देहरादून। जिले की 39 सहकारी समितियों के 30 वार्डों में संचालक पदों के लिए गुरुवार को शांतिपूर्ण ढंग से मतदान संपन्न हो गया। विभिन्न समितियों में हुए इस चुनाव को लेकर सुबह से ही मतदाताओं में खासा उत्साह देखने को मिला। ग्रामीणों ने सक्रिय भागीदारी करते हुए स्थानीय सहकारिता व्यवस्था में अपनी भूमिका निभाई। देर रात तक मतगणना का कार्य चलता रहा और धीरे-धीरे परिणामों की घोषणा होती रही। इन चुनावों का सबसे बड़ा केंद्र वार्ड-4 नकारौंदा रहा, जहां उमा पांडेय ने अपने प्रतिद्वंद्वी उम्मीदवार विमला जोशी को बड़े अंतर से पराजित किया। उमा पांडेय को कुल 58 मत प्राप्त हुए जबकि विमला जोशी को मात्र 15 वोट ही मिले। इस जीत के साथ उमा पांडेय ने स्थानीय स्तर पर अपनी मजबूत पकड़ साबित कर दी है। उनके समर्थकों में परिणाम आने के साथ ही खुशी की लहर दौड़ गई और देर रात तक लोगों ने उनके आवास पर पहुंचकर बधाइयां दीं।
जिले के अन्य वार्डों से भी दिलचस्प नतीजे सामने आए हैं। कई समितियों में मौजूदा संचालकों ने अपने पदों को बरकरार रखा, वहीं कुछ स्थानों पर नए चेहरों ने विजय हासिल की। नुगलता, सहसपुर, सेलाकुई, रायपुर, डोईवाला, और विकासनगर क्षेत्रों की सहकारी समितियों में मुकाबला कांटे का रहा। कई जगह पर जीत-हार का अंतर महज कुछ वोटों का ही रहा। प्रशासन की ओर से चुनाव प्रक्रिया को निष्पक्ष और पारदर्शी बनाने के लिए सभी आवश्यक इंतजाम किए गए थे। जिलाधिकारी सोनिका के निर्देशन में सहकारिता विभाग के अधिकारियों ने मतदान केंद्रों का निरीक्षण किया। सभी केंद्रों पर पुलिस बल की तैनाती की गई थी ताकि मतदान शांतिपूर्वक संपन्न हो सके। अधिकारियों के अनुसार, कहीं से भी किसी प्रकार की अनियमितता या विवाद की सूचना नहीं मिली।
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अब प्रशासन की निगाहें अगले चरण की ओर हैं। बृहस्पतिवार को सहकारी समितियों के सभापति और उपसभापति का चुनाव कराया जाएगा। इसके लिए तैयारियां पूरी कर ली गई हैं। जिन समितियों में संचालक मंडल का गठन पूरा हो चुका है, वहां सभापति पद के लिए जोड़-तोड़ और रणनीतियां शुरू हो गई हैं। स्थानीय राजनीतिक समीकरण भी इन समितियों के परिणामों से प्रभावित हो सकते हैं।सहकारी समितियां राज्य की ग्रामीण अर्थव्यवस्था की रीढ़ मानी जाती हैं। इन समितियों के माध्यम से किसान, काश्तकार और छोटे उद्यमी वित्तीय सहायता, बीज, खाद, और कृषि उपकरणों की आपूर्ति से जुड़ते हैं। ऐसे में इन समितियों में चुने गए संचालकों की जिम्मेदारी और बढ़ जाती है। विशेषज्ञों का कहना है कि यदि नई टीम पारदर्शिता और कार्यकुशलता पर ध्यान दे, तो सहकारिता आंदोलन में नई ऊर्जा आ सकती है।विजयी उम्मीदवारों ने कहा कि वे किसानों और ग्रामीण हितों को सर्वोच्च प्राथमिकता देंगे।
उमा पांडेय ने कहा कि यह जीत केवल व्यक्तिगत नहीं, बल्कि समर्पण और जनसेवा की जीत है। उन्होंने भरोसा जताया कि नई समिति किसानों के लिए लाभकारी योजनाओं को सुदृढ़ करने की दिशा में काम करेगी। जिले में सहकारी समितियों के चुनावों के पूरा होने के बाद अब सभी की नजरें सभापति और उपसभापति के चयन पर टिक गई हैं। इन पदों के लिए अब दावेदारी तेज हो गई है और राजनीतिक माहौल एक बार फिर गर्माने लगा है। गुरुवार को होने वाले इन चुनावों के नतीजे यह तय करेंगे कि जिले में सहकारिता की नई दिशा किसके हाथों में रहेगी।
