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Thursday, February 20, 2025

भू-कानून क्या है, और उत्तराखंड के लिए यह क्यों जरूरी है?

उत्तराखंड मे भू क़ानून बनाने के लिए लोगों द्वारा अत्यधिक संघर्ष चल रहा है जो अभी कुछ वर्षों से चर्चा का केंद्र बना हुआ है। उत्तराखंड में भू-कानून  एक महत्वपूर्ण विषय है, यह कानून प्रदेश में भूमि की खरीद-फरोख्त, बाहरी निवेश और स्थानीय लोगों के भूमि अधिकारों से जुड़ा हुआ है। ज्यादातर लोग इसे राज्य के विकास के लिए जरूरी मानते हैं, जबकि कुछ नासमझ इसे स्थानीय लोगों के हितों के खिलाफ समझते हैं।

यह विषय इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि पहाड़ी राज्य होने के कारण उत्तराखंड की भौगोलिक और सांस्कृतिक संरचना बाहरी निवेश और अनियंत्रित भूमि खरीद से प्रभावित हो सकती है। 2021 में इस मुद्दे पर सरकार द्वारा गठित विशेष समिति ने सिफारिशें दी थीं, लेकिन अभी तक कोई सख्त कानून लागू नहीं हुआ है क्या यह सिर्फ भू-क़ानून के लिए उन संघर्ष करते उन लाखों लोगों के आंदोलन को शांत करने के लिए किया था।

वर्तमान में उत्तराखंड में भूमि खरीद के नियमों को हिमाचल प्रदेश के भू-कानून की तरह सख्त बनाने की मांग की जा रही है। साथ ही, इसे समान नागरिक संहिता (UCC) के साथ भी जोड़ा जा रहा है, क्योंकि दोनों ही कानूनों का उद्देश्य प्रदेश में सामाजिक-सांस्कृतिक संरचना को बनाए रखना और बाहरी प्रभाव को संतुलित करना है। इस लेख में हम उत्तराखंड भू-कानून की स्थिति, इसके फायदे-नुकसान, और UCC से इसकी समानता और अंतर पर चर्चा करेंगे।

उत्तराखंड में भू-कानून क्या है?

उत्तराखंड में भू-कानून का मुख्य उद्देश्य राज्य की भूमि को अनावश्यक बाहरी प्रभाव से बचाना और स्थानीय निवासियों के हितों की रक्षा करना है। उत्तराखंड की सरकारों ने भूमि संबंधित कानूनों में कुछ बदलाव किए थे, जिससे बाहरी लोगों को भी राज्य में भूमि खरीदने की अनुमति मिल गई।

लेकिन, पिछले कुछ वर्षों में स्थानीय लोगों की मांग बढ़ी कि हिमाचल प्रदेश की तरह उत्तराखंड में भी कड़ा भू-कानून लागू किया जाए, जिससे बाहरी लोगों द्वारा अंधाधुंध भूमि खरीदने और अतिक्रमण को रोका जा सके।

उत्तराखंड में भू-कानून: शुरुआत और पहल

  1. उत्तराखंड राज्य बनने के बाद 2003 में कुछ समय के मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी जी ने भूमि व्यवस्था नियम 1950 के कानून में संशोधन किया और बाहरी लोगों के लिए नियम बनाया कि वह उत्तराखंड के भीतर 500 वर्ग मीटर तक ही जमीन खरीद सकते हैं।
  2. उसके बाद वर्ष 2007 में इस नियम में और शक्ति दिखाई गई। उसे समय के मुख्यमंत्री भुवन चंद्र खंडूरी जी ने इसमें संशोधन कर भूमि खरीद की सीमा को 500 वर्ग मीटर से घटकर 250 वर्ग मीटर कर दिया। जो बहुत ही सराहनी कदम था।
  3. सबसे बड़ा बदलाव इस क़ानून मे 2018 में उस समय के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने किया, उन्होंने इस कानून मे संशोधन किया और धारा 154-2 और 143 ए जोड़ी। उस समय की मौजूदा सरकार ने इस संशोधन से भूमि खरीद की सीमा को हटा दिया जो एक दुर्भाग्यपूर्ण निर्णय था।

इस बदलाव के बाद बाहरी लोग कितनी भी भूमि उत्तराखंड के पर्वतीय और मैदानी इलाकों में औद्योगिक प्रयोजन के लिए  खरीद सकते हैं।

1.किसने इस कानून की पहल की?

