अम्बुबाची मेला असम के गुवाहाटी में कामाख्या मंदिर में आयोजित होने वाला एक प्रमुख वार्षिक उत्सव है. नीलाचल पहाड़ियों पर स्थित कामाख्या मंदिर, विश्व प्रसिद्ध अम्बुबाची महायोग के नजदीक आने के साथ ही एक स्पष्ट ऊर्जा से जीवंत हो उठा है.
अम्बुबाची महायोग में बस एक दिन शेष रह जाने के साथ ही, मां कामाख्या मंदिर के पवित्र परिसर में भारत और यहां तक कि विदेशों से भी साधुओं, संन्यासियों और भक्तों की भारी भीड़ उमड़ रही है।
पौराणिक कथा के मुताबिक, एक बार जब राजा दक्ष ने यज्ञ का आयोजन किया, तो उन्होंने पुत्री माता सती और भगवान शिव को आमंत्रित नहीं किया। शिव जी के समझाने पर भी माता सती नहीं मानी और अपने पिता के यहां यज्ञ में चली गईं। जब उन्होंने वहादेखा कि उनके पिता शिव जी का अपमान कर रहे हैं, तो वह यह अपमान सह न सकीं और अग्नि कुंड में अपने शरीर का त्याग कर दिया।
जब यह बात शिव जी को पता चली, तो वह माता सती का शरीर उठाकर सम्पूर्ण विश्व में घूमने लगे। इससे पूरे विश्व में हाहाकार मच गया। तब भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से मां सती के शरीर के कई टुकड़े कर दिए और धरती के विभिन्न-विभिन्न स्थानों पर गिन गए। जहां-जहां माता सती के अंग गिए, वहां-वहां आज शक्तिपीठ स्थापित हैं। कहा जाता है कि असम के गुवाहाटी के कामगिरी में माता सती की योनि गिरी थी, जिस स्थान पर आज कामाख्या देवी मंदिर बना हुआ है।
इस साल अंबुबाची मेले का आयोजन 22 जून से होने जा रहा है, जो 26 जून 2025 तक चलेगा। यह मेला देवी कामाख्या के वार्षिक मासिक धर्म का प्रतीक माना गया है। साथ ही तांत्रिकों के लिए भी इस मेला काफी महत्व रखता है। देश-विदेश से लाखों भक्त यहां पहुंचते हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, यह वह समय है, जब माता रजस्वला होती हैं।
सूर्य जब आर्द्रा नक्षत्र में प्रवेश करते हैं, तब पृथ्वी रजस्वला होती है. इस बार सूर्य 22 जून दिन रविवार को आर्द्रा नक्षत्र में गोचर करने वाले हैं. किसानों के लिए यह समय सबसे उत्तम होता है क्योकि इस समय बीज बोना सबसे उत्तम माना जाता है. सूर्य का आर्द्रा में प्रवेश इस बात का संकेत होता है कि मानसून जल्द ही दस्तक देगा. किसान इस समय अपने खेतों की तैयारी शुरू कर देते हैं. मिट्टी को पलटा जाता है, बीजों का चयन होता है और वर्षा की प्रतीक्षा की जाती है. दक्षिण भारत में इसे काल बैसाखी और उत्तर भारत में बरखा पंचमी या अंबुबाची जैसे उत्सवों से जोड़ा जाता है. खासकर असम में ‘कामाख्या देवी’ का अंबुबाची पर्व इसी समय मनाया जाता है।
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