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दहेज प्रथा है एक अभिशाप,दहेज के कारण हुई ताड़ीखेत की लता बिष्ट की मौत, दहेज के कारण बर्बाद हो रहे है घर।

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अल्मोडा: देवभूमि उत्तराखंड के उधम सिंह नगर जिले के सितारगंज से एक बड़ी हृदय विदारक खबर सामने आ रही है जहां अल्मोड़ा निवासी 23 वर्षीय लता बिष्ट की संदिग्ध परिस्थितियों में मौत हो गई। मायके पक्ष के लोगों ने इसे दहेज के लिए ह्त्या का मामला बताया है। जिसका गंभीर आरोप उनके पति और जेठानी पर लगा है। अभी तक मिली जानकारी के अनुसार अल्मोड़ा जिले के ताड़ीखेत ब्लॉक रेली चमड़खान की रहने वाली लता बिष्ट का विवाह वर्ष 2022 मे अल्मोड़ा के भतरौजखान के नौघर से रोहित भंडारी से हुई थी जिनका एक घर सितारगंज मे भी है। दरअसल लता के पिता का काफी समय पहले देहांत हो चुका था जिसके बाद उनका पालन पोषण जैसे तैसे उनकी मां ने किया लेकिन लता की शादी के दो महीने बाद ही उनकी माँ भी गुजर गई थी। माता-पिता के गुजर जाने के बाद लता का इकलौता सहारा सिर्फ उनका भाई रहा।

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दहेज के कारण जिदंगी से हार रही है बेटियां 

दहेज प्रथा के कारण प्रतिदिन लगभग 20 से 30 बहनें आत्महत्या कर रही है या ससुराल वाले उन्हें मार दे रहे है,ससुराल वालों द्वारा दहेज के लिए 70% बहनो को प्रताड़ित किया जा रहा है , इस बुराई को जड़ से खत्म किया जाना चाहिए , सरकार भले ही कोई भी कानून ले आए , लेकिन जब तक प्रत्येक व्यक्ति संगठित होकर इस बुराई को सदा के लिए नही छोड़ेगा , तब तक इस बुराई का अंत शायद ही हो पाए । दहेज लेना और देना कुरुति है , और मानव मात्र के लिए अशांति का काऱण है , हमारा उद्देश्य मोक्ष प्राप्त कर के इस दुखालय यानी काल लोक से छूटकर सुखस्थल सतलोक में जाना है , हम यहां पर एक दूसरे के पूर्व जन्म के लेन देन के कारण यहां पर किसी का बेटा बेटी भाई बहन माता पिता आदि बने है और यहां सब एक दूसरे का लेन देन पूरा करने आए है , यदि हमने मोक्ष प्राप्त करना है , तो यहां पर और किसी से किसी का पैसा लेकर या देकर हमें हमारे संस्कार नही बढ़ाना है , इसीलिए कोई भी दहेज का लेन देन बिल्कुल नही करना है । किसी के द्वारा दिये गए दहेज रूपी धन पर आधारित होकर हम कितने दिन तक जीवन यापन कर सकते है !

दहेज प्रथा केसे हो बंद

इस कुप्रथा को खत्म करने के लिए लोगों को आध्यात्मिकता की ओर ध्यान देना चाहिए, जिससे सभी को ज्ञान होगा दहेज लेने और देने से हमारे जीवन पर कितना बड़ा असर पड़ता है । इस जन्म में तो हम लड़की के पिता से दहेज ले लेते हैं परंतु हमें अगले जन्म में उसकी पाई पाई ऋण चुकाना पड़ता है। यह तो जरूरी नहीं कि हम अगले जन्म में इंसान काही जन्म हो, तो इसीलिए हमें पशु बनकर कोई कुत्ते, गधे ,गाय बनकर उनकी पाई पाई चुकानी पड़ती है। इस जीवन में लिया हुआ दहेज हमें ना जाने कितने असंख जन्मो तक चुकाना पड़ता है। अब तक यह सच्चाई सभी को मालूम नहीं थी परंतु आध्यात्मिकता से जुड़ने के कारण सब को यह जानकारी मिलेगी और सभी इस कुप्रथा से पीछे हट जाएंगे।

दहेज प्रथा बंद करने के लिए हमे क्या करना चाहिए?