  • वर्तमान सरकार ने 2021 में उत्तराखंड में भू-कानून को मजबूत करने की दिशा में पहल की थी।
  • सरकार ने रिटायर्ड आईएएस सुभाष कुमार की अध्यक्षता में एक समिति गठित की, जिसने 2022 में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की।
  • यह मुद्दा विभिन्न संगठनों और पहाड़ी समुदायों द्वारा भी उठाया गया था, जिन्होंने बाहरी लोगों द्वारा भूमि खरीद को रोकने की मांग की थी।

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2. क्या नया भू-कानून लागू होगा?

अभी तक इसे लागू करने की कोई भी घोषणा नहीं हुई है,अगर जल्दी ही सरकार ने इसमें कोई बड़ा फैसला नहीं लिया,तो ये उत्तराखंड और यहाँ के लोगों के लिए बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण होगा।
इसे हिमाचल प्रदेश के मौजूदा भू-कानून की तरह सख्त बनाने की चर्चा बहुत समय से चल रही है परन्तु ज़ब यह लागू हो जाएगा तभी यह उत्तराखंड सरकार का अपने राज्य के लिए एक सराहनीय निर्णय कहा जाएगा।

मौजूदा भू-कानून और प्रस्तावित बदलाव

पर्यटन के बाद उत्तराखंड के लोगों की आय  का एक प्रमुख स्रोत कृषि है परंतु जब हमारा उत्तराखंड बना था तब यहां 769944 हेक्टेयर कृषि भूमि थी परंतु 2022 में यह घटकर 568488 हेक्टेयर कृषि भूमि ही रही है। आखिर कैसे 2 लाख हेक्टेयर कृषि भूमि कम  हो गई । हम मान सकते हैं कि कुछ भूमि पलायन की वजह से कम हुई है

परंतु अत्यधिक, बाहरी निवेशकों द्वारा यहां कृषि भूमि खरीद कर उनमें बड़े-बड़े होटलों और व्यवसाय को खोलने से कम हुई है। अगर हम अपनी कृषि भूमि को ऐसे ही खत्म करते रहे तो वह समय ज्यादा दूर नहीं होगा जब यहां के लोगों को ही कृषि करने के लिए ना भूमि मिलेगी और ना उस पर अपना हक, कैसे पहाड़ का किसान अपना घर चलाएगा यह सोचनीय विषय है।

उत्तराखंड में वर्तमान में उत्तर प्रदेश जमींदारी विनाश एवं भूमि व्यवस्था अधिनियम, 1950 लागू है, लेकिन उत्तराखंड राज्य बनने के बाद 2003 में उसे समय के मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी जी ने इसमें संशोधन करके बाहरी लोगों को भूमि खरीदने की अनुमति दी गई थी।

अब प्रस्तावित बदलावों में शामिल हैं:

  • बाहरी लोगों द्वारा कृषि भूमि खरीदने पर सख्त नियम
  • भूमि की अधिकतम खरीद सीमा तय करना
  • हिमाचल की तरह भूमि खरीद के लिए सरकारी अनुमति जरूरी करना
  • वन क्षेत्र और पर्यावरणीय रूप से संवेदनशील भूमि पर सख्त नियंत्रण

