी कि क्या युवती अपनी जिद छोड़ती है या यह विवाद किसी नए मोड़ पर पहुंचता है। जो भी हो, रुड़की का यह मामला समाज को यह सोचने पर विवश कर रहा है कि बदलते दौर में रिश्तों की मर्यादा को कैसे सहेजा जाए और नई पीढ़ी को संस्कारों और व्यक्तिगत अधिकारों के बीच संतुलन बनाना कैसे सिखाया जाए।
