काशिश हत्याकांड: काशिश हत्याकांड से जुड़ा सुप्रीम कोर्ट का ताज़ा फैसला एक बार फिर से देशभर में बहस और गुस्से का कारण बन गया है। अदालत ने इस मामले में अपने निर्णय सुनाते हुए कुछ आरोपितों को राहत दी, जबकि पीड़िता के परिवार और स्थानीय जनता इस फैसले से बेहद निराश और आक्रोशित दिखाई दे रही है। फैसले के कुछ ही घंटों बाद उत्तर भारत समेत कई राज्यों में विरोध-प्रदर्शन शुरू हो गए और देखते ही देखते जनसैलाब सड़कों पर उमड़ पड़ा।
जनता में आक्रोश
काशिश हत्याकांड लंबे समय से देशभर के लोगों के लिए भावनात्मक मसला रहा है। एक मासूम बच्ची की निर्मम हत्या ने हर किसी को झकझोर दिया था। इस घटना को लेकर लोगों की अपेक्षा थी कि सुप्रीम कोर्ट पीड़ित परिवार को न्याय दिलाने के लिए कठोरतम फैसला सुनाएगा। लेकिन अदालत के हालिया आदेश ने लोगों की उम्मीदों पर पानी फेर दिया, इसी वजह से गुस्सा सड़कों पर साफ दिखाई दे रहा है।
लोगों का कहना है कि यह फैसला न्यायपालिका पर सवाल खड़े करता है। जगह-जगह विरोध प्रदर्शन करते हुए लोग पोस्टर और बैनर लेकर नारेबाज़ी कर रहे हैं। सोशल मीडिया पर भी #JusticeForKashish तेज़ी से ट्रेंड करने लगा है।
राजनीतिक दलों की प्रतिक्रिया
इस फैसले पर राजनीति भी गरमा गई है। विपक्षी दलों ने सरकार और न्याय व्यवस्था पर सवाल उठाते हुए कहा कि यह फैसला पीड़ित परिवार के साथ नाइंसाफी है। कई दलों ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश की समीक्षा याचिका दाखिल करने की मांग की है। वहीं, सत्ता पक्ष ने सुप्रीम कोर्ट के अधिकार और संविधान की गरिमा को सर्वोपरि बताते हुए संयम बरतने की अपील की है।
हालांकि, सत्ता पक्ष में भी कई नेताओं ने माना कि इस केस ने समाज में गहरी चोट छोड़ी है और जनता की अपेक्षाओं को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता। यही वजह है कि पूरे मामले पर राजनीतिक बहस एक नए मोड़ पर पहुंच गई है।
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पीड़ित परिवार की पीड़ा
काशिश के परिजन फैसले से बेहद व्यथित हैं। परिवार का कहना है कि उन्हें उम्मीद थी कि सुप्रीम कोर्ट कठोर सज़ा देगा जिससे उनके जख्मों पर मरहम लग सके। लेकिन अब उन्हें लग रहा है कि न्याय उनसे छिन गया है। परिजनों ने कहा कि जब तक उन्हें न्याय नहीं मिल जाता, उनकी लड़ाई जारी रहेगी। परिवार के समर्थन में स्थानीय लोग लगातार साथ खड़े हैं और विरोध प्रदर्शनों में सबसे आगे दिखाई दे रहे हैं।
क्या है कशिश हत्याकांड का पूरा मामला
नवंबर 2014 में पिथौरागढ़ की 7 वर्षीय मासूम कशिश अपने परिवार के साथ काठगोदाम में एक रिश्तेदार के यहां शादी में आई थी। एक दिन कशिश लापता हो गई। करीब पांच दिन बाद कशिश का शव गौला नदी के किनारे लगभग 500 मीटर दूर जंगलों में मिला था। जांच में पता चला कि बच्ची के साथ पहले दुष्कर्म किया गया और बाद में उसकी निर्मम हत्या की गई। मामले ने पूरे क्षेत्र में भारी आक्रोश पैदा कर दिया।
पुलिस ने मामले में तीन आरोपियों को नामजद किया था। बाद में एक आरोपी मसीह को दोषमुक्त कर दिया गया, जबकि मुख्य आरोपी अख्तर अली को पोक्सो अधिनियम और आईपीसी की धारा 376 के तहत दोषी करार देते हुए मौत की सजा सुनाई गई। दूसरे आरोपी प्रेमपाल को पांच साल कैद और जुर्माना लगाया गया।
इस मामले में परिवार और स्थानीय लोग न्याय की मांग करते हुए कई बार प्रदर्शन भी कर चुके हैं। कशिश के पिता ने दोषियों को सजा दिलाने के लिए पीड़ा और लड़ाई जारी रखने का संकल्प लिया। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने इस मामले में कुछ आरोपितों को राहत दी, जिससे पूरे देश में विरोध और गुस्सा फैल गया। जनता ने सड़क पर उतरकर न्याय की मांग की। यह मामला कानून, न्याय, और सामाजिक न्याय के महत्व को लेकर चर्चा का विषय बना हुआ है, खासतौर पर बच्चों के खिलाफ अपराधों के लिए कड़े कानूनी प्रावधानों की आवश्यकता पर ध्यान आकर्षित करता है।
जगह-जगह प्रदर्शन
दिल्ली, लखनऊ, जयपुर, देहरादून और चंडीगढ़ समेत कई शहरों में सड़कें प्रदर्शनकारियों से पट गईं। कई जगहों पर जुलूस, मोमबत्ती मार्च और धरना-प्रदर्शन जारी है। छात्रों और सामाजिक संगठनों ने भी विरोध में खुलकर हिस्सा लिया। कई जगहों पर पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच टकराव की नौबत भी आ गई, जिसके चलते सुरक्षा व्यवस्था सख्त करनी पड़ी।
राजधानी दिल्ली में जंतर-मंतर पर भारी भीड़ जमा हुई, जहां विभिन्न राज्यों से आए लोगों ने न्याय की मांग को लेकर एकजुट आवाज़ बुलंद की। बताया जा रहा है कि आने वाले दिनों में विरोध और तेज़ हो सकता है।
सामाजिक संगठनों की भूमिका
महिला संगठनों और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर निराशा जताई है। उनका कहना है कि यह फैसला अपराधियों का हौसला बढ़ाने वाला है। उन्होंने सरकार से अपील की है कि अगर कानूनी रास्ते बंद भी हो जाएं तो पीड़ित परिवार की मदद के लिए संसद में विशेष कानून लाया जाना चाहिए, ताकि भविष्य में ऐसी घटनाओं में न्याय सुनिश्चित हो सके।
न्याय व्यवस्था पर सवाल
काशिश हत्याकांड में आए इस फैसले के बाद आम लोगों के बीच यह चर्चा तेज़ हो गई है कि क्या भारत की न्याय व्यवस्था कमजोर वर्गों और मासूम पीड़ितों को समय पर न्याय दिलाने में सक्षम है? कई विशेषज्ञों का मानना है कि न्याय में देरी और संवेदनशील मामलों में अपेक्षानुरूप सख़्त कदम न उठाना समाज में लोगों के विश्वास को कमजोर कर देता है। यही वजह है कि लोग अब सड़कों पर उतरकर अपनी नाराज़गी ज़ाहिर कर रहे हैं।