जिस कवि की कृति को अंग्रेजी सरकार ने जप्त कर लिया था। हम बात कर रहे हैं राष्ट्रकवि मैथली शरण गुप्त जी की। मैथिली शरण गुप्त जी की महत्वपूर्ण काव्य रचना भारत भारती जो 1912 में लिखी गई थी, यह गुप्त जी के यश का आधार है।
मैथिलीशरण गुप्त जी की संक्षिप्त जीवनी
मैथिलीशरण गुप्त जी का जन्म ३ अगस्त १८८६ को चिरगांव, झांसी (उत्तर प्रदेश) में हुआ था। इनके पिताजी का नाम सेठ रामचरण कनकने और माता का नाम काशी बाई था। मैथिलीशरण गुप्त द्विवेदी युगीन एक महत्वपूर्ण कवि थे। यह द्विवेदी युग के प्रवर्तक आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी जी को अपना गुरु मानते थे। यह महावीर प्रसाद द्विवेदी जी से प्रेरणा लेकर उनके आदर्शों के साथ आगे बढ़े। महावीर प्रसाद द्विवेदी जी के संपादकत्व में चलने वाली सरस्वती पत्रिका के माध्यम से नए-नए कवि तैयार हुए जिनमें मैथिली शरण गुप्त प्रमुख थे।
गुप्त जी की प्रमुख कृतियाँ – जय भारत, साकेत, यशोधरा, जयद्रथ वध, भारत भारती, पंचवटी, झंकार, द्वापर, विष्णु प्रिया आदि हैं।
गुप्त जी द्वारा साकेत महाकाव्य लिखने का रोचक किस्सा
मैथिलीशरण गुप्त को साकेत लिखने की प्रेरणा सरस्वती पत्रिका में छपे एक लेख “कवियों की उर्मिला विषयक उदासीनता” से मिली। यह लेख महावीर प्रसाद द्विवेदी द्वारा भुजंग भूषण भट्टाचार्य के छद्म नाम से लिखा गया था। इसी को पढ़कर उन्होंने चिर उपेक्षित उर्मिला को महत्व देने के लिए साकेत नामक महाकाव्य की रचना करी। साकेत में उर्मिला प्रधान चरित्र है और नायक लक्ष्मण हैं।
महावीर प्रसाद द्विवेदी जी के लिए उन्होंने निम्न पंक्तियों द्वारा कृतज्ञता व्यक्त की है –
करते तुलसीदास भी कैसे मानस नाद?
महावीर का यदि नहीं मिलता उन्हें प्रसाद।।
भारत भारती
एक ऐसा काव्य जिसने हिंदी प्रेमियों को एक नए रूप से परिचित कराया। इस महाकाव्य की लोकप्रियता इतनी थी कि इसकी सारी प्रतियाँ रातों-रात खरीद ली गई। भारत भारती का प्रकाशन सन् 1912 ईस्वी में हुआ था भारत भारती की कथावस्तु तीन भागों में विभक्त है – अतीत खंड, वर्तमान खंड और भविष्य खंड।
भारत भारती में राष्ट्रीय चेतना जागते हुए मैथिलीशरण गुप्त जी ने कहा था-
क्षत्रिय! सुनो अब तो कुयस की कालिमा को मेट दो।
निज देश को जीवन सहित तन मन तथा धन भेंट दो।।
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मैथिलीशरण गुप्त जी द्वारा लिखित भारत भारती को अंग्रेजी सरकार ने जप्त कर लिया था। क्योंकि इसमें राष्ट्र प्रेम की भावना कूट-कूट कर भरी हुई थी और यह विदेशी शासन के विरुद्ध एक संग्राम का सूत्रपात करने का ग्रंथ बन गया था। इस ग्रंथ को स्वतंत्रता सेनानी अपनी गीता कहते थे।
गुप्त जी द्वारा राष्ट्रीयता की भावना को व्यक्त करना-
हम कौन थे क्या हो गए हैं और क्या होंगे अभी।
मिल बैठ कर आओ विचारे यह समस्याएं सभी।।
मैथिलीशरण गुप्त जी ने भारत भारती में मातृभूमि को सगुन मूर्ति सर्वेश की कहा है –
करके अभिषेक पयोद हैं बलिहारी इस देश की।
हे मातृभूमि तू सत्य ही सगुन मूर्ति सर्वेश की।।
मैथिलीशरण गुप्त जी ने “भारत भारती” में भारत के अतीत के गौरव को एक अलौकिक रूप में चित्रित और किया है –
देखो हमारा विश्व में कोई नहीं उपमान था।
नर देव थे हम और भारत देवलोक सामान था।।
भारत भारती के तीनों खंड की कुछ काव्य पंक्तियां –
1. अतीत खंड
भू-लोक का गौरव,
प्रकृति का पुण्य लीला-स्थल कहाँ?
