जॉर्जटाउन: गुयाना की ऐतिहासिक यात्रा पर पहुंचे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को डोमिनिका राष्ट्रमंडल ने अपना सर्वोच्च सम्मान ‘डोमिनिका अवार्ड ऑफ ऑनर’ प्रदान किया है। 56 वर्षों के बाद गुयाना में किसी भारतीय प्रधानमंत्री का यह पहला दौरा है। डोमिनिका के सर्वोच्च राष्ट्रीय सम्मान से सम्मानित होने के बाद प्रधानमंत्री मोदी ने कहा, “यह सम्मान केवल मेरा नहीं बल्कि भारत के 140 करोड़ लोगों का, उनके संस्कार और उनकी परंपरा का है। हम दो लोकतंत्र हैं और हम दोनों पूरे विश्व के लिए महिला सशक्तिकरण के रोल मॉडल हैं।’
भारत और गुयाना में 10 समझौतों पर हस्ताक्षर
बुधवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुयाना के राष्ट्रपति मोहम्मद इरफान अली के साथ वार्ता की। दोनों देशों के नेताओं की बैठक के बाद भारत और गुयाना ने हाइड्रोकार्बन, डिजिटल भुगतान व्यवस्था, फार्मास्यूटिकल और रक्षा जैसे अहम क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाने के लिए 10 समझौते पर हस्ताक्षर किए। पीएम मोदी ने एक बयान में कहा कि गुयाना, भारत की ऊर्जा सुरक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा और इस क्षेत्र में दोनों देशों के बीच दीर्घकालिक साझेदारी के लिए एक रूपरेखा तैयार की जाएगी।
आपको बता दें कि दक्षिण अमेरिका का छोटा-सा देश है गुयाना. जहां आबादी तो महज 8 लाख है, लेकिन इनमें से करीब 40 फीसदी भारतीय मूल के हैं. इस देश का भारत से रिश्ता केवल जनसंख्या तक सीमित नहीं है, बल्कि इतिहास के गहरे पन्नों में दर्ज है. गुयाना के राष्ट्रपति इरफान अली खुद भारतीय मूल के हैं, जिनके पूर्वज 19वीं सदी में गिरमिटिया मजदूर बनकर वहां पहुंचे थे।
क्या है गिरमिटिया मजदूरों का इतिहास
इस समझने के लिए जाना होगा 19वीं शताब्दी में. जब गुयाना एक आजाद मुल्क नहीं था बल्कि ब्रिटिश राज था. बात 1814 की है. ब्रिटेन ने नेपोलियन के साथ युद्ध के दौरान गुयाना पर कब्जा किया और बाद में इसे उपनिवेश के तौर पर ब्रिटिश गुयाना के तौर पर बदल दिया. फिर 20 साल बाद यानी 1834 में दुनिया भर के ब्रिटिश उपनिवेशों में गुलामी प्रथा या बंधुआ मजदूरी का अंत हुआ. गुयाना में भी बंधुआ मजदूरी के खत्म होने के बाद मजदूरों की भारी मांग होने लगी थी. ब्रिटिश शासन में अंग्रेज गन्ने की खेती के लिए मजदूरों को एक से दूसरे देश ले जाते थे. इस दौरान जमकर मजदूरों का कारोबार होता था. जिन्हें गिरमिटिया मजदूर कहा गया. भारतीयों नागरिकों का दल गुयाना पहुंचा. ऐसा कई और देशों में भी हुआ था, जैसे मॉरिशस.
आंकड़ों के मुताबिक 1838 से 1917 के बीच करीब 500 जहाजों के जरिए 2 लाख से ज्यादा की संख्या में भारतीयों को गिरमिटिया मजदूरों के रूप में ब्रिटिश गुयाना लाया गया था. एक दशक के अंदर ही भारतीय अप्रवासी मजूदरों की मेहनत के चलते ब्रिटिश गुयाना की अर्थव्यवस्था में चीनी उद्योग का वर्चस्व दिखने लगा. इसे क्रांतिकारी बदलाव माना गया और इससे उपनिवेश में काफी हद तक आर्थिक उन्नति देखने को मिली.
1966 में गुयाना ब्रिटिश उपनिवेश से आजाद हुआ. मगर जो मजदूर वहां मजदूरी करने गए थे, उनमें से कुछ तो वापस लौट आए लेकिन कई समय के साथ वहीं के होकर रह गए. इसलिए भारतीय मूल के लोगों की उपस्थिति यहां हर तरफ दिखती है. यही वजह है कि दिवाली और होली जैसे प्रसिद्ध भारतीय उत्सव भी गुयाना कैलेंडर में मौजूद हैं।
कोविड के समय भारत ने दिया साथ
वैक्सीन मैत्री पहल के तहत, भारत ने मार्च 2021 में गुयाना को कोविशील्ड की 80,000 खुराकें डोनेट की थी. इससे देश को कोविड महामारी से लड़ने में बड़ी मदद मिली. भारत ने देश के स्वास्थ्य सेवा बुनियादी ढांचे को बढ़ावा देने के लिए भारत-संयुक्त राष्ट्र विकास साझेदारी निधि के माध्यम से 2020 में गुयाना को 1 मिलियन डॉलर का योगदान दिया, जिससे 34 से अधिक वेंटिलेटर, हजारों सुरक्षात्मक उपकरण आइटम और आपातकालीन देखभाल दवाओं की खरीद को सक्षम किया गया ताकि कोविड-19 से निपटने में सहायता मिल सके।
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