द्वाराहाट (अल्मोड़ा): राज्य गठन को दो दशक बीत जाने के बावजूद उत्तराखंड के कई गांव अब भी बुनियादी सुविधाओं से वंचित हैं। ऐसा ही एक उदाहरण है ग्राम पंचायत तल्ली मिरई के अंतर्गत आने वाला कलौटिया गांव, जहां आज भी सड़क नहीं पहुंची है और ग्रामीणों को 7 किलोमीटर दूर तक पैदल चलने को मजबूर होना पड़ता है।
स्थानीय ग्रामीणों का कहना है कि “सबका साथ, सबका विकास” जैसे नारे उनके लिए अब खोखले साबित हो चुके हैं। बीते 10 वर्षों से लगातार अधिकारियों और जनप्रतिनिधियों से गुहार लगाई जा रही है, लेकिन अब तक केवल आश्वासन ही हाथ लगे हैं। गांव में फिलहाल लगभग 25 से 30 परिवार निवास करते हैं। स्कूल, अस्पताल और बाजार सभी करीब 7 किलोमीटर की दूरी पर स्थित हैं।
सड़क न होने के कारण बच्चों को स्कूल जाना, मरीजों को अस्पताल पहुंचाना और बुजुर्गों को दैनिक जरूरतों की वस्तुएं लाना बेहद कठिन हो गया है। गर्भवती महिलाएं और बीमार मरीज आज भी डोली में बैठाकर 7-8 किलोमीटर दूर ले जाए जाते हैं, लेकिन अब तो हालात ऐसे हैं कि डोली उठाने वाले लोग भी गांव में नहीं बचे — और इसका सबसे बड़ा कारण है सड़क का न होना।
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ग्रामीणों का कहना है कि जिस रास्ते से वे सड़क की मांग कर रहे हैं, वहाँ से गांव की दूरी केवल दो से ढाई किलोमीटर है, जबकि जो वैकल्पिक रास्ता वे अभी उपयोग कर रहे हैं वह लगभग सात से आठ किलोमीटर लंबा है।
चुनाव के समय भी गांववालों को मतदान केंद्र तक पहुंचने के लिए 5 से 6 किलोमीटर पैदल चलना पड़ता है, जिससे कई बार वे अपने मताधिकार का प्रयोग तक नहीं कर पाते। ग्रामीण बताते हैं कि बीते सालों में कई बार ज्ञापन, शिकायतें और कागजी कार्रवाइयां की गईं, मुख्यमंत्री तक को आवेदन भेजा गया, परंतु कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई।
सड़क के इंतजार में गांव वीरान हो गया
बेहतर शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार की उम्मीद में कई परिवार गांव छोड़कर शहरों की ओर पलायन कर गए। विडंबना यह है कि जब गांव खाली हो गए, तब भी सड़क नहीं आई। जिस सड़क को गांव के जीवन को आसान बनाना था, वह अब केवल सरकारी आंकड़ों में दर्ज एक अधूरी योजना बनकर रह गई है। ग्रामीणों की मांग साफ है, अब और इंतजार नहीं, उन्हें जल्द से जल्द सड़क चाहिए ताकि उनका गांव फिर से जीवित हो सके।
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