समाज ने स्वयं दहेज की रीति बनाई और उसके फलस्वरूप भ्रूण हत्या जैसी अन्य सामाजिक बीमारी उपजी। प्रत्येक पिता या परिवार बेटी के विवाह को चिंत के रूप में लेता है और समाज मे दहेज का सौदा करके बेटियों का विवाह करता है। यह निंदनीय है। अनपढ़ से लेकर शिक्षित समुदाय भी दहेज प्रथा में लिप्त पाए जाते हैं। दहेज के अतिरिक्त दिखावा, बैंड-बाजे आदि के माध्यम से अतिरिक्त और अनावश्यक खर्च को बढ़ावा दिया जाता है। केवल इस कारण से बेटियों का विवाह आम परिवारों में चिंता और अत्यधिक खर्च का विषय बना हुआ है। बेटियां देवी का रूप कही जाती हैं और उसी देवी को जन्म से पहले मा देने की सामाजिक बुराई दहेज प्रथा की देन है। समाज दहेजप्रथा कभी बंद नहीं कर पाया लेकिन एक नई बुराई भ्रूण हत्या जरूर आरम्भ कर दी। इसलिए समझदार लोगों ने दहेज प्रथा को गलत बताया है।

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लोग दहेज प्रथा को क्यों पसंद करते है?

दहेज एक ऐसी प्रथा बन गयी है जिसे समाप्त करना लगभग असम्भव सा लगता है।दहेज एक ऐसी प्रथा है जिसके कारण ना जाने कितनी बेटियों को पैदा होने से पहले ही मार दिया जाता है, दहेज़ लेना सब को पसंद है लोगो के लगता है दहेज ले कर वो सम्पन्न हो जायेंगे परन्तु ऐसा नहीं होता। हम जहा रहते है इस लोक के मालिक का विधान है जो जैसा करता है उसके साथ भी वैसा ही होता है, दहेज एक प्रकार का कर्ज होता है और कर्ज लेने वाले को उस कर्ज की भरपाई करनी पड़ती है। दहेज प्रथा को समाप्त करने की कितनी कोसिस व्यर्थ गयी हैं, कितने लोगो ने जनाभियान चलाये, सरकार ने नियम क़ानून बनाये और लोगो को दहेज ना लेने के लिए प्रेरित करने का भी अभ्यास किया, परन्तु यह सभी प्रयास विफल होते नजर आते हैं। पहले लोग खुल कर दहेज मांगते थे अब छुप कर दहेज मांगते है,बेटी के घरवाले दहेज देने को तैयार हो जाते है क्यूंकि अगर दहेज ना दिया तो बेटी का विवाह नहीं हो पायेगा और हो भी गया तो बेटी को बहोत दुखी करेंगे। बेटी का पिता बड़े दुख से धन जुटाता है। दहेज एक ऐसी प्रथा बन गयी है की बेटी का जन्म होते है पिता को उसके विवाह की चिंता, दहेज की चिंता सताने लगती है।

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दहेज के प्रति लगातार बेटियां आत्महत्या कर रही है या तो ससुराल वाले मार दे रहे है। ऐसा ही कुछ हुआ अल्मोड़ा ताड़ीखेत की लता बिष्ट के साथ। आपको बता दे दरअसल लता के चाचा भुवन बिष्ट ने बताया कि शादी के कुछ समय बाद ही उनके पति ने उन्हें परेशान करना मारना पीटना शुरू कर दिया था बावजूद इसके भी वह अपना जीवन यापन ससुराल में ही कर रही थी लेकिन बीते 1 अक्टूबर की सुबह करीब 7:00 बजे लता के परिजनों को उनके पति रोहित का कॉल आता है जिसमें वह कहते हैं कि आपकी बेटी शरीर से नीली पड़ गई है और बाकी बात यहां आकर होगी। लगभग 1 घंटे के बाद फिर से उनके परिजनों को कॉल के जरिए बताया जाता है कि आपकी बेटी का मुंह टेढ़ा हो गया है और वह खत्म हो गई है। इसके बाद लता के चाचा समेत सभी परिजन सितारगंज पहुंचे तो पुलिस ने उन्हें बॉडी दिखाई जिसमें शरीर पर काफी सारे चोट के निशान देखे गए। जिसके चलते लता की नानी लीला देवी ने ससुराल पक्ष पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा है कि लता के पति रोहित और उसकी जेठानी ने लता को मार डालने का पूरा षड्यंत्र रचा है। जिसके लिए उन्होंने पिरूमदारा रामनगर थाने और सितारगंज थाने में मामला दर्ज कर तहरीर सौंपी है। नानी लीला देवी का कहना है कि इतना ही नहीं बल्कि शादी के बाद से ही लता को दहेज के लिए प्रताड़ित किया जाता था। लता ने इसकी जानकारी भी अपने परिजनों को फोन के जरिए बताई थी कि मुझे यहां परेशान किया जाता है। रोजाना दहेज के लिए उकसाना और प्रताड़ित करने में लता के पति रोहित और लता की जेठानी का पूरा हाथ था।

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