अल्मोड़ा: द्वाराहाट ब्लॉक के बग्वालीपोखर क्षेत्र के कामा गांव निवासी वीर सपूत शहीद कैप्टन दीपक सिंह को मरणोपरांत शौर्य चक्र मिलने पर लोगों में दुःख के साथ खुशी भी है। लोगों ने भारत सरकार का अभार जताया है। आपको बता दें कि 25 वर्षीय शहीद कैप्टन दीपक सिंह सिग्नल कोर 48वीं बटालियन राष्ट्रीय राइफल में तैनात थे। जम्मू कश्मीर के डोडा जिले में आतंकवादियों के साथ मुठभेड़ में 14 अगस्त 2024 को वह शहीद हुए थे। इससे पहले उन्होंने भारी गोलाबारी के बीच अपने सैनिकों को बचाया। जख्मी होने के बाद भी एक आतंकी को घायल किया। उनके सर्वोच्च बलिदान के लिए मरणोपरांत उन्हें शौर्य चक्र से सम्मानित किया गया।
पूरी रात आतंकियों को मुंहतोड़ जवाब देते रहे कैप्टन दीपक
इसके बाद कैप्टन दीपक ने अपनी टुकड़ी को संगठित कर आतंकियों की घेराबंदी शुरू कर दी. इसके तहत जवानों ने सटीक निशाना लगातार एक आतंकी को घायल कर दिया. अंधेरा होने और आतंकियों के चट्टान के पीछे छिपे होने की वजह से काफी चुनौती पेश आई, लेकिन दीपक सिंह पूरी रात अपनी टुकड़ी के साथ डटे रहे। अगली सुबह कैप्टन दीपक सिंह ने तलाशी अभियान शुरू किया।
मुठभेड़ में शहीद हुए दीपक सिंह
तलाशी अभियान के दौरान एम 4 असॉल्ट राइफल के साथ गोला बारूद बरामद हुआ. इसी बीच चट्टान के पीछे छिपे घायल आतंकी ने फायरिंग शुरू कर दी. जिस पर कैप्टन दीपक सिंह ने अपने प्राणों की चिंता न करते हुए अपने साथी को सुरक्षित पीछे किया और खुद आगे जाकर आतंकी को मुंहतोड़ जवाब देना शुरू किया. काफी देर तक आमने-सामने गोलीबारी चली. जिसमें कैप्टन दीपक घायल हो गए।
शहीद कैप्टन दीपक सिंह को मरणोपरांत मिला शौर्य चक्र
कैप्टन दीपक सिंह को आर्मी हॉस्पिटल ले जाया गया, लेकिन डॉक्टर उनकी जान नहीं बचा पाए. आखिरकार अदम्य साहस का अप्रतिम परिचय देते हुए वीरगति को प्राप्त हुए. वहीं, राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने वीर शहीद कैप्टन दीपक सिंह मरणोपरांत शौर्य चक्र से सम्मानित किया. यह सम्मान उनके माता चंपा सिंह और पिता महेश सिंह ने ग्रहण किया।
शौर्य चक्र लेते वक्त माता चंपा सिंह की भर आईं आंखें
बता दें कि 25 साल के कैप्टन दीपक सिंह कॉर्प्स ऑफ सिग्नल्स की 48 राष्ट्रीय राइफल्स में तैनात थे. जो देहरादून के कुआं वाला के निवासी थे. जबकि, उनके पिता महेश सिंह उत्तराखंड पुलिस के सेवानिवृत्त अधिकारी हैं. जो निरीक्षक एवं पुलिस मुख्यालय में रह चुके हैं. वहीं, शौर्य चक्र लेते वक्त उनकी माता चंपा सिंह की आंखें भर आईं।
तीन भाई-बहनों में सबसे छोटे थे कैप्टन दीपक सिंह
कैप्टन दीपक तीन भाई-बहनों में सबसे छोटे थे. जबकि, दो बहनें उनसे बड़ी हैं. जिस वक्त वे शहीद हुए थे, उसके चंद दिन बाद रक्षाबंधन का त्यौहार था. बहन अपने भाई का इंतजार करती रही, लेकिन भाई देश के लिए कुर्बान हो गया. अपने बेटे की शहादत के बाद कैप्टन दीपक के पिता महेश सिंह ने कहा था कि वो अपनी आंखों से एक भी आंसू नहीं बहाएंगे. क्योंकि, उन्हें गर्व है कि उनका बेटा देश के लिए कुछ कर पाया.
वहीं, कैप्टन दीपक सिंह मरणोपरांत शौर्य चक्र मिलने पर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी समेत तमाम मंत्रियों ने उनकी शहादत को याद किया. उत्तराखंड के सैनिक कल्याण मंत्री गणेश जोशी ने कहा है कि यह गर्व का पल है. उत्तराखंड में पैदा होने वाला हर बच्चा देश के प्रति समर्पित होने के लिए तैयार रहता है. उनके माता-पिता भी सेना में भेजने के लिए बच्चों को आतुर रहते हैं. शहीद कैप्टन दीपक सिंह का शौर्य, बलिदान और कर्तव्यनिष्ठा आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत है।
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