चौखुटिया: चौखुटिया में बसे ग्राम गेवाड़ घाटी, जहाँ पहाड़ों की सुंदरता और संस्कृति हर चेहरे पर मुस्कान बिखेरती है, आज वहां उदासी और चिंता की लहर है। यहां के लोगों की हक की लड़ाई में एक बुजुर्ग पूर्व सैनिक, हीरा सिंह पटवाल का त्याग और धैर्य सबके लिए प्रेरणा बन गया है। हीरा सिंह पटवाल, जिन्होंने जीवनभर देश की सेवा की, अब अपने गांव के लोगों की भलाई के लिए जूझ रहे हैं। ‘ऑपरेशन स्वास्थ्य’ के कारण उपजे हालातों ने उन्हें इतना झकझोर दिया कि उन्होेंने आमरण अनशन अपनाने का फैसला किया। सात दिनों तक बिना भोजन और जल केवल नींबू-जल पीकर वे डटे रहे। हर पल उनका स्वास्थ्य गिरता रहा लेकिन उनका जज्बा नहीं टूटा।
आज, जब प्रशासन ने उनकी बातें अनसुनी कर दीं, तो उन्होंने जल समाधि की चेतावनी दी ही नहीं बल्कि बहती रामगंगा नदी में जल समाधि में बैठ गए। इस कदम से गांव वालों में हड़कंप मचा गया—लोग उन्हें रोकने आए, आंसुओं से नम आंखों ने कहा, “हीरा दा, मत कीजिए ऐसी जिद, आपके बिना हमारा हौसला टूट जाएगा।” लेकिन हीरा सिंह पटवाल जानते थे कि किसी भी बदलाव के लिए कभी-कभी जिंदगी को दांव पर लगाना पड़ जाता है।
उनका यह बलिदान केवल गेवाड़ घाटी ही नहीं, पूरे जनपद के लिए सम्मान का विषय है। सोशल मीडिया और जनसमुदाय में हर दिल उनकी व्यथा और साहस पर गर्व कर रहा है। उनके आत्म-समर्पण ने यह संदेश दिया है कि छोटी जगहों पर भी बड़े संघर्ष जन्म लेते हैं और एक व्यक्ति के संकल्प से पूरे समाज की दिशा बदल सकती है। हर कोई उम्मीद कर रहा है कि प्रशासन उनकी मांगें मान ले और गेवाड़ घाटी के लोगों की सच्ची समस्याओं और अधिकारों का सम्मान हो। हीरा सिंह पटवाल जैसे योद्धाओं का बलिदान बेकार न जाए, यही दुआ हर घर में हो रही है।
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ऑपरेशन स्वास्थ्य’ के खिलाफ आवाज
सरकारी स्तर पर शुरू किया गया ऑपरेशन स्वास्थ्य योजना का उद्देश्य क्षेत्र में स्वास्थ्य सेवाओं को सुदृढ़ करना बताया जा रहा है, लेकिन स्थानीय निवासियों का कहना है कि इस योजना के तहत कई नीतियां और कार्यप्रणालियां उनकी ज़मीन, पानी और जीवनशैली पर प्रतिकूल असर डाल रही हैं। कुछ ग्रामीणों का आरोप है कि स्वास्थ्य केंद्रों और सुविधा विस्तार के नाम पर संसाधनों का दुरुपयोग हो रहा है और जनता की असली समस्याओं पर ध्यान नहीं दिया जा रहा।
हीरा सिंह पटवाल की पृष्ठभूमि
श्री हीरा सिंह पटवाल भारतीय सेना के सेवानिवृत्त सैनिक हैं और गेवाड़ घाटी के सम्मानित नागरिकों में से एक माने जाते हैं। अपने जीवन के लंबे समय तक देश सेवा करने के बाद उन्होंने गांव में रहकर समाज के मुद्दों पर आवाज उठाना शुरू किया। घाटी के लोगों के हितों के लिए वह कई वर्षों से संघर्ष कर रहे हैं। उनका कहना है कि ‘ऑपरेशन स्वास्थ्य’ के कुछ प्रावधान सीधे तौर पर स्थानीय जनता के अधिकारों का हनन करते हैं।
आमरण अनशन का स्वरूप
करीब एक सप्ताह पहले हीरा सिंह पटवाल ने गांव के मुख्य चौक पर आमरण अनशन शुरू किया। उनकी मांगें स्पष्ट हैं –
- ऑपरेशन स्वास्थ्य में बदलाव
- स्थानीय जनता से विचार-विमर्श
- अधिकारों और संसाधनों की सुरक्षा
- भ्रष्टाचार और कुप्रबंधन पर रोक
अनशन के दौरान उन्होंने पानी छोड़कर केवल नींबू-जल का सेवन किया, जिससे उनका स्वास्थ्य लगातार गिरता चला गया।
प्रशासन और पुलिस की भूमिका
सूत्रों के अनुसार, स्थानीय पुलिस और प्रशासन के अधिकारी सुबह से ही मौके पर मौजूद हैं। वह लगातार हीरा सिंह पटवाल को समझाने का प्रयास कर रहे हैं। जिला प्रशासन ने बताया कि उनकी मांगों पर वार्ता का प्रयास किया जा रहा है और एक समिति गठित करके मामले की जाँच शुरू की जाएगी।
आंदोलन का असर
यह आंदोलन न केवल गेवाड़ घाटी बल्कि पूरे अल्मोड़ा जिले में चर्चा का विषय बन गया है। सोशल मीडिया पर भी लोग इस मुद्दे पर अपनी राय दे रहे हैं। कई लोग इसे जनता की आवाज बताते हैं, जबकि कुछ लोग इसे सरकार की जनकल्याणकारी योजनाओं को बाधित करने वाला कदम मान रहे हैं। स्थानीय लोग प्रशासन पर दबाव बना रहे हैं कि हीरा सिंह पटवाल की मांगों पर तुरंत निर्णय लिया जाए, ताकि एक बुजुर्ग पूर्व सैनिक को अपनी जान जोखिम में न डालनी पड़े। प्रशासन का कहना है कि वह शांतिपूर्ण समाधान चाहता है। यदि आज की वार्ता विफल हुई तो आंदोलन का माहौल और अधिक गंभीर हो सकता है, और गेवाड़ घाटी में संघर्ष की यह कहानी प्रदेशभर के लिए बड़ी मिसाल बन सकती है।