जब तक यह नियम उत्तराखंड में लागू नहीं होते,तब तक उत्तराखंड के लोगों की जल जमीन और जंगल के लिए यह लड़ाई जारी रहेगी। हम अपनी जमीन भू माफियाओं के हाथों में नहीं देंगे। जिस राज्य को बनाने के लिए अनेक आंदोलनकारियों ने अपने प्राणों की आहुति दे दी। उन्होंने इस उत्तराखंड राज्य के लिए जो स्वर्णिम स्वप्न देखे होंगे वो स्वप्न पूरे करना तो दूर यहाँ की सरकारें उनके सपनों को चूर-चूर कर रहीं हैं।

उन आंदोलनकारियों ने क्या सपने देखे थे उत्तराखंड बनने के बाद कैसा होगा,क्या यही है उनके सपनों का उत्तराखंड? अगर उत्तराखंड यहाँ के लोगों और उन आंदोलनकारियों के स्वप्न के अनुरूप नहीं बना तो ये आंदोलन हमेशा जारी रहेंगे।

उत्तराखंड भू-कानून बनाम समान नागरिक संहिता (UCC)

क्या UCC और भू-कानून एक जैसे हैं?

UCC का मुख्य उद्देश्य सभी नागरिकों के लिए एक समान नागरिक संहिता लागू करना है, जबकि भू-कानून विशेष रूप से भूमि खरीद और स्वामित्व से जुड़ा मामला है। हालांकि, दोनों में कुछ समानताएँ भी हैं। आइए जानते हैं कि यह कैसे एक-दूसरे से मिलते-जुलते हैं और इनमे क्या अंतर है।

समानताएँ (Similarities with UCC)

  • स्थानीय संस्कृति और सामाजिक संरचना की रक्षा – जैसे UCC का उद्देश्य एक समान कानून बनाकर समाज में समानता लाना है, वैसे ही भू-कानून का उद्देश्य बाहरी प्रभाव को सीमित कर स्थानीय संस्कृति की रक्षा करना है।
  • समान अधिकारों पर जोर – UCC धर्म के आधार पर अलग-अलग कानूनों को समाप्त करने की बात करता है, वहीं भू-कानून बाहरी लोगों के असीमित भूमि कब्जे को रोकने के लिए समान नियम लागू करने की कोशिश कर रहा है।
  • राज्य के हितों की रक्षा – UCC और भू-कानून दोनों का उद्देश्य राज्य की सांस्कृतिक, सामाजिक और आर्थिक स्थिरता बनाए रखना है।

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अंतर (Differences with UCC)

  • UCC एक राष्ट्रीय स्तर का कानून है, जबकि भू-कानून राज्य सरकार द्वारा लागू किया जाता है।
  • UCC का प्रभाव विवाह, संपत्ति, उत्तराधिकार आदि पर पड़ता है, जबकि भू-कानून का मुख्य रूप से भूमि खरीद और स्वामित्व से संबंध है।
  •  UCC सभी नागरिकों पर समान रूप से लागू होगा, जबकि भू-कानून केवल उत्तराखंड की भूमि नीति से संबंधित है।

उत्तराखंड में मौजूदा भू-कानून और इसके बदलाव

वर्तमान में उत्तराखंड में उत्तर प्रदेश जमींदारी विनाश एवं भूमि व्यवस्था अधिनियम, 1950 लागू है, जो कि राज्य के गठन से पहले ही अस्तित्व में था। लेकिन इसमें संशोधन किया गया, जिससे बाहरी लोगों के लिए भूमि खरीद आसान हो गई।

2021 में उत्तराखंड सरकार ने भू-कानून को लेकर एक विशेष समिति बनाई, ताकि यह तय किया जा सके कि राज्य में हिमाचल प्रदेश की तरह सख्त भू-कानून लागू किया जाए या नहीं। हालांकि, अभी तक कोई नया भू-कानून पूरी तरह से लागू नहीं हुआ है, लेकिन इस पर लगातार मंथन जारी है।

उत्तराखंड में भू-कानून क्यों जरूरी है?

