चौखुटिया: अल्मोड़ा ज़िले का चौखुटिया क्षेत्र इन दिनों एक नई कहानी लिख रहा है—जनजागरण और जमीनी बदलाव की कहानी। बुधवार की सुबह जहां आमतौर पर गांवों में खामोशी रहती थी, वहां आज लोगों की आवाज़ें गूंज रही थीं। सैकड़ों नहीं, बल्कि हजारों की संख्या में महिलाएं, युवा और बुजुर्ग अपने अधिकार की मांग लेकर सड़कों पर उतर आए। हाथों में बैनर, आंखों में उम्मीद और होठों पर सवाल—“कब तक यूं ही इलाज के अभाव में जिंदगियां बुझती रहेंगी?”
यह पहला मौका है जब चौखुटिया जैसे शांत क्षेत्र में स्वास्थ्य सुविधाओं की बदहाली को लेकर इतना बड़ा जनआंदोलन खड़ा हुआ है। लोग अब सिर्फ वादों से नहीं, वास्तविक सुधार की मांग कर रहे हैं।
समस्या की जड़ें गहरी हैं
चौखुटिया ब्लॉक में लंबे समय से प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों की स्थिति बेहद दयनीय बनी हुई है। कई केंद्र बिना डॉक्टर के चल रहे हैं, दवाइयों की किल्लत आम है। गर्भवती महिलाएं, बुजुर्ग और बीमार बच्चे प्राथमिक चिकित्सा के अभाव में मीलों दूर तक सफर करने को मजबूर हैं। ग्रामीण बताते हैं कि आपात स्थिति में मरीजों को हल्द्वानी या रामनगर तक रेफर किया जाता है, जहां पहुंचते-पहुंचते कई बार जिंदगी की डोर टूट जाती है। रैली में शामिल सतुली गांव की एक महिला, गौरा देवी, कहती हैं—हमारे यहां दर्द का इलाज नहीं, बस इंतज़ार मिलता है। एम्बुलेंस बुलाओ तो कहती है पहाड़ पर नहीं पहुंच सकती। दवा मांगो तो स्टॉक खत्म, डॉक्टर खोजो तो छुट्टी पर। आखिर कब तक हम यूं ही तड़पते रहेंगे?
आंदोलन की शुरुआत
यह आंदोलन सिर्फ किसी संगठन का नहीं, बल्कि पूरे क्षेत्र का है। बीते कुछ महीनों से ग्रामसभा बैठकों में लोग लगातार स्वास्थ्य ढांचे पर चर्चा कर रहे थे। धीरे-धीरे ये असंतोष सामूहिक आक्रोश में बदल गया। बुधवार को जब हजारों लोग चौखुटिया मुख्य बाजार में एकत्र हुए, तो पूरा इलाका नारों से गूंज पड़ा—स्वास्थ्य हमारा अधिकार है, डॉक्टर दो, दवा दो, जीवन का अधिकार दो। इस रैली में महिलाओं की भागीदारी उल्लेखनीय रही। गांव की महिलाएं पारंपरिक वेशभूषा में आईं और सरकार से सीधे सवाल किए। युवा वर्ग ने सोशल मीडिया के जरिए आंदोलन की तस्वीरें साझा कर पूरे जिले में इसे चर्चा का विषय बना दिया।
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जनता की मांगें
रैली समाप्ति पर उपजिलाधिकारी कार्यालय के बाहर एक ज्ञापन सौंपा गया जिसमें मुख्य मांगें थीं—
- चौखुटिया और आसपास के स्वास्थ्य केंद्रों में तुरंत डॉक्टरों की नियुक्ति
- दवाओं की नियमित आपूर्ति सुनिश्चित की जाए
- 24 घंटे एम्बुलेंस सेवा शुरू की जाए
- गर्भवती महिलाओं के लिए निशुल्क जांच और परामर्श शिविर नियमित किए जाएं
