स्पोर्ट्स डेस्क: भारत और पाकिस्तान के बीच क्रिकेट मैच हमेशा से जुनून और रोमांच से भरे होते हैं। करोड़ों दर्शक इन मुकाबलों का इंतज़ार करते हैं। लेकिन सवाल यह है कि जब सीमा-पार से सैनिकों पर गोलियां बरस रही हों, जब देश के वीर जवान अपने खून से धरती को सींच रहे हों, तब मैदान पर बल्ला और गेंद की टकराहट क्या सच में मायने रखती है? हाल ही में भारतीय सेना ने “ऑपरेशन सिंदूर” को अंजाम देकर आतंकियों को करारा जवाब दिया। इस ऑपरेशन ने पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद को स्पष्ट संदेश दिया कि भारत अब चुप बैठने वाला नहीं है। ऐसे समय में अगर भारत और पाकिस्तान के बीच क्रिकेट मुकाबला हो तो क्या यह शहीदों के बलिदान का अपमान नहीं होगा?
क्रिकेट सिर्फ खेल नहीं, बल्कि एक शक्तिशाली संदेश का माध्यम है। मैदान पर भारत और पाकिस्तान का भिड़ना दुनिया को यह दिखाता है कि दोनों देशों के रिश्ते सामान्य हैं। जबकि हकीकत इससे बिलकुल अलग है। सीमा पर तनाव के बीच खेल का मंच देना हमारे दुश्मनों के लिए जीत जैसा साबित हो सकता है। भारत के नागरिक भी यही सवाल पूछ रहे हैं—“जब सीमा पर जवान जान दे रहे हैं, तो स्टेडियम में तालियों की गूंज कैसी?” ऑपरेशन सिंदूर से मिले संदेश को मजबूत करने के लिए ज़रूरी है कि भारत खेल के मंच पर पाकिस्तान से दूरी बनाए। यही शहीदों के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
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खेल और राजनीति को अक्सर अलग रखने की बात होती है, लेकिन पाकिस्तान के मामले में यह दृष्टिकोण पूरी तरह व्यावहारिक नहीं लगता। वहां से लगातार आतंकियों को पनाह और समर्थन दिया जाता है। ऐसे में क्रिकेट खेलना “दोस्ती” का दिखावा मात्र होगा। दरअसल, आज ज़रूरत है कि हर भारतीय यह समझे कि सरहद का सम्मान सर्वोपरि है। जब देश की सुरक्षा दांव पर हो, तो किसी भी खेल का महत्व गौण हो जाता है।
ऑपरेशन सिंदूर ने यह स्पष्ट किया है कि भारत अब “चुप्पी” साधने वाला देश नहीं रहा। भारतीय सेना ने आतंकवादियों पर न सिर्फ करारा प्रहार किया, बल्कि यह भी जताया कि हर हमले का जवाब दिया जाएगा। इस ऑपरेशन से देशवासियों को यह भरोसा मिला कि भारत अपनी रक्षा के लिए सख्त कदम उठाने में सक्षम है। लेकिन अगर इसके तुरंत बाद भारत पाकिस्तान के साथ क्रिकेट खेलता है, तो ऑपरेशन सिंदूर का संदेश कमजोर पड़ जाएगा। दुनिया यही सोचेगी कि भारत की नाराज़गी सिर्फ सीमित समय तक थी। जबकि असलियत यह है कि आतंकवाद समस्या आज भी जस की तस है।