  • स्थानीय लोगों के भूमि अधिकारों की सुरक्षा:-कई स्थानीय लोगों का मानना है कि बाहरी निवेशकों द्वारा जमीन खरीदने से पहाड़ी क्षेत्रों में मूल निवासियों के लिए भूमि की उपलब्धता कम होती जा रही है।
  • अंधाधुंध शहरीकरण पर नियंत्रण:-अगर बिना किसी नियंत्रण के बाहरी लोग भूमि खरीदते रहेंगे, तो इससे उत्तराखंड में बेतरतीब शहरीकरण और पर्यावरणीय असंतुलन हो सकता है।
  • पर्यावरण संरक्षण:- उत्तराखंड एक संवेदनशील हिमालयी राज्य है। अधिक निर्माण और बेतरतीब ढंग से भूमि उपयोग करने से पारिस्थितिकी तंत्र को खतरा हो सकता है।
  • हिमाचल की तर्ज पर सख्त कानून की मांग:-हिमाचल प्रदेश में बाहरी लोगों के लिए भूमि खरीदने पर कड़े प्रतिबंध हैं, जिससे वहाँ की पारिस्थितिकी और सांस्कृतिक पहचान सुरक्षित बनी हुई है। उत्तराखंड में भी इसी तरह के कानून की मांग की जा रही है।

उत्तराखंड में भू-कानून के फायदे

  • स्थानीय लोगों के लिए भूमि संरक्षण: बाहरी लोगों द्वारा बड़े पैमाने पर भूमि खरीद को रोककर स्थानीय निवासियों के अधिकारों की रक्षा की जा सकती है।
  • पर्यावरण की रक्षा: अनियंत्रित भूमि उपयोग को रोककर उत्तराखंड के जंगल, पहाड़ और जल स्रोतों को बचाया जा सकता है।
  • रियल एस्टेट माफिया पर नियंत्रण: भू-माफियाओं द्वारा अवैध तरीके से भूमि खरीदने और उसे महंगे दामों पर बेचने पर अंकुश लगेगा।
  • स्थानीय संस्कृति और जनसंख्या संतुलन: बाहरी लोगों के अत्यधिक प्रवास से स्थानीय संस्कृति और परंपराओं पर असर पड़ता है, जिसे नियंत्रित किया जा सकता है।
  • हिमालयी राज्यों की भौगोलिक संवेदनशीलता: उत्तराखंड भूकंप, भूस्खलन और अन्य प्राकृतिक आपदाओं के प्रति संवेदनशील है, ऐसे में भूमि का अनियंत्रित उपयोग जोखिम भरा हो सकता है।

उत्तराखंड में भू-कानून के कुछ नुकसान

उत्तराखंड में भू-कानून लागू होने से नुकसान तो बिल्कुल भी नहीं है अगर भूमि खरीदने पर सख्त प्रतिबंध लगते हैं, तो इससे नए उद्योगों में थोड़ा कमी आ सकती है। परंतु उत्तराखंड के स्थानीय लोग ही इस अवसर में अपने नए-नए उद्योग यहां खोल सकते हैं जो यहां से पलायन भी रोकेगा और राज्य के अन्य लोगों को रोजगार भी मिलेगा।

भू-कानून को लेकर विवाद और सरकार का रुख

उत्तराखंड में भू-कानून को लेकर जनमत दो हिस्सों में बंटा हुआ है। कुछ लोग हिमाचल की तरह सख्त कानून की मांग कर रहे हैं, जबकि कुछ मानते हैं कि बाहरी निवेश जरूरी है, ताकि राज्य का आर्थिक विकास हो सके।

सरकार भी इस विषय पर संतुलित रुख अपनाए हुए है और लगातार विशेषज्ञों, आम जनता और विधायकों से चर्चा कर रही है। संभावना है कि भविष्य में कोई संशोधित भू-कानून लाया जा सकता है, जिसमें स्थानीय लोगों के हितों की रक्षा और विकास के संतुलन का ध्यान रखा जाएगा।

