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सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर उतराखंड बार काउंसिल (Uttarakhand Bar Council) ने नए अधिवक्ताओं के पंजीकरण पर लगाई फिलहाल रोक

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राज्य। उत्तराखंड बार काउंसिल (Uttarakhand Bar Council) ने नए अधिवक्ताओं के पंजीकरण की प्रक्रिया फिलहाल रोक दी है। सुप्रीम कोर्ट से नये अधिवक्ताओं के लिए तय शुल्क से ज्यादा फीस न लेने के आदेश पर यह फैसला लिया गया है। पंजीकरण प्रक्रिया अब बार काउंसिल ऑफ इंडिया के दिशा निर्देशों के बाद शुरू होगी।

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उत्तराखंड बार काउंसिल (Uttarakhand Bar Council) के अध्यक्ष डॉ महेंद्र सिंह पॉल ने इस संबंध में आदेश जारी किया है। देश में बाकी राज्यों में भी बार काउंसिल द्वारा एडवोकेट एक्ट 1961 की धारा 24 पर अधिवक्तों के पंजीकरण के नाम पर अधिक फीस वसूल की जा रही थी । इसमें सबसे पहले नंबर पर उड़ीसा राज्य बार काउंसिल थी, दूसरे में गुजरात, तीसरे में उतराखंड और चौथे स्थान पर केरल की बार काउंसिल थी।

उत्तराखंड में बार कौंसिल की स्थापना 2002 में हुई थी। उत्तराखंड राज्य की स्थापना 9 नवंबर 2000 को हुई थी, और इसके बाद राज्य में वकीलों की संस्था और उनके पेशेवर मामलों को सँभालने के लिए बार कौंसिल की स्थापना की गई।

उत्तराखंड बार कौंसिल (Uttarakhand Bar Council) का मुख्य कार्य  

1. वकीलों का पंजीकरण और लाइसेंस जारी करना: बार कौंसिल नए वकीलों को पंजीकृत करती है और उन्हें पेशेवर काम करने के लिए लाइसेंस प्रदान करती है।

2. वकीलों की आचार संहिता की निगरानी: यह सुनिश्चित करती है कि वकील पेशेवर आचार संहिता का पालन करें और उनके पेशेवर आचरण में नैतिकता बनी रहे।

3. वकीलों की शिक्षा और प्रशिक्षण: बार कौंसिल वकीलों के लिए शिक्षा, प्रशिक्षण और कार्यशालाएँ आयोजित करती है ताकि उनके कौशल और ज्ञान को अद्यतित रखा जा सके।

4. वकीलों के विवादों का समाधान: वकीलों के पेशेवर विवादों और शिकायतों का निवारण करती है और आवश्यक कदम उठाती है।

5. वकीलों के अधिकार और कल्याण की रक्षा: वकीलों के अधिकारों की रक्षा और उनके कल्याण के लिए विभिन्न योजनाएँ और नीतियाँ बनाती है।

6. वकीलों के पेशेवर विकास को प्रोत्साहन: वकीलों के पेशेवर विकास और उनकी कार्यक्षमता को बढ़ावा देने के लिए विभिन्न पहल करती है।

ये कार्य सुनिश्चित करते हैं कि वकीलों का पेशा सुचारू और व्यवस्थित तरीके से चलता रहे और न्यायपालिका के साथ न्यायपूर्ण ढंग से व्यवहार किया जा सके।

भारतीय एडवोकेट्स एक्ट, 1961 की धारा 24 (Section 24) वकीलों के पंजीकरण और पात्रता से संबंधित प्रावधानों को निर्दिष्ट करती है। इस धारा के अंतर्गत, निम्नलिखित प्रमुख बिंदुओं को शामिल किया गया है:

1. पंजीकरण की पात्रता:
– एक व्यक्ति वकील के रूप में पंजीकरण के लिए तभी योग्य माना जाएगा यदि उसने कानून की डिग्री प्राप्त की हो जो कि भारतीय कानून संस्थानों या विश्वविद्यालयों से मान्यता प्राप्त हो।
– इसके साथ ही, उसे बार कौंसिल द्वारा निर्धारित परीक्षा उत्तीर्ण करनी होगी, अगर ऐसी परीक्षा निर्धारित की गई हो।