- बुनियादी ढांचे (लेबर रूम, लैब और प्रसव सुविधा) को दुरुस्त किया जाए
लोगों का कहना है कि अगर इन मांगों को जल्द पूरा नहीं किया गया, तो आंदोलन को जिला मुख्यालय तक ले जाया जाएगा।
सरकार के इंतज़ार में उम्मीदें
स्थानीय प्रशासन ने भी पहली बार इस गंभीरता को समझा है। उपजिलाधिकारी ने प्रतिनिधिमंडल से मुलाकात कर आश्वासन दिया कि मांगों को मुख्यमंत्री तक पहुंचाया जाएगा। साथ ही यह भी वादा किया गया है कि अगले महीने तक डॉक्टरों की तैनाती की प्रक्रिया शुरू की जाएगी। हालांकि स्थानीय लोग अब केवल वादों से संतुष्ट नहीं हैं। बीते वर्षों में कई बार योजनाओं का ऐलान हुआ, पर ज़मीनी हकीकत जस की तस रही। चौखुटिया के व्यापारी संगठन के अध्यक्ष का कहना है, यह आंदोलन किसी राजनीतिक स्वार्थ से नहीं जुड़ा, यह हमारे अस्तित्व की लड़ाई है। जब तक क्षेत्र में स्वास्थ्य सुविधाओं में वास्तविक परिवर्तन नहीं दिखेगा, तब तक यह जनआवाज थमेगी नहीं।
पहाड़ में स्वास्थ्य संकट
सिर्फ चौखुटिया ही नहीं, बल्कि पूरे पहाड़ का यही हाल है। दुर्गम भौगोलिक परिस्थितियों, सीमित बजट और स्टाफ की कमी ने प्राथमिक स्वास्थ्य ढांचे को पूरी तरह पंगु बना दिया है। पहाड़ी रास्तों से एम्बुलेंस पहुंचना मुश्किल होता है, वहीं डॉक्टर और नर्सें ऐसी जगहों पर स्थायी रूप से सेवा देने से कतराते हैं। सरकारें योजनाएं तो बनाती हैं, पर उनका लाभ गांव तक नहीं पहुंच पाता। चौखुटिया का यह आंदोलन इसलिए भी अहम है, क्योंकि यह समस्या पूरे उत्तराखंड के पहाड़ी अंचलों की प्रतिनिधि बन गई है।
नई सोच की शुरुआत
रैली के अंत में युवाओं ने एकजुट होकर “चौखुटिया हेल्थ वॉच कमेटी” का गठन किया। इस समिति का उद्देश्य है कि हर गांव में स्वास्थ्य सेवाओं की निगरानी की जाए और किसी भी तरह की अनियमितता की जानकारी सीधे प्रशासन को दी जाए। लोगों का कहना है कि वे आंदोलनों के साथ-साथ व्यवस्था में सहयोग भी करना चाहते हैं, ताकि स्थायी परिवर्तन संभव हो सके। बुजुर्गों ने युवाओं की इस पहल की सराहना की और कहा कि जिस दिन जनता खुद अपने अधिकारों के लिए संगठित हो जाती है, उसी दिन परिवर्तन की दिशा तय हो जाती है।
चौखुटिया की सड़कों पर उठी यह आवाज़ अब सिर्फ एक क्षेत्र की नहीं रही। यह आवाज़ पूरे उत्तराखंड के उपेक्षित गांवों की आवाज़ बन चुकी है। यह रैली सत्ता से सवाल पूछती है—क्या स्वास्थ्य सेवाएं केवल शहरों तक सीमित रहेंगी या पहाड़ भी इस अधिकार का हकदार बनेगा? लोग अब भी उम्मीद लगाए बैठे हैं कि सरकार जल्द ठोस कदम उठाएगी। अगर ऐसा नहीं हुआ, तो यह आंदोलन आगे और बड़ा रूप ले सकता है। चौखुटिया का यह संघर्ष आने वाले समय में पहाड़ी स्वास्थ्य सुधार की नई राह बना सकता है।