देहरादून: उत्तराखंड के बहुचर्चित अंकिता भंडारी हत्याकांड में एक बार फिर सियासी हलचल तेज हो गई है। सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे वीडियो और ऑडियो क्लिप्स ने न सिर्फ पुराने घाव ताज़ा कर दिए हैं, बल्कि एक सीनियर भाजपा नेता का नाम भी राजनीतिक बहस के केंद्र में ला खड़ा किया है। अभिनेत्री उर्मिला सनावर द्वारा सोशल मीडिया पर लगाए गए आरोपों के बाद भाजपा के प्रदेश प्रभारी और राष्ट्रीय महासचिव दुष्यंत कुमार गौतम को पहली बार खुलकर सफाई देनी पड़ी। उर्मिला ने अपने वीडियो में ‘गट्टू’ नाम के एक कथित ‘वीवीआईपी’ की भूमिका पर सवाल उठाए, जिसे जोड़कर गौतम का नाम उछाला जा रहा है।
उर्मिला सनावर के आरोप और FIR की कड़ियाँ
उर्मिला सनावर खुद को पूर्व भाजपा विधायक सुरेश राठौर की पत्नी बताती हैं और उन्होंने फेसबुक व इंस्टाग्राम जैसे प्लेटफॉर्म पर वीडियो–ऑडियो क्लिप शेयर कर गंभीर आरोप लगाए हैं। इन क्लिप्स में दावा किया गया कि अंकिता भंडारी हत्याकांड में ‘गट्टू’ नाम का व्यक्ति कथित तौर पर शामिल था और उसी के ‘इशारे’ पर सारा खेल खेला गया। इन आरोपों के बाद उत्तराखंड पुलिस ने हरिद्वार और देहरादून में राठौर और उर्मिला के खिलाफ एफआईआर दर्ज की है, जिसमें उन पर भ्रामक और फर्जी ऑडियो–वीडियो के जरिए भाजपा नेता दुष्यंत गौतम की छवि धूमिल करने का आरोप लगाया गया है। शिकायतों में कहा गया कि इन पोस्टों से न सिर्फ उनकी व्यक्तिगत साख पर हमला हुआ, बल्कि उनकी समुदाय विशेष में प्रतिष्ठा को भी ठेस पहुंची है।
दुष्यंत गौतम की सफाई: “47 साल की तपस्या दांव पर
मामला तूल पकड़ने के बाद दुष्यंत कुमार गौतम ने एक वीडियो संदेश जारी कर खुद को निर्दोष बताया और इसे अपने खिलाफ “आपराधिक षड्यंत्र” करार दिया। उन्होंने कहा कि वे बीते 47 वर्षों से अपने राजनीतिक, धार्मिक और सामाजिक जीवन में लगातार सक्रिय हैं और हमेशा नैतिक मूल्यों तथा समाज में बहन-बेटियों की इज्जत को सर्वोपरि रखकर काम किया है। गौतम ने दो टूक कहा कि यदि कोई व्यक्ति उनके खिलाफ लगाए जा रहे आरोपों का ठोस सबूत लेकर आ जाए, तो वे सार्वजनिक जीवन से संन्यास लेने को तैयार हैं। उन्होंने मांग की कि सरकार फर्जी और भ्रामक वीडियो–ऑडियो को तत्काल सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म से हटवाए और ऐसे कंटेंट फैलाने वालों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करे।
राजनीतिक निहितार्थ और सियासी तापमान
अंकिता भंडारी हत्याकांड शुरू से ही ‘वीआईपी एंगल’ के चलते राजनीतिक विवादों के घेरे में रहा है और अब नए आरोपों ने इस मुद्दे को एक बार फिर सियासत के केंद्र में ला दिया है। कांग्रेस और विपक्ष लंबे समय से सवाल उठा रहे हैं कि सरकार कथित वीआईपी की पहचान सार्वजनिक करने से क्यों बच रही है, जबकि भाजपा इसे राजनीति से प्रेरित दुष्प्रचार बता रही है। सोशल मीडिया पर चल रहे वीडियो–ऑडियो के बीच जनता के मन में भी नए सवाल खड़े हो रहे हैं कि क्या ये आरोप सच की ओर इशारा करते हैं या फिर यह सिर्फ किसी निजी और राजनीतिक रंजिश की उपज है। कानूनन, जांच एजेंसियों पर अब दबाव है कि वे तकनीकी व फोरेंसिक जांच के जरिए इन डिजिटल सबूतों की सच्चाई सामने लाएं, ताकि आरोप और प्रत्यारोप के इस दौर पर विराम लग सके।
न्याय, साख और सोशल मीडिया ट्रायल
अंकिता भंडारी के परिजन और उत्तराखंड की आम जनता शुरू से ही पारदर्शी और कठोर न्याय की मांग कर रहे हैं, जबकि अदालत ने मुख्य आरोपियों को सजा सुनाकर एक चरण में न्यायिक प्रक्रिया पूरी की है। इसके बावजूद ‘वीआईपी’ की भूमिका, राजनीतिक दबाव और अब दुष्यंत गौतम का नाम जुड़ने से मामला कानूनी प्रक्रिया से ज्यादा सोशल मीडिया ट्रायल की दिशा में बढ़ता दिख रहा है। डिजिटल युग में किसी भी ऑडियो–वीडियो क्लिप के वायरल होते ही न केवल संबंधित व्यक्ति की सामाजिक और राजनीतिक साख खतरे में पड़ जाती है, बल्कि पूरी जांच प्रक्रिया भी प्रभावित होने लगती है। इसी वजह से यह सवाल और प्रासंगिक हो जाता है कि सच्चाई अदालत और वैज्ञानिक जांच से तय होगी या फिर सोशल मीडिया की अदालत में ‘ट्रेंड’ और ‘वायरल’ ही अंतिम फैसला लिख देंगे।
