हमर नातिक (कार्तिकेय पुत्र श्रीमती सीमा नेगी एवं हरीश नेगी) जनेऊ संस्कार पावन बेला में तुम सपरिवार सादर आमंत्रित छा। कृपया हमर शुभकाम में ऐबेर बर-ब्योली के आपुण आशीर्वाद दीबेर हम लोगों के अनुग्रहीत करिया।
द्वाराहाट-(नौबारा): शादी को लेकर लोगों की कई तमन्ना होती है। दुल्हन डिजाइनर वेडिंग लहंगा पहनना चाहती है, तो दूल्हा सूट बूट में सजना चाहता है। लेकिन शादी में सबसे जरूरी ‘शादी का कार्ड होता’ है। इसी बीच सोशल मीडिया पर एक कार्ड तेजी से चर्चा का विषय बन रहा है। जिसकी भाषा आपको थोड़ी हैरान कर देगी।
भारत में कई धर्म हैं, समुदाय हैं, जातियां हैं और ये सभी लोग अपनी-अपनी मान्यताओं के अनुसार सारे काम करते हैं. इसी विविधता में भारत की खूबसूरती झलकती है. ये विविधताएं शादियों में भी नजर आती हैं. तभी तो अलग-अलग समुदायों में शादी के कार्ड भी अलग-अलग प्रकार के छपते हैं.
इन दिनों एक शादी का कार्ड चर्चा का विषय बना हुआ है, जिसकी भाषा पढ़कर आपको लगेगा कि ये हिन्दी तो है, पर कुछ अलग बात है. दरअसल, ये कार्ड कुमाऊनी बोली में छपा है।
।। श्री गणेशाय नमः ।।
卐 विघ्न हरिया, मंगल करिया, श्री गणपति महाराज । पैल न्यूत तुमकें छू, पुर करिया सब काज 卐।
परिवार ने इस अनोखे कार्ड को छपवाकर अपनी भाषा, संस्कृति का सम्मान किया है. अब ये कार्ड सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है. इसमें रिसेप्शन को लेकर जो बात लिखी गई है, वो काफी खास ढंग से लिखी गई है।
हम बात कर रहे है विधानसभा द्वाराहाट के तहसील भिकियासैंण के अंतर्गत नौबारा ग्राम सभा के समाजिक कार्यकर्ता प्रेम सिंह नेगी जी, जिन्होने ने अपने सुपुत्र की शादी का कार्ड कुछ इस तरह छपवाया जो आज एक चर्चा का विषय बना हुआ है।
आप खुद कार्ड देख सकते है प्रेम सिंह नेगी जी ने अपनी संस्कृति,अपनी बोली को एक अनूठा रूप दिया।
नेगी जी ने हमसे बात करते हुए बताया कि आज का समय ऐसा आ गया है जब लोग अपने घर-आँगन, खेत-खलहान छोड़कर शहर की ओर भाग रहे है, पहाड़, जो कभी परंपराओं और प्राकृतिक सौंदर्य से भरे रहते थे, अब खेत खलियान मकान सब बदलते जा रहे है। पहाड़ को छोड़ने का मुख्य कारण रोजगार हो गया है, जिसके कारण लोग पलायन कर रहे है। गांव को छोड़ शहर की ओर भाग रहे है।
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भाषा से खत्म हो रहा जुड़ाव
गौरतलब है कि उत्तराखंड की युवा पीढ़ी का अपनी भाषा से जुड़ाव खत्म होता जा रहा है. वे पढ़ाई, नौकरी या बिजनेस के लिए दूसरे राज्यों का रुख करते हैं और वहां रहकर अपनी बोली को भूल जाते हैं या फिर उन्हें इसे बोलने में शर्म महसूस होती है.
इन सबके बीच नेगी जी जैसे लोग भी हैं, जो पहाड़ की सभ्यता संस्कृति के साथ ही पहाड़ की भाषा को भी सहेजने का काम कर रहे हैं. युवा पीढ़ी की इस तरह की पहल कुमाऊंनी को संविधान की 8वीं अनुसूची में शामिल करने की कोशिशों को बल देगी।