देहरादून: उत्तराखंड की सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) पर एक बार फिर गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं। हाल ही के दिनों में राज्य के कई जिलों से शिकायतें सामने आई हैं कि सरकारी राशन की दुकानों पर वितरित होने वाले नमक में रेत और धूल की मिलावट हो रही है। वीडियो और तस्वीरों के वायरल होने के बाद प्रदेशभर में हड़कंप मच गया है। उपभोक्ताओं का कहना है कि उन्हें जो नमक मिला है, उसमें इतनी रेत और धूल है कि वह खाने योग्य नहीं है। यह मामला राज्य सरकार की बड़ी जवाबदेही और पारदर्शिता पर गहरा सवाल खड़ा करता है।
सरकारी ब्रांडिंग और भरोसे की दरार
सबसे महत्वपूर्ण पहलू यह है कि यह नमक सरकारी ब्रांडिंग के तहत वितरित किया गया। पैकेट्स पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी और कैबिनेट मंत्री रेखा आर्य की तस्वीरें छपी हुई थीं। यह केवल एक सामान्य खाद्य वितरण का मामला नहीं, बल्कि जनविश्वास से जुड़ा हुआ विषय है। जब किसी योजना या वस्तु का प्रचार सीधे तौर पर जनता के भरोसे और सरकार की छवि से जुड़ा हो, तो उसकी गुणवत्ता पर समझौता न केवल उपभोक्ताओं के स्वास्थ्य से खिलवाड़ है, बल्कि राजनीतिक और सामाजिक दृष्टि से भी घातक है।
उपभोक्ताओं की पीड़ा
राशन दुकानों पर शिकायत दर्ज कराने वाले उपभोक्ताओं ने साफ तौर पर कहा कि वितरित नमक में धूल और रेत इतनी अधिक थी कि उसका उपयोग खाना बनाने में असंभव हो गया। यह स्थिति बेहद चिंताजनक है, क्योंकि पीडीएस से वितरित होने वाला नमक गरीब एवं वंचित वर्ग की रसोई का अहम हिस्सा होता है। जिन लोगों के लिए सरकार यह सुविधा सुनिश्चित करती है, यदि उन्हें ही ऐसा खाद्य मिल रहा है, तो यह व्यवस्था की विफलता का स्पष्ट उदाहरण है।
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सरकार की कार्यवाही और चुनौतियाँ
मामला सामने आते ही उत्तराखंड सरकार एक्शन मोड में आ गई है। सभी जिलों में नमक की सैंपलिंग की जा रही है और जांच के आदेश दिए गए हैं। लेकिन यह केवल शुरुआती कदम हैं। मूल सवाल यह है कि ऐसी स्थिति उत्पन्न ही क्यों हुई? गुणवत्ता की जांच और निगरानी व्यवस्था यदि पहले से चुस्त होती तो इस तरह के वीडियो वायरल होने से पहले ही गड़बड़ी पकड़ ली जाती। यह घटना समाधान की बजाय प्रणालीगत खामियों को उजागर करती है।
शक, षड्यंत्र और राजनीति
इस पूरे प्रकरण ने राजनीतिक रंग भी पकड़ लिया है। चूंकि पैकेट्स पर शीर्ष नेताओं की तस्वीरें छपी हुई हैं, इसलिए इस मिलावट को कुछ लोग सुनियोजित षड्यंत्र भी बता रहे हैं। सवाल यह है कि क्या यह केवल एक लापरवाही है, सप्लाई चेन में हुई गलती है, या फिर जानबूझकर सरकार की छवि खराब करने के लिए खाद्य सामग्री में छेड़छाड़ की गई? यह बिंदु और अधिक महत्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि जनता का भरोसा केवल नमक के पैकेट पर नहीं, बल्कि पूरे शासन-प्रशासन की नीयत पर आंका जा रहा है।
पारदर्शिता और जवाबदेही की ज़रूरत
यह मामला सरकार, आपूर्ति विभाग और संबंधित एजेंसियों के लिए चेतावनी है। जनहित से जुड़ी योजनाओं में कोताही का सीधा असर गरीब जनता पर ही पड़ता है। इसलिए ज़रूरी है कि जांच पारदर्शी और निष्पक्ष ढंग से हो तथा जिम्मेदार अधिकारियों और ठेकेदारों पर तुरंत कार्रवाई की जाए। साथ ही गुणवत्ता परीक्षण की मजबूत व्यवस्था बनाई जाए, ताकि भविष्य में ऐसी घटनाएं न हों।