हरिद्वार: उत्तराखंड अधीनस्थ सेवा चयन आयोग (UKSSSC) द्वारा एक और परीक्षा टलने की घोषणा ने युवाओं को असमंजस की स्थिति में डाल दिया है। आयोग ने 5 अक्टूबर को प्रस्तावित सहकारी निरीक्षक वर्ग-2 और सहायक विकास अधिकारी सहकारी की भर्ती परीक्षा स्थगित कर दी है। आयोग के मुख्य कार्यकारी अधिकारी जी.एस. मार्तोलिया ने बताया कि यह फैसला परीक्षार्थियों के अनुरोध को ध्यान में रखते हुए लिया गया है। उन्होंने साथ ही यह भी आश्वासन दिया कि परीक्षा की नई तिथि शीघ्र घोषित की जाएगी, ताकि अभ्यर्थियों को तैयारी के लिए पर्याप्त समय मिल सके। इस निर्णय से उन हजारों उम्मीदवारों की धड़कनें तेज हो गई हैं, जो लंबे समय से इस परीक्षा की तैयारी कर रहे थे। परीक्षाओं का बार-बार स्थगन न केवल युवाओं के धैर्य की परीक्षा ले रहा है, बल्कि उनकी भविष्य की योजनाओं को भी प्रभावित कर रहा है।
पेपर लीक विवाद और सख्ती का संदेश
परीक्षा स्थगित होने से पहले ही राज्य की राजनीति परीक्षा पेपर लीक प्रकरण को लेकर गर्मा चुकी थी। बुधवार को मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने इस मामले पर अपनी चुप्पी तोड़ते हुए कहा कि सरकार ने भर्ती प्रक्रिया की पारदर्शिता और निष्पक्षता सुनिश्चित करने के लिए तुरंत कदम उठाए हैं। उन्होंने स्पष्ट किया कि उत्तराखंड के युवाओं के साथ अन्याय किसी भी सूरत में बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। मुख्यमंत्री धामी ने भरोसा जताया कि सरकार की प्राथमिकता योग्य अभ्यर्थियों को न्याय दिलाना और भ्रष्टाचार के किसी भी प्रयास को कठोरता से समाप्त करना है। उन्होंने संकेत दिया कि भविष्य के लिए भर्ती प्रक्रिया की निगरानी और कड़ाई से की जाएगी, ताकि ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो।

विपक्ष पर पलटवार
सीएम धामी ने विपक्षी दलों पर भी तीखा हमला किया। उन्होंने कहा कि विपक्ष इस मुद्दे का राजनीतिकरण कर छात्रों को ढाल बनाने का प्रयास कर रहा है। उन्होंने आरोप लगाया कि विपक्ष ने पेपर लीक प्रकरण की आड़ में राज्य में अस्थिरता फैलाने की साजिश की। धामी ने यह भी कटाक्ष किया कि जो दल पहले सीबीआई और ईडी की जांचों पर भरोसा जताने के बजाय सवाल उठाते थे, वही अब राजनीतिक लाभ के लिए इस मामले में सीबीआई जांच की बात कर रहे हैं। मुख्यमंत्री का कहना है कि विपक्ष छात्रों की वास्तविक चिंता को शुद्ध राजनीतिक हथियार में बदल देना चाहता है।
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युवाओं की उम्मीदें और चुनौती
भर्ती परीक्षाओं का बार-बार टलना और पेपर लीक जैसी घटनाएं उत्तराखंड के युवाओं पर गहरा असर डाल रही हैं। बेरोजगारी की मार झेल रहे अभ्यर्थी अब इस सवाल से जूझ रहे हैं कि क्या उन्हें किसी निष्पक्ष और सुरक्षित भर्ती प्रक्रिया का भरोसा मिल पाएगा या नहीं। ऐसे माहौल में सरकार की चुनौती और जिम्मेदारी और बढ़ जाती है। जहां एक ओर सरकार पेपर लीक जैसे भ्रष्टाचार पर कठोर कार्रवाई का भरोसा दिला रही है, वहीं विपक्ष इसे युवाओं का अपमान बता सरकार की नाकामी करार दे रहा है। इस पूरे विवाद में सबसे ज्यादा प्रभावित वे परीक्षार्थी हैं, जिनकी जिंदगी और करियर ऐसी अनिश्चितताओं पर टिका है।
अब सबकी नजर आयोग द्वारा घोषित किए जाने वाले परीक्षा की नई तिथि पर टिकी है। सरकार और आयोग के लिए यह जरूरी होगा कि भविष्य की परीक्षा प्रक्रियाओं को ईमानदारी और पारदर्शिता के साथ संपन्न कराए जाए ताकि युवाओं का भरोसा टूटने न पाए। परीक्षाओं का महत्व केवल नौकरी पाने से जुड़ा नहीं है, बल्कि यह युवाओं के आत्मविश्वास और राज्य की विश्वसनीयता से भी सीधे-सीधे संबंध रखता है। इसलिए उत्तराखंड सरकार और आयोग दोनों के लिए यह अब एक बड़ी जिम्मेदारी का मामला बन गया है कि वे भर्ती प्रणाली को पारदर्शी, निष्पक्ष और विश्वसनीय साबित करें।