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Wednesday, September 11, 2024

स्वतंत्रता दिवस विशेष: कहानी एक ऐसे गाँव की जहां चलता था नेताजी सुभाष चंद्र बोस (Netaji Subhash Chandra Bose)का शासन

स्वतंत्रता दिवस विशेष । भारत देश को आजादी दिलाने के लिए, सभी राज्यों में आन्दोलन तीव्र हो गए थे। एक ऐसे ही स्वतंत्रता संग्रामी की बात आज करेंगे जो नागालैंड राज्य से हैं। जिनका नाम है रेवरेंड पोस्वुई स्वुरो (Reverend Poswuyi Swuro)। जिन्हें आमतौर पर पोस्वुई कह कर बुलाया जाता है। जो नागालैंड के फेक जिले के रुज़ाज़ो गांव से हैं। आज वे रुज़ाज़ो गांव के सबसे बुजुर्ग व्यक्ति हैं। जब जापानी और INA (Netaji Subhash Chandra Bose की आजाद हिन्द फौज) रुज़ाज़ो गांव में आए थे, तब उनकी उम्र 20 के आसपास थी। वे जेसामी गांव से होते हुए रुज़ाज़ो गांव में आए थे, जो उनका पैतृक गांव था। उस समय लगभग  उत्तर – पश्चिम के सभी राज्यों पर अंग्रेजों का अधिकार ब्याप्त हो गया था बस कुछ ऐसे इलाके रह गए थे जिनमें आदिवासी जनजाति निवास करती थी । पोस्वुई का गाँव भी एक ऐसा ही गाँव था जहां अंग्रेजों का आसानी से घुस पाना  मुमकिन नहीं था। जब कभी भी अंग्रेजी सेना ने ऐसा प्रयास किया, तब गाँव के लोगों ने अंग्रेजों के सर धड़ से अलग कर गाँव की सीमा पर टांग दिए । इस कारण अंग्रेजी सरकार इन आदिवासियों से भयभीत रहती थी।

द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान, युद्ध की खबरें अधिक तेज हो गईं थी और स्कूल बंद हो गए, परिणामस्वरूप पोस्वुई स्वुरो को अपने गांव वापस आना पड़ा और वह अपनी पढ़ाई आगे जारी नहीं रख सके। यह वह समय था जब पोस्वुई व उनके बड़े भाई वेसुई स्वुरो अकसर गाँव के बाकी युवकों से यह चर्चा किया करते थे कि अब उनका भविष्य क्या होगा ? क्या इस बार अंग्रेजी सरकार उन्हें भी अपना गुलाम बनाने में सफल हो जाएगी या फिर जापान के सैनिकों के साथ आगे बढ़ रही आजाद हिन्द फौज नेताजी की बात से मुकर कर भारत में अपना राज चलाएगी ? ये कुछ सवाल थे जो उन्हें काफी परेशान कर रहे थे।

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इसी बीच खबर आई कि नेताजी सुभाष चंद्र बोस (Netaji Subhash Chandra Bose) अपनी सेना आजाद हिन्द फौज  के साथ आगे बढ़ कर उनके गाँव रुज़ाज़ो पहुँचने वाले हैं। अब पोस्वुई के सामने दुविधा थी कि वो लोग किस पर भरोसा करें उन्हे जापानी सेना पर बिल्कुल विश्वास नहीं हो रहा था। कुछ ही दिन बाद उनकी मुलाकात नेताजी सुभाष चंद्र बोस (Netaji Subhash Chandra Bose) से हुई जब 4 अप्रैल 1941 को INA और जापानी सेना अपने ‘दिल्ली चलो’ अभियान के तहत रुज़ाजो गांव में आई। अगले ही दिन, एक बैठक बुलाई गई जिसमें पोस्वुई को नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने DB (दोआबाशी: क्षेत्र प्रशासक) के रूप में चुना। इसके अलावा, उनके बड़े भाई वेसुई स्वुरो को दुभाषिया के रूप में नियुक्त किया गया, क्योंकि यही वो लोग थे जो हिन्दी समझ व बोल पाते थे।  जबकि आठ अन्य ग्रामीणों को GB (गाँव के बुजुर्ग) के रूप में नियुक्त किया गया। पोस्वुई ने अपने साक्षात्कार में 1944 की शुरुआत में जापानी और INA के क्रमिक आगमन और 4 अप्रैल 1944 से अप्रैल के तीसरे सप्ताह में उनके जाने तक गाँव में रहने की बात कही। कहा जाता है कि रुजाजो गांव भारत की धरती पर पहला ऐसा गांव था जिसे नेताजी सुभाष चंद्र बोस के नेतृत्व वाली ‘आजाद हिंद सरकार’ द्वारा प्रशासित किया गया था और स्वतंत्रता के बाद नेताजी सुभाष चंद्र बोस (Netaji Subhash Chandra Bose) ने विकास के लिए इस गांव को गोद लेने का वादा किया था।