फैला मनोहर गिरि हिमालय और गंगाजल जहाँ।
सम्पूर्ण देशों से अधिक किस देश का उत्कर्ष है?
उसका कि जो ऋषिभूमि है,
वह कौन?
भारतवर्ष है ।।
हाँ-वृद्ध भारतवर्ष ही संसार का सिरमौर है,
ऐसा पुरातन देश कोई विश्व में क्या और है?
भगवान की भव-भूतियों का यह प्रथम भांडार है?
विधि ने किया नर-सृष्टि का पहले यहीं विस्तार है।।
भूले हुओं को पथ दिखाना यह हमारा कार्य्य था,
राजत्व क्या है,
जगत हमको मानता आचार्य्य था।
आतंक से पाया हुआ भी मान कोई मान है?
खिंच जाय जिस पर मन स्वयं सच्चा वही बलवान है?।।
जो पूर्व में हमको अशिक्षित या असभ्य बता रहे-
वे लोग या तो अज्ञ हैं या पक्षपात जता रहे।
यदि हम अशिक्षित थे,
कहें तो,
सभ्य वे कैसे हुए?
वे आप ऐसे भी नहीं थे,
आज हम जैसे हुए।।
कल जो हमारी सभ्यता पर थे हँसे अज्ञान से-
वे आज लज्जित हो रहे हैं अधिक अनुसन्धान से।
जो आज प्रेमी हैं हमारे भक्त कल होंगे वही,
जो आज व्यर्थ विरक्त हैं अनुरक्त कल होंगे वही।।
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2. वर्तमान खंड
जिस लेखनी ने है लिखा उत्कर्ष भारतवर्ष का,
लिखने चली अब हाल वह उसके अमित अपकर्ष का!
भारत, कहो तो आज तुम क्या हो वही भारत अहो!
हे पुण्यभूमि! कहाँ गई है वह तुम्हारी श्री कहो ?
पानी बनाकर रक्त का,
कृषि कृषक करते हैं यहाँ?
फिर भी अभागे भूख से दिन-रात मरते हैं यहाँ!
देखो, कृषक शोणित सुखाकर हल तथापि चला रहे,
किस लोभ से इस आँच में वे निज शरीर जला रहे।।
कुछ रात रहते जागकर चक्की चलाने बैठतीं,
हम सच कहेंगे,
उस समय वे गीत गाने बैठतीं।
पर क्या कहें,
उस गीत से क्या लाभ पाने बैठतीं,
वे सुख बुलाने बैठतीं,
या दुख भुलाने बैठतीं।।
केवल विदेशी वस्तु ही क्यों अब स्वदेशी है कहाँ?
वह वेश-भूषा और भाषा,
सब विदेशी है यहाँ।
विद्या बिना अब देख लो हम दुर्गुणों के दास हैं;
हैं तो मनुज,
हम किंतु रहते दनुजता के पास हैं।
3. भविष्य खंड
अब भी समय है जागने का देख आँखें खोल के,
सब जग जगाता है तुझे,
जग कर स्वयं जय बोल के।
हम कौन थे क्या हो गये हैं,
जान लो इसका पता,
जो थे कभी गुरु है न उनमें शिष्य की भी योग्यता।
किस भाँति जीना चाहिए,
किस भाँति मरना चाहिए;
सो सब हमें निज पूर्वजों से याद करना चाहिए।
हे भाइयो! सोये बहुत,
अब तो उठो, जागो,
अहो! देखो जरा अपनी दशा,
आलस्य को त्यागो अहो!
कुछ पार है,
क्या क्या समय के उलट-फेर न हो चुके!
अब भी सजग होगे न क्या?
सर्वस्व तो हो खो चुके।।
संसार की समरस्थली में धीरता धारण करो,
चलते हुए निज इष्ट पथ में संकटों से मत डरो।
जीते हुए भी मृतक-सम रहकर न केवल दिन भरो,
वर वीर बनकर आप अपनी विघ्न बाधाएँ हरो।।
प्रत्येक जन प्रत्येक जन को बंधु अपना जान लो,
सुख-दु-ख अपने बंधुओं का आप अपना मान लो।
पशु और पक्षी आदि भी अपना हिताहित जानते,
पर हाय!
क्या तुम अब उसे भी हो नहीं पहचानते।।
भारत भारती को पढ़कर ही महात्मा गांधी जी ने मैथिली शरण गुप्त जी को राष्ट्रकवि की उपाधि प्रदान की।
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उत्तम
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