सुझाव

  • उत्तराखंड में भू-कानून एक जटिल और महत्वपूर्ण विषय है, जो राज्य के सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरणीय पहलुओं को प्रभावित करता है।
  • अगर सख्त भू-कानून लागू किया जाता है, तो इससे स्थानीय लोगों को सुरक्षा मिलेगी, लेकिन निवेश और आर्थिक विकास पर इसका थोड़ा असर पड़ सकता है।
  • अगर भू-कानून अधिक लचीला रहता है, तो बाहरी निवेशकों को अवसर मिलेगा, लेकिन इससे पर्यावरणीय और जनसांख्यिकी संतुलन बिगड़ सकता है।

इसलिए, सरकार को चाहिए कि वह एक संतुलित भू-कानून बनाए, जिसमें स्थानीय लोगों के हितों की रक्षा हो, लेकिन राज्य के आर्थिक विकास में भी बाधा न आए।

अंत मे जनकवि गिर्दा  की ये कविता अवश्य पढ़े। उन्होंने कैसे उत्तराखंड के स्वप्न देखे थे।अगर वैसा उत्तराखंड नहीं बना तो पहाड़ के समान पहाड़ी लोग हमेशा लड़ते रहेंगे।

बैणी फाँसी नी खाली ईजा, और रौ नी पड़ल भाई।
मेरी बाली उमर नि माजेलि , दीलि ऊना कढ़ाई।।

मेरी बाली उमर नि माजेलि, तलि ऊना कड़ाई।
रामरैफले लेफ्ट रेट कसी हुछो बतूलो।

हम लड़ते रयां बैणी , हम लड़ते रूलो।
हम लड़ते रया भुला, हम लड़ते रूलो।।

अर्जुनते कृष्ण कुछो, रण भूमि छो सारी दूनी तो।
रणबे का बचुलो ,हम लड़ते रया बैणी हम लड़ते रूलो।
हम लड़ते रया भुला, हम लड़ते रूलो।।

धन माएड़ि छाती, उनेरी धन तेरा ऊ लाल।
बलिदानकी जोत जगे, खोल गे उज्याल।।
खटीमा, मसूरी मुजेफरें कें, हम के भूलि जूलो।
हम लड़ते रयां बैणी , हम लड़ते रूलो।
हम लड़ते रुला, चेली हम लड़ते रूलो।।

कस होलो उत्तराखंड, कस हमारा नेता।
कसी होली विकास नीति, कसी होली ब्यवस्था।।
जड़ी कंजड़ी उखेलि भलीके , पूरी बहस करूलो।
हम लड़ते रयां बैणी , हम लड़ते रूलो।

सांच नि मराल झुरी झुरी पा, झूठी नि डोरी पाला।
लिस , लकड़ा, बजरी चोर जा नि फौरी पाला।।
जाधिन ताले योस नि है जो, हम लड़ते रूलो।
हम लड़ते रयां बैणी , हम लड़ते रूलो।

मैसन हूँ, घर कुड़ी हो भैसन हु खाल।
गोर बछन हु चरुहू हो, चाड़ पौथन हूँ डाल।।
धुर जंगल फूल फूलों, यस मुलुक बनुलो ।
हम लड़ते रयां बैणी , हम लड़ते रूलो।

हम लड़ते रूलो भूलि, हम लड़ते रूलो।।
हम लड़ते रयां दीदी, हम लड़ते रूलो।।

आपका क्या विचार है? उत्तराखंड में सख्त भू-कानून होना चाहिए या नहीं? अपनी राय कमेंट में साझा करें! 

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Hemant Upadhyay
Hemant Upadhyayhttps://chaiprcharcha.in/
Hemant Upadhyay एक शिक्षक हैं जिनके पास 7 से अधिक वर्षों का अनुभव है। साहित्य के प्रति उनका गहरा लगाव हमेशा से ही रहा है, वे कवियों की जीवनी और उनके लेखन का अध्ययन करने में रुचि रखते है।, "चाय पर चर्चा" नामक पोर्टल के माध्यम से वे समाज और साहित्य से जुड़े विभिन्न मुद्दों पर विचार-विमर्श करते हैं और इन मुद्दों के बारे में लिखते हैं ।

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