देशभक्त धरतीपुत्र पोस्वुई ने डोबाशी (क्षेत्र प्रशासक) के पद पर देशभक्ति, साहस और दृढ़ संकल्प के साथ काम किया। उन्होंने नेताजी सुभाष चंद्र बोस (Netaji Subhash Chandra Bose) द्वारा घोषित जानकारी को ग्रामीणों तक पहुंचाया और आईएनए की ओर से गांव-गांव पैदल यात्रा की और गांव के नेताओं को शिविर में जापानियों के लिए सूअर, मुर्गियां, चावल, मक्का और सब्जियां आदि जैसे राशन एकत्र करने की जानकारी दी। इस तरह से एकत्र किए गए राशन को एक विशेष स्थान पर संग्रहीत किया गया और उन्हें विभिन्न आईएनए शिविरों और जापानी सैनिकों के शिविरों में ले जाया गया और वितरित किया गया। उन्होंने कई मामलों में वितरण के लिए राशन को व्यक्तिगत रूप से भी पहुंचाया ।

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Shri Poswuyi Swuro स्वतंत्रता दिवस विशेष: कहानी एक ऐसे गाँव की जहां चलता था नेताजी सुभाष चंद्र बोस (Netaji Subhash Chandra Bose)का शासन
रेवरेंड पोस्वुई स्वुरो (BY AZADI KA AMRIT MAHOTSAV)

डीबी के रूप में सेवा करते हुए, उन्होंने ब्रिटिश सेना की ओर सैनिकों का नेतृत्व करने वाले एक गाइड के रूप में भी काम किया, जो कि मौजूदा युद्ध की स्थिति के दौरान एक बहुत ही जोखिम भरा काम था क्योंकि उन्हें किसी भी समय गोली मार दी जा सकती थी। क्षेत्र के मूल निवासी के रूप में, वह इलाके और मार्गों को अच्छी तरह से जानते थे, इसलिए पोस्वुई अपने भाई वेसुई के साथ जापानी सैनिकों को दिशा-निर्देश देते हुए जापानी और आईएनए सैनिकों को युद्ध की अग्रिम पंक्ति में ले जाते थे। ऐसे ही एक मिशन पर, उन्होंने वेसुई स्वुरो (उनके दिवंगत भाई) के साथ जापानी सैनिकों को ज़ुन्हेबोटो की ओर ले गए, हालांकि ब्रिटिश सैनिकों की भारी उपस्थिति के कारण; वे सताखा में रुके, जो रुज़ाज़ो से 50 किलोमीटर दूर स्थित है। लेकिन वापस आते समय, ब्रिटिश सैनिकों द्वारा उन पर अचानक घात लगाकर हमला कर दिया गया। जिसमें 3 जापानी सैनिकों और एक नागा व्यक्ति को मार डाला गया। जब पोस्वुई इस हमले के बाद अपने भाई से मिले तब उनकी जान में जान आई।  पोस्वुई बताते हैं कि “उन्हें एक पल के लिए लगा कि उन्होंने अपने बड़े भाई को आज खो दिया है।” इस तरह इन नागा युवकों ने कई ऐसे मिशनों को अंजाम दिया था जिसमे जान की बाजी लगा दी थी।

नेताजी बोस ने रुज़ाज़ो गांव छोड़ने से पहले गांव वालों से कहा कि वे वापस आएंगे और युद्ध जीतने के बाद वे गांव के लिए स्कूल, अस्पताल, सड़कें आदि बनवाएंगे। ऐसे वादों के साथ गांव वालों ने युद्ध के लिए अपना सर्वश्रेष्ठ दिया। दुर्भाग्य से, जापानी और आईएनए युद्ध हार गए और इस तरह नेताजी उन वादों को छोड़कर वापस चले गए जो कभी पूरे नहीं हुए।

जापानियों और आज़ाद हिंद फ़ौज के प्रति नागाओं द्वारा किए गए प्रयासों और सेवा की मान्यता में, रुज़ाज़ो गांव में एक पट्टिका लगाई गई थी, जबकि भारत के उपराष्ट्रपति एम. वेंकैया नायडू ने 2021 में पोस्वुई के पैतृक गांव का दौरा किया और उनसे बातचीत की थी।

युद्ध के बाद, पोस्वुई ने गांव के कल्याण के लिए सामाजिक कार्यों में संलग्न होकर एक साधारण जीवन व्यतीत किया और 1950 में अपने गांव में शिक्षा की शुरुआत की।

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Mamta Negi
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