2. प्रमाणपत्र और दस्तावेज़:
– पंजीकरण के लिए, आवेदक को बार कौंसिल को प्रमाण पत्र और अन्य आवश्यक दस्तावेज़ प्रस्तुत करने होंगे, जैसे कि शैक्षणिक प्रमाण पत्र और पहचान पत्र।

3. वेतन और खर्च:
– पंजीकरण शुल्क और अन्य लागतों का भुगतान करने की आवश्यकता होती है, जो बार कौंसिल द्वारा निर्धारित की जाती है।

4. पंजीकरण की विधि:
– आवेदक को बार कौंसिल के सामने आवेदन प्रस्तुत करना होता है और बार कौंसिल द्वारा निर्धारित मानकों को पूरा करना होता है।

5. पंजीकरण की समाप्ति और निलंबन:
– यदि वकील पेशेवर आचार संहिता का उल्लंघन करता है या अन्य कारणों से अयोग्य हो जाता है, तो बार कौंसिल उसका पंजीकरण समाप्त कर सकती है या उसे निलंबित कर सकती है।

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वकीलों के पंजीकरण में शुल्क निर्धारण कई कारकों पर निर्भर करता है और इसे बार कौंसिल द्वारा निर्धारित किया जाता है। सामान्यत: शुल्क निर्धारण के निम्नलिखित पहलू होते हैं:

1. स्थानीय नियम और विनियम: प्रत्येक राज्य या बार कौंसिल के अपने नियम और विनियम होते हैं जो पंजीकरण शुल्क को निर्धारित करते हैं। ये शुल्क स्थानीय आर्थिक स्थिति और प्रशासनिक लागत को ध्यान में रखते हुए तय किए जाते हैं।

2. पंजीकरण की श्रेणियाँ:  शुल्क विभिन्न श्रेणियों के अनुसार भिन्न हो सकता है, जैसे नए वकीलों, अधिवक्ताओं की नवीनीकरण, या विशेष वकील जैसे वरिष्ठ अधिवक्ताओं के लिए अलग-अलग शुल्क हो सकते हैं।

3. प्रशासनिक लागत: बार कौंसिल को प्रशासनिक और संचालन लागत को कवर करने के लिए शुल्क निर्धारण करना पड़ता है। इसमें पंजीकरण प्रक्रिया, दस्तावेज़ की जाँच, और अन्य प्रशासनिक कार्य शामिल होते हैं।

4. पेशेवर शिक्षा और प्रशिक्षण:  कुछ बार कौंसिल्स वकीलों के प्रशिक्षण और शिक्षा के लिए भी शुल्क ले सकती हैं। यह शुल्क वकीलों के पेशेवर विकास और कौशल वृद्धि के लिए उपयोग किया जाता है।

5. पंजीकरण की अवधि: शुल्क की मात्रा पंजीकरण की अवधि के आधार पर भी भिन्न हो सकती है। उदाहरण के लिए, वार्षिक शुल्क, द्विवार्षिक शुल्क, या एकमुश्त पंजीकरण शुल्क हो सकता है।

6.  संशोधन और अद्यतन: बार कौंसिल के द्वारा समय-समय पर पंजीकरण शुल्क में संशोधन और अद्यतन किए जा सकते हैं, जो मुद्रास्फीति या प्रशासनिक खर्चों के अनुसार होते हैं।

इन सब कारकों को ध्यान में रखते हुए, बार कौंसिल पंजीकरण शुल्क निर्धारित करती है, जो वकीलों को पंजीकरण और संबंधित सेवाओं के लिए भुगतान करना होता है।

उत्तराखंड बार काउंसिल (Uttarakhand Bar Council) द्वारा पंजीकरण शुल्क 6000 सहित अन्य शुल्क के साथ पूरे 25000 वसूली जा रही था। वहीं दूसरी ओर उड़ीसा में यह फीस 42000 थी। एक्ट के अनुसार सामान्य श्रेणी के लॉ स्टूडेंट से 650 रुपये व आरक्षित वर्ग से 125 रुपये ही लिया जाना है।

 

 

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