उत्तर प्रदेश: मुजफ्फरनगर की एक दर्दनाक घटना ने फिर से यह सोचने पर मजबूर कर दिया है कि हमारी शिक्षा व्यवस्था कब इंसानियत का सबक सीखेगी। सिर्फ पांच हजार रुपये की फीस जमा कराने को लेकर शुरू हुआ विवाद एक मासूम छात्र की जान लेने पर खत्म हुआ। यह मामला न केवल स्कूल प्रबंधन की लापरवाही को उजागर करता है, बल्कि पुलिस की भूमिका और समाज में बढ़ती असंवेदनशीलता की भी पोल खोलता है। जानकारी के अनुसार, यह घटना मुजफ्फरनगर के एक इंटर कॉलेज की है, जहां छात्र उज्ज्वल राणा फीस के कुछ बकाया रुपये जमा कराने गया था। बताया गया कि प्राचार्य प्रदीप कुमार ने उज्ज्वल से अपमानजनक लहजे में कहा कि “कॉलेज तेरे बाप की धर्मशाला नहीं है।” यह कथन किसी भी छात्र के आत्मसम्मान पर गहरा प्रहार कर सकता है। अपमान का बोझ झेल रहे उज्ज्वल ने विवश होकर विरोध जताया, लेकिन इसके बाद कहानी ने और भयावह रूप ले लिया।
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मृतक की बहन सलोनी के मुताबिक, मौके पर पहुंची पुलिस ने उज्ज्वल को समझाने के बजाय उसकी पिटाई की और जेल भेजने की धमकी दी। यह व्यवहार कानून की रक्षा करने वालों से किसी भी रूप में अपेक्षित नहीं था। ऐसे हालात में जहां एक छात्र खुद को असहाय महसूस करे, वहां कानून और शिक्षा दोनों की गरिमा पर सवाल खड़े होते हैं।घटना के बाद इलाके में शोक और आक्रोश का माहौल है। परिवार ने स्कूल प्रबंधन और पुलिस दोनों पर उत्पीड़न का आरोप लगाया है। लोगों का कहना है कि उज्ज्वल जैसे छात्र समाज की रीढ़ होते हैं, और ऐसी घटनाएं युवाओं के मनोबल को तोड़ देती हैं। सिर्फ फीस के कुछ हजार रुपये एक ऐसा कारण नहीं हो सकता जो किसी की जिंदगी छीन ले।यह घटना शिक्षा संस्थानों में प्रचलित संवेदनहीन रवैये की सच्चाई उजागर करती है।
स्कूल और कॉलेज वह स्थान होते हैं जहां बच्चे केवल ज्ञान नहीं, बल्कि इंसानियत और संवेदना सीखते हैं। लेकिन जब उन्हीं दीवारों के भीतर अभद्रता, अहंकार और शक्ति प्रदर्शन का वातावरण बन जाए, तो यह शिक्षा का नहीं, अपमान का केंद्र बन जाता है।अब सवाल यह है कि क्या इतनी बड़ी त्रासदी के बाद भी जिम्मेदारों पर कार्रवाई होगी? क्या हमारी व्यवस्था ऐसे मामलों में सुधार की दिशा में कोई कदम उठाएगी? समाज को चाहिए कि वह उज्ज्वल की मौत को केवल एक “केस फाइल” न बनने दे, बल्कि यह सुनिश्चित करे कि भविष्य में कोई और छात्र ऐसे अन्याय का शिकार न हो।
