नई दिल्ली: केंद्र सरकार ने 12 दिसंबर 2025 को एक ऐतिहासिक निर्णय लेते हुए देश की सबसे बड़ी ग्रामीण रोजगार योजना ‘महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (MGNREGA)’ का नाम बदलकर ‘पूज्य बापू ग्रामीण रोजगार योजना’ करने की मंजूरी दे दी है। यह परिवर्तन न केवल नाम का बदलाव है, बल्कि ग्रामीण भारत की आत्मनिर्भरता और सम्मानजनक रोजगार के संकल्प की पुनर्पुष्टि भी है। साल 2005 में जब ‘राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (NREGA)’ की शुरुआत हुई थी, तब उसका उद्देश्य ग्रामीण गरीबों को रोजगार की गारंटी देकर आर्थिक स्थिरता प्रदान करना था। 2009 में इसे महात्मा गांधी के नाम से जोड़ते हुए ‘MGNREGA’ कहा गया। अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने इसे ‘पूज्य बापू ग्रामीण रोजगार योजना’ का नया नाम देते हुए इसकी पहचान को एक नई दिशा दी है — जो राष्ट्रपिता के विचारों और ग्रामीण उत्थान की भावना को और प्रतिध्वनित करती है।
रोजगार की बढ़ी गारंटी और मजदूरी
सरकार ने इस योजना में दो बड़े बदलाव किए हैं। पहला, गारंटीकृत रोजगार की अवधि 100 दिनों से बढ़ाकर 125 दिन कर दी गई है। इससे उन लाखों परिवारों को सीधा लाभ मिलेगा, जो कृषि के ऑफ-सीजन में आजीविका के अभाव से जूझते हैं।दूसरा, न्यूनतम मजदूरी में भी बढ़ोतरी की गई है — अब यह 240 रुपये प्रतिदिन होगी, जो पहले की तुलना में लगभग 20% अधिक है। यह कदम ग्रामीण अर्थव्यवस्था में क्रय शक्ति बढ़ाने और स्थानीय स्तर पर उत्पादन के दायरे को विस्तार देने में मदद करेगा।
ग्राम विकास में नई ऊर्जा
पूज्य बापू ग्रामीण रोजगार योजना के तहत पहले की तरह मजदूरों को पंचायत स्तर पर ही काम दिया जाएगा। इसमें मिट्टी कार्य, तालाब निर्माण, सड़क मरम्मत, जल संरक्षण और वृक्षारोपण जैसे कार्य प्रमुख रूप से शामिल रहेंगे। विशेषज्ञ मानते हैं कि यह योजना ग्रामीण बुनियादी ढाँचे के विकास के साथ-साथ पर्यावरणीय संरक्षण को भी गति देगी।
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काम के अधिकार की मजबूत आधारशिला
यह योजना भारत में “काम करने के अधिकार” (Right to Work) को संवैधानिक रूप से लागू करने वाला सबसे बड़ा उदाहरण मानी जाती है। इसके तहत प्रत्येक ग्रामीण परिवार के इच्छुक वयस्क सदस्यों को काम उपलब्ध कराने का प्रयास किया जाता है। यदि सरकार 15 दिनों के भीतर रोजगार उपलब्ध नहीं करा पाती, तो मजदूरी के बराबर भत्ता देना इसका कानूनी प्रावधान है।एक सरकारी अधिकारी के अनुसार, “यह केवल रोजगार योजना नहीं, बल्कि ग्रामीण भारत के आत्म-सम्मान और सशक्तिकरण की पहचान है। ‘पूज्य बापू’ नाम रखने के पीछे यही भावना है कि काम के माध्यम से हर व्यक्ति गरिमा और आत्मनिर्भरता का अनुभव करे।”
