सांस्कृतिक नगरी अल्मोड़ा। नगर में इन दिनों माँ नन्दा देवी मेले की धूम मची हुई है, पूरी नगरी मेले के रंग में रंगी हुई नजर आ रही है। मेले के आगाज के साथ पहली संध्या नगर के नन्हें कलाकारों के नाम रही, बच्चों ने नृत्य प्रतियोगिता में शानदार प्रस्तुति कर लोगों को मंत्रमुग्ध कर दिया। देर रात तक लोग मन्दिर परिसर में डटे रहे। बता दें 6 सितंबर से 13 सिंतबर तक चलने वाले मेले में 12 सितंबर तक प्रतिदिन शाम को सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे।
वहीं मन्दिर परिसर में लगी दुकानों में लोगों की खासी भीड़ जुट रही है। शनिवार 7 सितंबर को नगर में विभिन्न विद्यालयों द्वारा सांस्कृतिक झाँकिया निकाली गई । जिनमें अल्मोड़ा के प्राचीन इतिहास के रूप में चंद राजाओं की झलकी के साथ, उत्तराखंड के प्रमुख रम्माण उत्सव की झांकी और पारंपरिक कुमाउनी परिधानों मे स्कूल के नन्हे बच्चों को देखा गया।
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नंदा देवी मेला, अल्मोड़ा
नंदा देवी मंदिर का निर्माण चंद राजाओं द्वारा किया गया था।देवी की मूर्ति शिव मंदिर के डेवढ़ी में स्थित है और स्थानीय लोगों द्वारा बहुत सम्मानित है। हर सितंबर में, अल्मोड़ा नंदादेवी मेला के लिए इस मंदिर में हजारों भक्तों की भीड़ रहती हैं,मेला 400 से अधिक वर्षों से इस मंदिर का अभिन्न हिस्सा है।
अल्मोड़ा में नंदादेवी के मेले का इतिहास यद्यपि अधिक ज्ञात नहीं है तथापि माना जाता है कि राजा बाज बहादुर चंद (सन् 1638 -78) ही नंदा की प्रतिमा को गढ़वाल से उठाकर अल्मोड़ा लाये थे। इस विग्रह को वर्तमान में कचहरी स्थित मल्ला महल में स्थापित किया गया। बाद में कुमाऊँ के तत्कालीन कमिश्नर ट्रेल ने नंदा की प्रतिमा को वर्तमान से दीप चंदेश्वर मंदिर में स्थापित करवाया था।
अल्मोड़ा शहर सोलहवीं सदी के छटे दशक के आसपास चंद राजाओं की राजधानी के रुप में विकसित किया गया था । यह मेला चंद वंश की राज परम्पराओं से सम्बन्ध रखता है तथा लोक जगत के विविध पक्षों से जुड़ने में भी हिस्सेदारी करता है ।
माँ नंदा देवी मेला 2024 :
- 08 सितंबर को चंद वंशज युवराज नरेंद्र चंद राज सिंह द्वारा गणेश पूजा होगी ।
- 09 सितंबर की साँय 3 बजे कदली (केला) वृक्ष आमंत्रण के लिए दल मंदिर परिसर से दूला गाँव, रैलाकोट जाएगा। अगली सुबह रैलाकोट से कदली वृक्ष को माँ नंदा देवी प्रांगण तक लाया जाएगा। इस तरह 12 सितंबर तक कई सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाएगा और 13 सितंबर को माँ की शोभा यात्रा परंपरागत मार्गों से होते हुए दुगालखोला नौले तक जाएगी तथा विधिवत रूप से माँ की प्रतिमा का विसर्जन होगा।