“साक्षरता का अर्थ केवल पढ़ना-लिखना नहीं है, यह एक व्यक्ति की चेतना, सम्मान और आत्मनिर्भरता की बुनियाद है।”
हर वर्ष 8 सितंबर को पूरे विश्व में अंतर्राष्ट्रीय साक्षरता दिवस (International Literacy Day) मनाया जाता है। यह दिन शिक्षा के महत्व को रेखांकित करने, साक्षरता की स्थिति का मूल्यांकन करने और निरक्षरता को खत्म करने के वैश्विक प्रयासों को गति देने के लिए समर्पित है। यह एक ऐसा अवसर है जो हमें यह याद दिलाता है कि साक्षरता केवल एक शैक्षणिक योग्यता नहीं, बल्कि एक मूलभूत मानव अधिकार, सशक्तिकरण का साधन और सतत विकास की कुंजी है।
International Literacy Day की शुरुआत और इतिहास
अंतर्राष्ट्रीय साक्षरता दिवस की नींव 1965 में तेहरान, ईरान में आयोजित विश्व शिक्षा मंत्रियों के सम्मेलन में रखी गई थी। इस सम्मेलन में दुनिया भर के शिक्षा मंत्रियों ने निरक्षरता की वैश्विक चुनौती पर गहन चर्चा की। उन्होंने यह महसूस किया कि निरक्षरता न केवल व्यक्तिगत विकास में बाधा है, बल्कि सामाजिक और आर्थिक प्रगति के लिए भी एक गंभीर रुकावट है। इस सम्मेलन में यह संकल्प लिया गया कि निरक्षरता को खत्म करने के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ठोस कदम उठाए जाएंगे।
इसके ठीक एक साल बाद, 1966 में, संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन (UNESCO) ने इस संकल्प को साकार करते हुए 8 सितंबर को अंतर्राष्ट्रीय साक्षरता दिवस घोषित किया। पहला अंतर्राष्ट्रीय साक्षरता दिवस 1967 में मनाया गया। तब से, यह दिन हर साल एक विशेष थीम के साथ मनाया जाता है, जो वैश्विक साक्षरता के सामने आने वाली नई चुनौतियों और अवसरों पर केंद्रित होता है।
इस दिन का उद्देश्य सिर्फ जश्न मनाना नहीं, बल्कि वैश्विक समुदाय का ध्यान इस ओर आकर्षित करना है कि आज भी करोड़ों लोग पढ़ना-लिखना नहीं जानते। यह सरकारों, सामाजिक संगठनों, शैक्षणिक संस्थानों और व्यक्तियों को साक्षरता को बढ़ावा देने के लिए प्रेरित करता है।
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अंतर्राष्ट्रीय साक्षरता दिवस का महत्व
अंतर्राष्ट्रीय साक्षरता दिवस का महत्व बहुआयामी है। यह केवल एक दिन का उत्सव नहीं, बल्कि एक विचार है जो समाज के हर पहलू पर सकारात्मक प्रभाव डालता है:
- मानव अधिकार और व्यक्तिगत सशक्तिकरण:
साक्षरता एक मूलभूत मानव अधिकार है। यह व्यक्ति को अपने विचारों को व्यक्त करने, सूचना तक पहुंचने और अपने अधिकारों को जानने में सक्षम बनाती है। साक्षर व्यक्ति अपने जीवन के निर्णय अधिक प्रभावी ढंग से ले सकता है, बेहतर स्वास्थ्य और पोषण संबंधी आदतों को अपना सकता है और अपने बच्चों को शिक्षा के महत्व से अवगत करा सकता है। यह व्यक्ति को समाज में सम्मानजनक स्थान दिलाने में मदद करता है और उसे अपनी क्षमता का पूर्ण उपयोग करने के लिए सशक्त बनाता है। - सामाजिक और आर्थिक विकास:
एक साक्षर समाज आर्थिक रूप से अधिक मजबूत होता है। साक्षरता व्यक्ति को बेहतर रोजगार के अवसर प्रदान करती है, जिससे गरीबी कम होती है। यह कौशल विकास को बढ़ावा देती है और उत्पादकता को बढ़ाती है। जब लोग साक्षर होते हैं, तो वे वित्तीय सेवाओं, सरकारी योजनाओं और अन्य सामाजिक लाभों का बेहतर उपयोग कर पाते हैं। यह आर्थिक असमानता को कम करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। - लैंगिक समानता:
दुनिया भर में निरक्षर वयस्कों में लगभग दो-तिहाई महिलाएं हैं। यह असमानता महिलाओं को समाज में पीछे छोड़ देती है। साक्षरता महिलाओं को सशक्त बनाती है, उन्हें आत्मनिर्भर बनाती है और उन्हें अपने परिवार के लिए बेहतर निर्णय लेने में सक्षम बनाती है। साक्षर महिलाएं अपने बच्चों, विशेष रूप से बेटियों की शिक्षा सुनिश्चित करती हैं, जिससे अगली पीढ़ी में निरक्षरता का चक्र टूटता है। इस प्रकार, साक्षरता लैंगिक समानता और महिला सशक्तिकरण के लिए एक अनिवार्य उपकरण है। - लोकतांत्रिक भागीदारी:
साक्षर नागरिक एक स्वस्थ और मजबूत लोकतंत्र की नींव होते हैं। वे राजनीतिक प्रक्रियाओं को बेहतर ढंग से समझते हैं, अपने अधिकारों और कर्तव्यों से परिचित होते हैं, और सूचित निर्णय ले सकते हैं कि किसे वोट देना है। साक्षरता राजनीतिक जागरूकता बढ़ाती है और नागरिकों को सरकार के प्रति जवाबदेह बनाने में सक्षम बनाती है।
वर्तमान समय में साक्षरता की स्थिति और चुनौतियाँ
आज भी वैश्विक स्तर पर साक्षरता एक बड़ी चुनौती बनी हुई है। यूनेस्को के अनुसार, विश्व में लगभग 750 मिलियन वयस्क पढ़ना-लिखना नहीं जानते, जिनमें से अधिकांश महिलाएं हैं। विकासशील देशों, विशेषकर उप-सहारा अफ्रीका और दक्षिण एशिया में निरक्षरता दर अभी भी काफी अधिक है।
वर्तमान में, साक्षरता की अवधारणा केवल पारंपरिक पढ़ने और लिखने तक सीमित नहीं है। अब इसमें डिजिटल साक्षरता (Digital Literacy), मीडिया साक्षरता (Media Literacy) और वित्तीय साक्षरता (Financial Literacy) जैसे नए आयाम जुड़ गए हैं।
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डिजिटल साक्षरता:
आज का युग डिजिटल क्रांति का युग है। स्मार्टफोन, इंटरनेट और कंप्यूटर हमारे जीवन का अभिन्न अंग बन गए हैं। इस संदर्भ में, डिजिटल साक्षरता, यानी डिजिटल उपकरणों का उपयोग करने और ऑनलाइन जानकारी को समझने की क्षमता, उतनी ही महत्वपूर्ण हो गई है जितनी पारंपरिक साक्षरता। जिन लोगों के पास डिजिटल साक्षरता नहीं है, वे रोजगार, शिक्षा और सरकारी सेवाओं तक पहुंच से वंचित रह जाते हैं। इससे “डिजिटल विभाजन” पैदा होता है, जो सामाजिक और आर्थिक असमानता को और बढ़ाता है। अंतर्राष्ट्रीय साक्षरता दिवस डिजिटल साक्षरता के महत्व पर जोर देने का एक महत्वपूर्ण मंच बन गया है।
शिक्षा पर COVID-19 का प्रभाव:
COVID-19 महामारी ने शिक्षा प्रणालियों को गंभीर रूप से बाधित किया। स्कूलों के बंद होने से लाखों छात्रों की पढ़ाई प्रभावित हुई, जिससे साक्षरता के स्तर में गिरावट का जोखिम बढ़ गया। इस दौरान ऑनलाइन शिक्षा एक समाधान के रूप में उभरी, लेकिन यह केवल उन लोगों तक ही पहुंची जिनके पास डिजिटल उपकरण और इंटरनेट की पहुंच थी। इस महामारी ने डिजिटल साक्षरता के महत्व को और भी उजागर किया और शिक्षा में असमानता की खाई को गहरा किया।
भारत में साक्षरता की स्थिति
भारत ने साक्षरता के क्षेत्र में महत्वपूर्ण प्रगति की है। 2011 की जनगणना के अनुसार, भारत की साक्षरता दर 74.04% थी। हालाँकि, इसमें लैंगिक और क्षेत्रीय असमानताएँ मौजूद हैं। केरल जैसे राज्यों में साक्षरता दर 90% से ऊपर है, जबकि बिहार और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में यह दर कम है। भारत सरकार ने साक्षरता को बढ़ावा देने के लिए कई कार्यक्रम शुरू किए हैं, जैसे कि सर्व शिक्षा अभियान, राष्ट्रीय साक्षरता मिशन (NLM) और हाल ही में नई शिक्षा नीति (NEP) 2020।
नई शिक्षा नीति 2020 में बुनियादी साक्षरता और संख्या ज्ञान (Foundational Literacy and Numeracy) पर विशेष जोर दिया गया है। इसका लक्ष्य 2025 तक सभी बच्चों के लिए ग्रेड 3 तक बुनियादी साक्षरता और संख्या ज्ञान प्राप्त करना है।
आगे का रास्ता
निरक्षरता को खत्म करना एक सतत प्रक्रिया है जिसके लिए सरकारों, गैर-सरकारी संगठनों, निजी क्षेत्रों और व्यक्तियों के बीच सहयोग की आवश्यकता है। भविष्य में साक्षरता को बढ़ावा देने के लिए कुछ महत्वपूर्ण कदम उठाए जा सकते हैं:
- सभी के लिए गुणवत्तापूर्ण शिक्षा: सुनिश्चित करना कि सभी बच्चों, विशेष रूप से वंचित वर्गों और लड़कियों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तक पहुंच मिले।
- वयस्क शिक्षा कार्यक्रम: उन वयस्कों के लिए विशेष कार्यक्रम चलाना जो औपचारिक शिक्षा प्राप्त नहीं कर सके। इन कार्यक्रमों को प्रासंगिक कौशल और डिजिटल साक्षरता को शामिल करना चाहिए।
- डिजिटल साक्षरता को बढ़ावा: डिजिटल उपकरणों और इंटरनेट तक पहुंच बढ़ाना और लोगों को डिजिटल साक्षरता के लिए प्रशिक्षित करना।
- शिक्षक प्रशिक्षण: शिक्षकों को आधुनिक शिक्षण तकनीकों और डिजिटल उपकरणों का उपयोग करने के लिए प्रशिक्षित करना।
अंतर्राष्ट्रीय साक्षरता दिवस सिर्फ एक दिन नहीं, बल्कि एक वार्षिक संकल्प है। यह हमें याद दिलाता है कि साक्षरता एक व्यक्ति, समाज और राष्ट्र के लिए कितनी महत्वपूर्ण है। यह सिर्फ एक कौशल नहीं, बल्कि गरिमा, आत्मनिर्भरता और सशक्तिकरण का प्रतीक है। जब तक दुनिया का हर व्यक्ति साक्षर नहीं हो जाता, तब तक हमें अपनी कोशिशें जारी रखनी होंगी। साक्षरता की ज्योति से ही हम एक ऐसे विश्व का निर्माण कर सकते हैं जो अधिक समावेशी, न्यायपूर्ण और समृद्ध हो। यह दिन हमें यह संदेश देता है कि शिक्षा हर व्यक्ति का अधिकार है, और यह सुनिश्चित करना हमारा सामूहिक कर्तव्य है।