नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने वक्फ संशोधन अधिनियम 2025 की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए कानून की धारा 3 और धारा 4 पर रोक लगा दी है. सबसे उल्लेखनीय बदलाव यह है कि वक्फ बनाने के लिए किसी व्यक्ति को कम से कम पाँच वर्षों तक इस्लाम का अनुयायी होने की शर्त को कोर्ट ने स्थगित कर दिया है. अदालत ने अधिनियम की संवैधानिकता पर कोई अंतिम निर्णय नहीं दिया है, लेकिन इन प्रावधानों पर रोक लगाकर विवाद के समाधान तक यथास्थिति बनाए रखने का निर्देश दिया है।
दो प्रमुख शर्तें तय
सुप्रीम कोर्ट ने दो अहम शर्तें भी स्पष्ट की हैं, जो वक्फ बोर्ड की संरचना से जुड़ी हैं. पहली शर्त यह है कि वक्फ बोर्ड के सीईओ का पद मुस्लिम समुदाय से ही होगा. दूसरी शर्त यह है कि वक्फ बोर्ड में तीन से अधिक मुस्लिम सदस्य नहीं होंगे. इन बदलावों से बोर्ड की विविधता को बढ़ावा मिलेगा और धर्मनिरपेक्षता को प्रोत्साहन मिलेगा, साथ ही मुस्लिम समुदाय का प्रतिनिधित्व भी सुनिश्चित होगा.
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याचिकाओं के मुख्य तर्क
फैसले के पीछे कई याचिकाकर्ताओं ने संविधान के अनुच्छेद 25, 26, 29, और 30 का हवाला देते हुए तर्क रखा था कि धार्मिक स्वतंत्रता का हनन हो रहा है. मुस्लिम पक्ष का तर्क था कि पाँच वर्षों तक इस्लाम अनुयायी रहना आवश्यक है, यह धार्मिक अधिकारों का उल्लंघन है और बोर्ड में गैर-मुस्लिमों की नियुक्ति उनके अधिकारों का अतिक्रमण है. इसका विरोध सरकार ने किया, सरकार के अनुसार वक्फ संपत्ति का प्रबंधन और पारदर्शिता सुधारना इस कानून का प्रमुख उद्देश्य है, न कि अधिकारों का हनन।
फैसले का व्यापक असर
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से वक्फ बोर्ड की स्थिति फिलहाल स्थिर रहेगी और विवादित प्रावधान लागू नहीं होंगे. मुस्लिम समुदाय की आशंकाओं को राहत मिली है, वहीं सरकार को कानून के संवैधानिक पक्ष पर पुनर्विचार करना हो सकता है. आगामी सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट कानून की अंतिम वैधता पर निर्णय ले सकता है।